IBEX NEWS, शिमला
पशुओं में लंपी रोग ने हर जगह कहर बरपाया है। कृषि प्रधान राज्य हिमाचल प्रदेश के लोग परेशान है मगर जो वीडियो और फोटो में आपको दो बैल लेटे हुए दिखाई दे रहें है इसकी कहानी कुछ और है। यहां इन बैलों पर फैले लंपी रोग का काला साया नहीं अपितु बहुत ऊंचे ढांक से गिरकर ये दोनों मौत की गहरी नींद में पलक झपकते ही सो गए।
दोनों बैल मर गए और इन बैलों के मालिक सिर पर हाथ रखकर परेशान हो गए है कि अचानक देखते ही देखते ऐसे कैसे बैल मौत के मुंह में समा गए? ऐसे में जब ये बैल पशुओं के देवता कहलाए जाने वाले “बड़मू”देव शीला के पांव(तल) के पास गिरे है। बडमू शील के नाम से ये जगह प्रसिद्ध है। पहले क्यूंथल स्टेट की जुनगा देवता के तहत ये इलाका था। हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला और सोलन जिला की बाउंड्री पर ये बडमू शील है।
यहां गांव बीनू के मनीष का इनमे से एक बैल है। घने जंगल में पशुओं को हरी घास खाने छोड़ा गया था। अचानक दूसरा बैल आया और आपस में ये बुरी तरह भिड़ गए। अनियंत्रित होकर गहरी खाई में बड़मू शील के पास गिर गए।जब तक मनोज और उसके दोस्त नीचे ढांक के पास पहुंचे दोनो बैल मर चुके थे।मनोज का कहना है कि बहुत दुख हुआ,मैंने इस बैल को जन्म से पाला था। मेरा बड़ा नुकसान हो गया। घर में मां भी ये सुनकर दुखी है। सरकार मुआवजा दें तो अच्छा होगा। इनको भिड़ने से बचाने की भरपूर कोशिश की। लड़ते हुए एक बैल का सींग भी टूट गया सोचा अब तो शांत होंगे, मगर ऐसा न हुआ। थोड़ा भय इस बात का भी है कि ये दोनो पशुओं के देवता की शील (बड़ा पत्थर)के पास ही क्यों गिरे?
लोगों में यहां किवदंती है कि ये शील बीते जमाने में अद्भुत शक्तियां सिर पर उठाकर लाई थी।ऐसे में जब इस वज्र शीला पर बिनुआ (भार उठाने के लिए एक विशेष प्रकार का बनाया गया गोल सहारा ) के निशान भी है।बताते है किसी पहाड़ से इसे वो उठाकर कहीं ले जा रही थी कि अंधेरा छंट गया।सुबह के पहर होते देख अदृश्य शक्तियां शील को छोड़ कर भाग गई तब से यहीं है।
लेकिन दूसरा पक्ष जानकार ये भी बताते है कि इस शीला का एक विशेष अद्भुत आकर को देखते हुए पुराने जमाने में पूर्वजों ने पशुओं के देवता के रूप में प्रतिष्ठा इसमें की और तब से ये पूजनीय है। ये शील यहां कहां से आई कोई नही जानता। घने जंगल में इस शीला के आकार की ओर पूर्वज आकर्षित हुए और इसे पशुओं की रक्षा के लिए पूजा जाने लगा। कहना है कि अब बदलती जीवनशैली और भागम भाग की जिंदगी में इसकी पूजा समय समय से नहीं की गई परिणामस्वरूप अब प्रकोप तो देखने को मिलेंगे।
नहीं तो पहले हर साल हर घर से पशुओं की पूजा के लिए तत्परता दिखती थी। दूध और घी से इस शीला की पूजा की मान्यता रही है। गांव के ही पुरोहित राजेश शर्मा का कहना है कि बड़मू शील पशुओं के देवता का स्थान है और देवताओं में बड़मू देवता का उच्च स्थान भी है। कई अरसे से यहां पूजा भी नहीं हुई है। ये स्थान जंगलों में ही होता है। और भी कई जगह ऐसे पूजनीय स्थान है।अब जब पशुओं में जानलेवा रोग फैला है तो पूजा लाजमी है यहां बैलों का गिरना प्रकोप ही है और चेतावनी है।
गांव के ही लीला दत्त का कहना है कि पुराने जमाने से इस शील को पूजते आ रहे है।ये शील पशुओं के देवता के नाम से पूरे परगने में प्रसिद्ध है।