मनजीत नेगी/ IBEX NEWS शिमला।
हिमाचल प्रदेश का ज़िला किन्नौर वास्तव में देवभूमि है । देवी देवताओं के साथ जनमानस का संबंध इतना प्रगाढ़ , स्नेहिल है कि भारत तिब्बत सीमावर्ती गाँव रक्छम छितकुल में बीते सप्ताह से चल रहे आस्था के संगम ने इस बात को और चरितार्थ कर दिया।रक्छम में “बधाई “कार्यक्रम में किन्नौर की देवियों में सबसे शक्तिशाली देवी छितकुल “माथी” थे। यहाँ चार घरानों में कार्यक्रम रहा और इसके बाद माता देवी की वापसी तय थी । उनका रथ स्थानीय देवी देवताओं से विदा लेते हुए जैसे ही आगे की और बढ़ा। गाँव की महिलाएँ किन्नौरी पारंपरिक परिधानों ऊनी वस्त्रों और आभूषणों से सजधज कर हाथों में धुरी लिए गुगलंग(यहाँ ऊँचे पहाड़ों में मिलने वाला पतोंवाला धूप )से माता देवी को भारी मन से अलविदा करने रास्ते में पहुँचीं और आँखों में आँसू लिए विदाई से पहले उनके रूकने का आग्रह करने लगी।
हालाँकि माता देवी को अपनी और से सार्वजनिक तौर से स्पष्ट नहीं बोल सकते।महिलाएँ जब माता देवी की पूजा अर्चना करने लगी तो माता देवी का रथ महिलाओं को आशीर्वाद देने को झुका और मुड़ा था जो एकाएक पुजारी की तरफ़ झुककर गाँव शमशेरस मंदिर प्रांगण में रूकने को कह दिया।
कबाइली महिलाएँ ख़ुशी से झूम उठी और बुजुर्ग से बुजुर्ग महिलाएँ इस ख़ुशी में सड़क से लेकर मंदिर प्रांगण तक नाचने लगी कि माता देवी ने हम महिलाओं की मुराद को सुन लिया।पूरे गाँव का माहौल ख़ुशनुमा हो गया ऐसे में जब महिलाएँ माता देवी को नहीं जाने देना चाहती थी। वो सबकी माँ है और इस रक्छ्म गाँव् में कई अरसे बाद आई थी।
इस गाँव में छितकुल से भी लड़कियाँ ब्याही गई है।रक्छम में भूपेन्द्र सिंह नेगी,लक्ष्मण नेगी,वीरभद्र सिंह, दिनेश नेगी, तजेन्द्र सिंह नेगी के घरानों में बधाई कार्यक्रम था।
ये एक क़िस्म का बर्थ सेरेमनी होती है। उन घरों में ये मनाई जाती है जिन अभिभावकों ने गोद भरने के लिए माता से मन्नत की होती है।
बदले में इच्छा करते हैं कि हम समयानुसार आपको घर बुलाकर बधाई कार्यक्रम रखेंगे। पूरे किन्नौर कुँनू चारंग गाँव तक पहले ये प्रथा थी ।रक्छम , कामरू सांगला में अभी भी माता देवी इस संबंध में दौरा करती है।
अब दूर दूर से लोग छितकुल मंदिर में ही इच्छानुसार भेंट देते है और बधाई के लिए उपरोक्त स्थलों के लिए एक डेट भी देते है।इसी के तहत अभी रक्छ्म में घरानों में कार्यक्रम रहा जिसमें उरनी, चगाँव बड़ा कंबा, छोटा कंबा से भी लोग पहुँचे थे।रक्छम के प्रधान सुशील नेगी का कहना है कि सभी के सहयोग से कार्यक्रम अच्छा रहा।दो दिन तक गाँव के देवता शमशेरस, भगवती,नागस की और से भोज रहा है। दिन रात मंदिर प्रांगण में मेले का दौर रहा और देवता साहब की और से लोगों को भोज परोसा गया। वहीं सभी के घरों के लिए भी मेहमाननवाज़ी के लिए लोगों को बाँटा जाता है।सभी का स्वागत अनूठे तरीक़े से होता है क्योंकि गाँव में उत्सव का माहौल देखते ही बनता है। कोई भी व्यक्ति अपने देवी देवता के हुक्म के अवहेलना नहीं करता है। लोगों पर देवी देवता का खूब प्रभाव है। किन्नौर के ग्राम देव देवियों के अपने अपने अधिकार क्षेत्र है और एक दूसरे के कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं होता। इनके आपस में पारिवारिक संबंध भी होते है। रक्छम देवता माता देवी के भांजा है।दुख सुख में देवी देवता बराबर का हिस्सा लेते है। ये देवी देवता यहाँ के बाशिंदों के लिए सबकुछ है।
कोई बीमार पड़ जाए , किसी के घर चोरी हो जाए या झगड़ा हो , अतिवृष्टि ,अनावृष्टि लोग देवी देवता की शरण में जाते है। इसलिए देवी देवता कभी न्यायाधीश के रूप में तो कभी वैद्य तो कभी प्रशासक तो कभी पारिवारिक मुखिया के रूप में पूछे माने जाते हैं। किन्नौर में छितकुल माता देवी सबसे शक्तिशाली मानी जाती है । छितकुल के बाराजंग खगो यानि ऊँचाई वाले एरिया की रक्षक मानी जाती है लिहाज़ा इस देवी को रानी-रणसंगा कहते है। पर्यावरण की रक्षक भी माता देवी को मानते है।किन्नर कैलाश की यात्रा से ब्रह्मकमल फूल माता देवी को अर्पित करने पर प्रतिबंध माता देवी ने ही लगाया है।
छितकुल की देवी गृहस्थ है और कामरू के बद्रीनाथ देवता से विवाह है। छितकुल के क्षेत्रों में जो कुछ करना होता है उसके लिये देवी से अनुमति लेना ज़रूरी है। कई गाँवों ने वैवाहिक संबंध भी देवी देवता की राय से ही करते है। इसी कड़ी में रक्छम गाँव में बधाई का आयोजन किया गया था जो आज माता देवी के वापस मंदिर लौटने के बाद समाप्त हुआ।