IBEX NEWS,शिमला।
उत्तरकाशी में प्रसिद्ध गंगोत्री धाम के साथ ही देवभूमि हिमाचल के कबाइली ज़िला किन्नौर की सबसे शक्तिशाली माता देवी छितकुल मंदिर के कपाट बंद हो गए हैं।बताते है कि वे इस दौरान शीतकालीन प्रवास या यूँ कहे कि स्वर्ग प्रवास पर जाती है और उनकी पूजा पाठ पर भी अपने आप पाबंदी लग जाती है। उनकी ग़ैर मौजूदगी में गाँव में मकर संक्रांति के दिन नाग देवता का आगमन होता है। लोग माता देवी की अनुपस्थिति उनकी ही पूजा करेंगे। साल के इन्हीं दिनों नाग देव की पूजा होती है।गाँव के बीच में स्थित क़िले में नाग देवता वास करते हैं और इन दिनों के अलावा नाग देवता गाँव से दूर गुफा में रहते हैं। कहते हैं कि नाग देवता माता देवी के भाई है और वृंदावन से माता देवी के साथ आयें है और देवी ने उन्हें विशेष स्थान से नवाज़ा है।
गाँव में इन्हीं का ही आशीर्वाद समझा जाता है कि छितकुल की सीमा के भीतर आज दिन तक किसी ने साँप नहीं देखे। यहाँ की ठंडी वादियों में साँप नहीं मिलते। क़िले में नाग देवता की पूजा के लिए कोई विशेष पुजारी नहीं होता है।लोग अपने घरों से दूध और धूप गुगलंग से क़िले में विराजमान नाग देवता की पूजा अर्चना करने पहुँचते है ।माता देवी मंदिर में माघ के माह में हर साल चयनित घरानों के लोग जिन्हें शूमी ( देवता का आदमी) कहते हैं। वहीं से ये शुमी लोग नाग देवता के कारदार होते है और मुख्य पूजा अर्चना वहीं करते हैं।शुमी कई दिनों के लिए मंदिर में ही ठहरते हैं घरों में आना इस दौरान इनका निषेध होता हैं। माता देवी के कपाट बंद होने के बाद से सदियों से चल रही परंपराएँ निभाने का सिलसिला फिर से शुरू हो गया है।
श्रीनंद, कृपाल सिंह, तुलसी राम नेगी , भाग रत्न, टिंकल माथस,रजनीश कुमार माता देवी के कारदार बताते हैं कि माता देवी के प्रवास के लौटने से पहले नाग देवता वापस अपने निवास स्थान गुफा में चले जाते हैं।इस दौरान सदियों से चली आ रही परंपराएँ चलेगी।
माता देवी के कपाट गंगोत्री के साथ ही बंद हुए हैं ।माता देवी स्वयं ये दिन तय करती है। इन्हें गंगोत्री की पुत्री भी कहते है। जब भी ऊंचें गंगनचुभी पहाड़ों से पैदल मार्च कर माता देवीगंगोत्री यात्रा पर जाती है तो गंगा स्नान के बाद वहाँ उनकी गोद में ही बैठती हैं।इस वक्त माता देवी के चुनिदा कारदार, माली और लोग उनके साथ होते हैं।किन्नौर की सबसे शक्तिशाली और सबकी पूजनीय माता देवी का डंका उतराकशी में गंगोत्री यात्रा के दौरान उन क्षेत्रों में भी चलता है जहां से उनका रथ गुजरता है। लोग पूजा के लिए खड़े रहते है ।
जगह जगह माता देवी के जयकारों के लिए लोगों की भीड़ देखते ही उमड़ती हैं हालाँकि अभी तक किन्नौर से उत्तराखंड के लिए कोई सड़क मार्ग नहीं है। ग्लेशियरों को लांघ कर माता देवी का रथ छितकुल से पहले गाँव हरसिल उतराखण्ड पहुँचता है और फिर गंगोत्री।
राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से ये मसला उठाया है कि सीधेतौर पर दोनों राज्यों हिमाचल और उतराखंड को जोड़ने के लिए सड़क मार्ग बने। वाइब्रेंट विलेज केंद्र सरकार के विशेष प्रोजेक्ट के तहत प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने जब आरके सिंह केंद्रीय ऊर्जा मंत्री को हिमाचल के ज़िला किन्नौर छितकुल भेजा था तो लोगों के इस आग्रह केंद्रीय मंत्री ने इस मार्ग के निर्माण को लेकर हामी भरी है। उन्होंने मंच से घोषणा की है कि इसके लिए जो पहले सर्वे हुए है उस लाइन पर एक बार फिर काम होगा। देश के ऐसे प्रमुख धार्मिक स्थलों को एक सूत्र में बांधा जाए। इसके लिए पीएमओ से भी गंभीरता से मामला उठाया जाएगा। स्थानीय लोगो के आग्रह पर बाग़वानी राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खु के माध्यम से उस प्रस्ताव पर बात केंद्रीय मंत्री तक पहुँचाई गई। यदि ऐसा संभव हुआ तो वोट दिन दूर नहीं कि भारत चीन सीमावर्ती गाँव छितकुल विश्व पर्यटन मानचित्र पर और तेज़ी से धार्मिक पर्यटन क्षेत्र के रूप में उभरेगा।
भय्या दूज के पर्व पर यमुनोत्री धाम के कपाट् आज बंद हो रहें है।बीते कल अन्नकूट पर्व पर मां गंगा के कपाट बन्द कर दी गई है।ऐसे धामों के कपाट बन्द करने का समय बीते कल दोपहर 11 बजकर 47 मिनट पर था।बता दें कि 12 बजे मां गंगा की उत्सव डोली रवाना हुई हैं ।शीतकालीन प्रवास मुखवा गांव के लिए रवाना होगी।
गंगोत्री धाम के कपाट 14 नवंबर को अन्नकूट के पावन पर्व और अभिजीत मुहूर्त की शुभ वेला पर ठीक 11 बजकर 45 मिनट पर श्रद्धालुओं के लिए आगामी 6 महीने के लिए बंद किएहो गये है और माता देवी छित कुल के कपाट भी अप्रैल मैश में ही खुलते हैं।
आपको बता दें कि प्रतिवर्ष नवरात्रि के प्रथम दिवस पर गंगोत्री धाम के मंदिर समिति एवं रावल तीर्थ पुरोहित गंगोत्री धाम के कपाट बंद होने की तिथि और शुभ मुहूर्त तय करते हैं।14 नवंबर को कपाट बंद होने के बाद मां गंगा की उत्सव डोली अपने मायके मुखीमठ मुखबा के लिए प्रस्थान करेगी। रात्रि निवास भैरोघाटी स्थित देवी मंदिर में होगा। इसके अगले दिन 15 नवंबर को भाईदूज के पर्व पर मां गंगा की उत्सव डोली अपने मायके मुखबा मुखीमठ में पहुंचेगी। जहां मां गंगा का स्वागत एक बेटी की तरह गांव के ग्रामीणों द्वारा किया जाएगा।
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मान्यता है कि अपने प्रवास के दौरान देवी देवता अपने अपने इलाक़ों के लिए अच्छा भाग्य, फसलें, मौसम आदि भविष्य तय करके लाती है। इंद्र देव के दरबार में वे हाज़िरी भरते है और किन्नौर कैलाश से भी अपनी प्रजा के लिए सौभाग्य जीतकर लाती है।