सरकारीतंत्र ने हादसे के चौथे दिन ही खड़े कर दिये थे हाथ।गाँव वालों ने नहीं तोड़ी थी अब तक उम्मीद।
टुकड़ियाँ बनाकर हररोज़ बड़े भाई और दोस्त जाते थे नदी की ओर उसको खोजने।
तेहरवें के ठीक पहले मिला शव, अंतिम बार खोजना चाहते थे दोस्त , इस उम्मीद के साथ कि मिल जाए हमारा हंसमुख यार, पूरा गाँव ग़मगीन हुआ।
मनजीत नेगी/IBEX NEWS,शिमला।
….और दोस्तों ने ही 11वें दिन दोस्त मैकेनिकल इंजीनियर योगिंद्र की बॉडी को सतलुज ट्रिब्यूटरी बासपा नदी से ढूँढ निकाला।शीशंग खड्ड के पास एक बड़े पत्थर में उसका शव फँसा था।दोस्तों को उम्मीद थी कि वो पक्का दोस्त था और उसकी यारी निभाने के लिए दोस्त क्रियाकर्म से पहले हर हाल में पाताल से भी ढूँढ लाने का जज्बा रखते थे। इसलिए आज सुबह सेवेरे घर से निकले कि काश वो शनिवार और रविवार को होने वाले क्रियाकर्म के लिए तो मिल जाए।उसका क्रियाकर्म रविवार को तय था संस्कार जारी थे।
वो हमेशा कहा करता था कि
“उन परिंदों को हम
अपने पिंजरे में रखना पसंद नहीं करते,
जो हमारे पिंजरे में क़ैद होकर भी
किसी और के साथ उड़ना पसंद करते हैं।”और वे अपने ऐसे अल्फ़ाज़ को जैसे निभा भी गया जो अपने सोशल मीडिया पर अपनी पोस्ट के ज़रिए उकेरा करता था। आज सुबह योगिंदर के दोस्त जसविंद्र और कमलकिशोर छितकुल से आगे मस्तरंग खोजने गए । जबकि बड़ा भाई योगराज और गाँववासी रामानन्द छितकुल से नाग़स्ती आईटीबीपी कैम्प की और गए थे जहां वह पुल से बहा था।हिमाचल के ज़िला किन्नौर में भारत तिब्बत सीमावर्यी छितकुल गाँव से चार किलोमीटर आगे शीशंग खड्ड के पास तक जसविंद्र, कमलकिशोर ढूँढते हुए एक बड़े पत्थर तक पहुँचे । देखा तो उसका शव बड़े पत्थर में अटका था ,इससे कुछ दूरी पर पहले हादसे के पाँचवें दिन योगिंदर का जूता मिला था। शव दिखने के बाद गाँव और पुलिसवालों को इतलाह किया गया।
गाँववाले टुकड़ियाँ बनाकर हररोज़ बड़े भाई और दोस्त नदी की ओर उसको खोजने जाते रहे।सरकारीतंत्र ने हादसे के चौथे दिन ही हाथ खड़े कर दिये थे की मटमैले तेज बहाव वाले बासपा नदी मी अब शव मिलना नामुमकिन है।NDRF, होम गार्ड के जवान, सांगला पुलिस के टीमों ने सर्च ऑपरेशन रोक दिया था मगर गाँव के लोगों, रिश्तेदारों और दोस्तों ने उसे खोजना जारी रखा था।
मैकेनिकल इंजीनियर योगेन्द्र गाँववासियों के साथ अस्थायी पुल बनाने गया था और घर लौटने से पहले अपनी रस्सी और कुल्हाड़ी लाने मुड़ा था कि पुल की बीच की बली ने उसकी बलि के ली थी तब से उसका कोई सुराग नहीं मिला था । हंसमुख, ज़िंदादिल, योगिंदर का शव जैसे ही गाँव पहुँचा हर कोई सिसकियाँ भर रहा था ।बुजुर्ग माँ को समझाना हर किसी के बस से बाहर हों रहा था मानों माँ की आँखें अपने लाड़ले को देखकर पत्थरा गई थी।तो नन्हीं परी की माँ योगिंद्र की बीवी की आँखों के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे।तीन साल पहले ही तो वो शादी के बंधन में बंधी थी।दोस्तों को ये सुकूं था कि उसका शव खोजकर ला पाए,उसे कंधा दे पाए ।
शव मिलने से योगिंद्र की जवान पत्नी को वो सारे हक़ मिल जाएँगे जो शव न मिलने से सात साल के लंबे इंतज़ार के बाद मिलते। न इन्श्योरेंस का लाभ मिलता, न नौकरी के लिए रियायत, न दूसरे कई हक़।आज ही योगिंदर का अंतिम संस्कार किया गया। 33 साल का योगिंद्र छितकुल के बासपा नदी की ट्रिब्यूटरी खड्ड जानापा में ग्लेशियर के टूटने से टूटे पुल को बनाने गया था ।पुल के बीच की बली टूटने से पानी के तेज बहाव में वह बहा। तबसे सबके लाड़ले मैकेनिकल इंजीनियरके लिए हरकोई छटपटा रहा था ।दोस्त ग़मगीन थे ,हाथ मल रहें थे कि और यारों के यार ज़िंदादिल , हंसमुख योगिंद्र की अर्थी को कंधा तक नहीं दे पाए है ।उसके दोस्त घर में अन्य अंतिम संस्कार में मदद कर रहें थे ।
गौर हो कि18 सितंबर को दोपहर बाद पुल बनकर तैयार हुआ।गाँव की कुछ महिलाएँ भी इस काम में साथ थी। लोग घर लौटने लगे तो योगेन्द्र ये कहता हुआ पूल क्रॉस करने लगा कि मेरी रस्सी और कुल्हाड़ी दूसरे किनारे रह गई ।मैं ले आता हूँ। जैसे ही वो आगे बढ़ा पुल के बीच की बली यानी कड़ी टूट गई और वो बासपा नदी की ट्रिब्यूटरी नाले जानापार के तेज बहाव में बहता ही चला गया ।लोग चिल्लाते रह गए ।जब तक लोग संभले पानी के तेज बहाव में योगेन्द्र पल में आँखों से ओझल हो गया।सभी ने मिलकर ढूँढा मगर नामोनिशान नहीं मिल पाया।एक जमाने से हर साल यहाँ अस्थाई पुल बनता है । जब जब ग्लेशियर्स से हिमखंडों से ये टूटता है तो उस साल सभी मिलकर बनाते है ।इस साल भी लोग पुल बनाने के लिए इकट्ठा हो कर गए थे कि इस हादसे ने सभी को झकझोर कर रख दिया।
चार दिनों तक ITBP, क्यूआरटी टीम, सांगला पुलिस और होम गार्ड के साथ गाँववासी योगेन्द्र को मिलकर ढूँढते रहें और बेरंग लौट गए।
बॉक्स
पानी कम और क्लियर था। तभी उसका शव सामने दिखा। सुबह सुबह के समय नदी में पानी कम रहता है।ऊँचे पहाड़ों में तापमान गिरावट की वजह से ग्लेशियर जमे रहते है और पानी काई फ्लो भी कम रहता हैं जिससे उसको खोजने में मदद मिली। इससे पहले नदी में पानी मिट्टीवाला था।