15 जुलाई से आधिकारिक तौर से शुरू हुआ इस बार सेब सीजन सेबों की कम लालिमा ,आकार, हॉर्श वेदर कंडीशन से मंडियों में धीमी गति से बिका है , मगर इस मर्तबा किन्नौर का सेब बाज़ार में धूम मचाने को बेताब दिख रहा है क्योंकि गलेशियरों के द्वारा निकले पानी से सिंचाई होती हैं और रासायनिक छिड़काव का प्रयोग बहुत कम है यहाँ का सेब अपनी प्राकृतिक मिठास, रंग, रसीलापन, कुरकुरेपन और लंबे समय तक शेल्फ जीवन के लिए जाने जाते हैं।
किन्नौरी सेब अपनी खूबियों की वजह से फेमस है ।इसकी मांग भी आम सेब के मुकाबले ज्यादा रहती है, इसकी खासियतें ऐसी हैं जो इसे अन्य सेबों के मुकाबले महंगा बनाती हैं..पढ़ें पूरी खबर.
IBEX NEWS,शिमला।
दुनियाभर में मशहूर किन्नौर के सेब में अब कलर आना शुरू हो गया है और आगामी 15 से 20 अगस्त तक शिमला, चंडीगढ़ ,दिल्ली, मुंबई आदि के सेब मंडियों में धूम मचाने को तैयार है।लोअर किन्नौर पोवारी ,भावा वैली, निचार और रामपुर बेल्ट के साथ लगते किन्नौर में सेब अपनी प्राकृतिक मिठास, रंग, रसीलापन, कुरकुरेपन और लंबे समय तक शेल्फ जीवन के लिए फेमस किन्नौरी सेब लगभग तैयार है। हालाँकि अपर बेल्ट ने अभी सेब तैयार होने में समय शेष है ।अपर किन्नौर के चांगो, ताबो और नाको में सेब लोअर किन्नौर के सेब के बाद में तैयार होता है।किन्नौर जिले(kinnaur district) के पुरबनी गांव से संबंध रखने वाले पेशे से वकील और वरिष्ठ कांग्रेस नेता हिमाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी सचिव सत्यजीत नेगी ने अपने बाग़ीचे की वीडियो शेयर कर बताया कि मध्य अगस्त तक एरिया के सेब मार्केट में दस्तक देने को तैयार है। इन्होंने ने ही सेब की बागवानी की परिभाषा ही बदलते हुए सेब पेड़ की डालियों के अलावा जमीन के नीचे भी गांव में ग्राउंड एप्पल(भूमिगत सेब) तैयार कर बागवानी के क्षेत्र में अनूठी पहल की है और सेब के पौधे की शाखाओं में उगे रसीले सेब के अपने बगीचे की जारी की गये वीडियो और फोटो देखकर आप स्वयं भी अंदाज़ा लगा पायेंगे कि किन्नौर के सेब की लालिमा और उच्च गुणवत्ता से इस बार किसानों को मालामाल कर प्रदेश की आर्थिकी को और सदृढ़ कर सकती है।
जनजातीय जिला किन्नौर(tribal district kinnaur) सेब की पैदावार(apple production) और अलग-अलग किस्मों के लिए दुनियाभर में मशहूर है। यहाँ सेब की कई किस्में होती हैं। सेब की जो पारंपरिक किस्में होती हैं उनमें रॉयल, गोल्डन, रिचर्ड और रेड है। हिमाचल प्रदेश के सबसे ठंडा जिला किन्नौर में सेब बागवान दूसरी फसलों के अलावा गलेशियरों से निकली जलधाराँओं से सेब के बगीचों की सिंचाई करते हैं व सेब में रासायनिक छिड़काव का प्रयोग बहुत कम करते हैं।नतीजनकिन्नौर के सेब की मांग मंडियों में सबसे ज्यादा है।वर्ष 1990 के बाद किन्नौर जिले ने बागवानी क्षेत्र में अपने आप को हिमाचल प्रदेश के अंदर पहचान दिलाना शुरू किया ।जब लोग पौराणिक तौर तरीकों से बाहर आकर सेब के बगीचों में नए किस्म के सेब के पौधे लगाने लगे और देखते ही देखते किन्नौर जिले ने पूरे प्रदेश देश व विश्व भर में सेब की बागवानी में अपनी पहचान बनाई है।ठंगी के महेश नेगी और निचार के रमेश नेगी ने बताया कि किन्नौरी सेब प्राकृतिक रूप से बड़े आकार का होता है। सेब का छिलका साफ होता है और रंग लाल चटक। परंपरागत तरीके से आज भई कूलहों का पानी बागीचों तक पहुंचा कर सिंचाई के जरिये सेब तैयार होता है। इसलिए यह अधिक रसीला होता है। सेब में प्राकृतिक रूप से फाइबर, मिनरल और ट्रेस एलीमेंट अधिक होते हैं। फाइबर पाचन क्रिया के लिए बेहतर है। शरीर की तंदरुस्ती के लिए मिनरल की आवश्यकता होती है। जिनके शरीर में ट्रेस एलीमेंट की कमी है, उनके लिए यह अधिक फायदेमंद है।
दूसरी और वर्तमान स्थिति इस बार आधिकारिक तौर पर सेब सीजन 15 जुलाई से शुरू हो गया हैं और हर वर्ष इस समय तक फल मंडियों में बेहतर गुणवत्ता वाले सेब की खेप पहुंचनी शुरू हो जाती थी, लेकिन इस वर्ष अभी तक मंडी में बेहतर गुणवत्ता वाली पैदावार नहीं पहुंची हैभट्ठाकुफर फल मंडी में टाइडमैन, रेड जून और पराला फल मंडी में गाला सेब की खेप पहुंचनी शुरू हो गई है। आढ़तियों के अनुसार गत वर्ष के मुकाबले इस वर्ष सेब सीजन देरी से शुरू हो रहा है, क्योंकि सूखे की वजह से अधिकतर पैदावार प्रभावित हो गई है। इसकी वजह से फसल का आकार और रंग भी सही नहीं बन पाया है। अभी जो सेब मार्केट पहुँच रहा है उसे बागवान पूरी तरह तैयार होने से पहले ही तोड़कर मंडी में ला रहे हैं, जिसके चलते बागवानों को शुरुआत में ही फसल के बेहतर दाम नहीं मिल रहे हैं।
सरकार ने सेब को सख्त आदेशों में यूनिवर्सल कार्टन में ही बेचने के लिए कहा है।
एचपीएमसी के विक्रय केंद्रों पर यूनिवर्सल कार्टन की सप्लाई पहुंच गई है। बागवान नजदीकी विक्रय केंद्रों से नए कार्टन को खरीद सकते हैं। सफेद और भूरे रंग में सभी एचपीएमसी के सेंटरों में 66,000 यूनिवर्सल कार्टन की सप्लाई पहुंच गई है।जिला के बगीचों में सेब की अर्ली वैरायटी पूरी तरह तैयार हो चुकी है, लेकिन बागवानों को मंडियों में सेब लाने के लिए यूनिवर्सल कार्टन नहीं मिल रहे थे। इसकी वजह से सैकड़ों बागवानों की परेशानियां बढ़ गई थीं। फल मंडियों में केवल नाशपाती को ही पुराने कार्टन (टेलिस्कोपिक) में बेचने की छूट दी गई है। सरकार ने सेब को सख्त आदेशों में यूनिवर्सल कार्टन में ही बेचने के लिए कहा है।
यूनिवर्सल कार्टन की एक्ट्रा लार्ज पैकिंग में चार ट्रे होगी। इसमें एक पेटी में 80 सेब आएंगे। इसमें एक ट्रे में सेब की संख्या 20 होगी। इसके अलावा सभी साइज में पांच ट्रे होगी। वहीं लार्ज पैकिंग में पांच ट्रे के साथ एक ट्रे में 20 और पेटी में 100 सेब, मीडियम पैकिंग में एक ट्रे में 25 और पेटी में 125 सेब, स्मॉल में एक ट्रे में 30 और पेटी में 150 सेब, एक्ट्रा स्मॉल में एक ट्रे में 35 और पेटी में 175 सेब और पित्तु में एक ट्रे में 40 और पेटी में 200 सेब की पैकिंग होगी।
सरकार की ओर से जारी निर्देशों के अनुसार ही कार्टनों का प्रयोग करें।
सरकार की ओर से जारी निर्देशों के अनुसार ही कार्टनों का प्रयोग करें। इस संदर्भ में विनिर्देश एक्स्ट्रा लार्ज, लार्ज, मीडियम, स्मॉल, एक्स्ट्रा स्मॉल और पिट्टू अनुमानित भार प्रति पेटी मंडी में बेचने के लिए लाना अनिवार्य है। तय मापदंड के अनुसार ही पेटी की लंबाई, चौड़ाई और ऊंचाई होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि बागवान यूनिवर्सल कार्टन की पेटियां एचपीएमसी के विक्रय केंद्रों से ही खरीदें। यदि वे एचपीएमसी के अलावा अन्य जगहों से कार्टन खरीदते हैं तो उसकी गुणवत्ता में खराबी आने पर सरकार जिम्मेवार नहीं होगी।
प्रदेश की आर्थिकी में सेब का 5000 करोड़ रुपए योगदान
हिमाचल प्रदेश की आर्थिकी में सेब का योगदान 5000 करोड़ रुपए का है। ऐसे में प्रदेश में लंबे समय से यूनिवर्सल कार्टन को लागू करने की मांग उठ रही थी ताकि बागवानों को सेब का उचित दाम मिल पाए।
सेब पैकिंग को लेकर मापदंड तय
ग्रेड | सेब भार (ग्राम) | प्रति ट्रे सेब | बॉक्स में सेब | अनुमानित भार |
एक्स्ट्रा लार्ज | 221-280 | 20 | 80 | 20 (किलोग्राम) |
लार्ज | 181-220 | 20 | 100 | 20 (किलोग्राम) |
मीडियम | 141-180 | 25 | 125 | 20.125 (किलोग्राम) |
स्मॉल | 127-140 | 30 | 150 | 20.25 (किलोग्राम) |
एक्सट्रा स्माॅल | 111-126 | 35 | 175 | 20.75 (किलोग्राम) |
पितु | 90-110 | 40 | 200 | 20 (किलोग्राम) |