फिलहाल 18 मार्च तक इस स्टे ऑर्डर के मद्देनजर हाटी आरक्षण की सभी गतिविधियों पर प्रतिबंध रहेगा।
IBEX NEWS,शिमला।
हिमाचल प्रदेश उच्चन्यायालय ने सिरमौर जिले के गिरिपार क्षेत्र के हाटी को जनजातीय का दर्जा देने से जुड़े कानून के अमल पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने प्रदेश के जनजातीय विकास विभाग के 1 जनवरी 2024 को जारी उस पत्र पर भी रोक लगा दी है, जिसके तहत क्षेत्र के लोगों को जनजातीय प्रमाण पत्र जारी करने के लिए उपायुक्त सिरमौर को आदेश जारी किए गए थे। मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव और न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने अंतरिम आदेश में स्पष्ट किया कि जब केंद्र सरकार पहले ही इस मुद्दे को तीन बार नकार चुकी थी तो इसमें कानूनी तौर पर ऐसा क्या रह गया था कि केंद्र को गिरिपार के लोगों को जनजातीय क्षेत्र घोषित करने के लिए कानून बनाना पड़ा।
कोर्ट ने कानूनी तौर पर जनजातीय क्षेत्र का दर्जा देने को प्रथम दृष्टया वाजिब नहीं पाया। याचिका में आरोप लगाया गया है कि बिना जनसंख्या सर्वेक्षण के ही उक्त क्षेत्र को जनजातीय क्षेत्र घोषित किया गया। अलग-अलग याचिकाओं में दलील दी गई है कि वे पहले से ही अनुसूचित जनजाति व अनुसूचित जाति से संबंध रखते हैं। प्रदेश में कोई भी हाटी जनजाति नहीं है और आरक्षण का अधिकार हाटी के नाम पर उच्च जाति के लोगों को भी दे दिया गया जो कि कानूनी तौर पर गलत है। किसी भी भौगोलिक क्षेत्र को किसी समुदाय के नाम पर तब तक अनुसूचित जनजाति घोषित नहीं किया जा सकता जब तक वह मानदंड पूरा नहीं करता हो।
देश में आरक्षण नीति के अनुसार अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग को पहले से ही मौजूदा कानून के तहत क्रमशः 15 और 27 फीसदी आरक्षण मिल रहा है। वर्ष 1995, 2006 व 2017 में गिरिपार के लोगों को जनजातीय क्षेत्र का दर्जा दिए जाने बाबत केंद्र सरकार के समक्ष प्रस्ताव भेजा गया था। केंद्र सरकार ने हर बार इस मामले को तीन प्रमुख कारणों से नकार दिया था। इन कारणों में एक तो उक्त क्षेत्र की जनसंख्या में एकरूपता का न होना बताया गया, दूसरा हाटी शब्द सभी निवासियों को कवर करने वाला एक व्यापक शब्द है जबकि तीसरा कारण था कि हाटी किसी जातीय समूह को निर्दिष्ट नहीं करते हैं।