किन्नौर की बासपा नदी का जलस्तर बढ़ा।ITBP ने चेताया। ग्लेशियर्स टूटने से पत्थरों और मलबे के शोर से गूंज उठी घाटी।अब भी उफ़ान पर नदी , परंतु स्थिति नियंत्रण में: SHO सांगला

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इस सीमा की पर्वत श्रृंखला और सटे पड़ौसी राज्य उतराखंड के केदारधाम में भी रविवार तड़के भीषण हिमस्खलन हुआ था।मंदिर के पीछे ग्लेशियर् टूटने से ऐसी स्थिति बनी। हिमस्खलन केदार घाटी के ऊपरी छोर पर बर्फ से ढकी मेरु सुमेरु पर्वत श्रृंखला के नीचे हुआ ।बीती आठ जून को भी यहां ग्लेशियर टूटने की घटना हुई थी। बीते वर्ष मई व जून में  भी चोराबाड़ी से लगे कंपेनियन ग्लेशियर क्षेत्र में पांच बार हिमस्खलन हुआ था।

लोग अंदेशा जता रहें हैं कि हो सकता है कि दोनों का कोई कनेक्शन हो जैसे पर्वत शृंखला को ये क्षेत्र साँझा करता है। बासपा नदी के उद्गम स्थल में कोई हिमखंड टूटा हो जिससे नदी का जलस्तर बढ़ गया हो।हालाँकि उस तरह की कोई पुष्टि नहीं हो पाई।

IBEX NEWS,शिमला।

हिमाचल प्रदेश के जनजातीय ज़िला किन्नौर की बासपा नदी में एकाएक जल स्तर बढ़ गया है और बड़े पत्थरों और मलबे से पूरी घाटी नदी के शोर से गूंज उठी। बीती रात को ऐसा मंजर रहा मगर सोमवार को नदी उफान पर तो है मगर अब स्थिति नियंत्रण में है।सांगला के एसएचओ ने इसकी पुष्टि की है कि कल आईटीबीपी से सूचना मिली थी प्रशासन अलर्ट रहा है और लोगों को चेतावनी भी जारी की । हालाँकि जारी वीडियो कल शाम का है और गाँव छितकुल में बीती देर शाम तक बासपा शोर मचाती रही आज स्थिति कमतर आंकी है।कुलदीप सिंह डीडीएमए किन्नौर ने जानक़ारी जारी की कि बसपा नदी में जल स्तर काफी बढ़ गया है, जिससे आसपास के क्षेत्रों के लिए उच्च खतरा पैदा हो गया है। इसलिए, बसपा नदी के पास के गांवों के निवासियों को नदी के किनारे से दूर रहने की सलाह दी जाती है। साथ ही, तहसीलदार सांगला और एनटी टापरी को स्थिति पर कड़ी नजर रखने के निर्देश दिए गए हैं। एनटी टपरी को SHO सांगला और SHO टपरी के साथ मिलकर आम जनता की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए। ये वीडियो संदेश छितकुल गाँववालों को भी मोबाइल पर भी भेजा गया।

ऐसे में जब आगे ये नदी सतलुज में मिलती हैं।बासपा नदी के अंतिम छोर पर गाँव छितकुल वासी अरविंद नेगी ने बताया कि संभव है कि नदी के उद्गम स्थल पर ग्लेशियर टूटा हो और जलस्तर बढ़ गया। हालाँकि नदी का क्रिस्टल क्लियर पानी रहता है और मीठा शुद्ध जल है और लोग इसे पवित्र इसलिए भी मानते है कि ये यह एक ऐसी नदी है जो भारत और चीन (तिब्बत) के बॉर्डर पर मौजूद है। चुंग सखागो दर्रा घाटी के शीर्ष पर स्थित है । यह बारहमासी ग्लेशियरों से पोषित होता है और गंगा के साथ जलग्रहण क्षेत्र साझा करता है । चुंग सखागो दर्रा घाटी के पास होने के चलते दोनों देश की नज़र इस नदी पर रहती है। बॉर्डर पर मौजूद होने से चलते दोनों के लिए नदी का पानी भी बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। बासपा पहाड़ियों से शुरू होती है, करछम के पास बाएं किनारे से सतलज नदी में मिलती है । नदी के किनारे घाटी की ऊपरी और मध्य ढलानें देवदार और ओक के जंगलों से ढकी हुई हैं। चरागाह, घास के मैदान और खेत निचली ढलानों को कवर करते हैं। हिमालय के कुछ सबसे मनोरम गाँव यहाँ पाए जा सकते हैं। घाटी की 95 किलोमीटर लंबाई का केवल निचला आधा हिस्सा ही बसा हुआ है – छितकुल (3,475 मीटर) से लेकर जहां बसपा करछम (1,830 मीटर) में सतलुज नदी से मिलती है। इसलिए नदी के शोर और बाढ़ की स्थिति ने सभी का ध्यान आकर्षित किया।कई लोगों का कहना रहा कि इस सीमा की पर्वत श्रृंखला और सटे पड़ौसी राज्य उतराखंड के केदारधाम में भी रविवार तड़के भीषण हिमस्खलन हुआ था।मंदिर के पीछे ग्लेशियर् टूटने से ऐसी स्थिति बनी। हिमस्खलन केदार घाटी के ऊपरी छोर पर बर्फ से ढकी मेरु सुमेरु पर्वत श्रृंखला के नीचे हुआ ।बीती आठ जून को भी यहां ग्लेशियर टूटने की घटना हुई थी। बीते वर्ष मई व जून में  भी चोराबाड़ी से लगे कंपेनियन ग्लेशियर क्षेत्र में पांच बार हिमस्खलन हुआ था।लोग अंदेशा जता रहें हैं कि हो सकता है कि दोनों का कोई कनेक्शन हो जैसे पर्वत शृंखला को ये क्षेत्र साँझा करता है। बासपा नदी के उद्गम स्थल में कोई हिमखंड टूटा हो जिससे नदी का जलस्तर बढ़ गया हो।हालाँकि इस तरह की कोई पुष्टि नहीं हो पाई।

उधर एसएचओ सांगला का कहना है कि नागास्ती पोस्ट पर आईटीबीपी से प्राप्त जानकारी के आधार पर पुलिस अलर्ट है ।

हिमाचल प्रदेश के जनजातीय ज़िला किन्नौर की बासपा नदी में एकाएक जल स्तर बढ़ गया है और बड़े पत्थरों और मलबे से पूरी घाटी नदी के शोर से गूंज उठी। बीती रात को ऐसा मंजर रहा मगर सोमवार को नदी उफान पर तो है मगर अब स्थिति नियंत्रण में है।

हिमाचल से सटे तिब्बत में स्थित पारछू नदी वर्ष 2005 में डरा चुकी है ।तब झील टूटने से स्पीति और सतलुज नदी में बाढ़ आ गई थी। इससे स्पीति के समदो से लेकर बिलासपुर जिले तक भयंकर तबाही हुई थी। तब चीन ने इस बारे में पूर्व सूचना नहीं दी थी। इससे हिमाचल को तीन हजार करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान झेलना पड़ा था।