….हिमाचल प्रदेश शिक्षा विभाग के मंत्री के हल्के में स्थित इस स्कूल में हिमाचली नहीं नेपाल और बिहार के मजदूरों के बच्चें शिक्षा ग्रहण कर रहें है।
IBEX NEWS,शिमला
आप और हम कभी ये सोच भी नहीं सकते की “शिक्षा के मंदिर” स्कूल की ऐसी बदहाली भी हो सकती है। सरकारी खजाने से करोड़ों रुपए के नाम पर बजट बटोरने वाली नामी संस्थाएं ही नहीं स्वयं सरकार और शिक्षा विभाग को ये तस्वीरें कटघरे में खड़ा करने जैसी है। वो भी तब जब ये स्कूल हिमाचल प्रदेश शिक्षा मंत्री सुरेश भारद्वाज के विधानसभा क्षेत्र के दूरदराज का इलाका नहीं अपितु शिमला शहर के माल रोड से महज दस मिनट की पैदल वॉक पर है।नाम है राजकीय प्राथमिक पाठशाला जाखू।इस स्कूल का ये पुस्तकालय और अध्यापकों के लिए स्टाफ रूम है ।तस्वीर में साफ है कि एक जमाने से ये बंद है। दरवाजे पर जड़ा ताला जंग खा गया है और बच्चों को सुधारने वाली विशेष जड़ी बूटी के नाम से मशहर बिच्छु बूटी दरवाजे की देहरी पर खूब लहलहा रही है। हरी भरी घास तो उगी ही है साथ में शराब और बीयर की कई ब्रांड्स की खाली बोतलों के ढेर रही सही कसर पूरी कर रहें है। बैंच साथ में तस्वीर में दिख रहा है उसके पीछे ऐसी खाली दारू की विनिन्न ब्रांड की बोतलों का खजाना है।
डेढ लाख की लागत से भवन का जीर्णोद्धार एलिमेंट्री शिक्षा विभाग ने वर्ष 2017_18में किया ।
बताते है की तब से इस पुस्तकालय में जो किताबे रखी है वो अब सड़ गई होगी,इस कमरे की छत टपकती है।कभी इस दरवाजे को खोलने की जहमत नहीं उठाई गई क्योंकि स्कूल में ये काम न अध्यापकों के दायरें में है और न ही खाना पकाने वालों के। इस मामले में सार्वजनिक तौर पर बोलने के लिए कोई भी स्कूल का कर्मचारी मूंह खोलने को तैयार ही नहीं। पुस्तकालय के मुख्य दीवार पर टंगे नीले बोर्ड पर कोई क्या बोलना चाह रहा है ये घालमेल समझ से परे है।
स्कूल की मुख्य दीवार पर लिखे साक्षरता के नारों के भी यहीं हाल है। शरारती तत्वों ने ऐसे नारों का अर्थ से अनर्थ कर दिया है।
हजारों रुपए का मासिक वेतन लेने वाले कर्मचारियों ने स्कूल प्रांगण के ऐसी बदहाली का ठीकरा सीधे सरकार पर फोड़ा है की क्लास फोर स्कूल को नहीं दिया है। अध्यापक सफाई क्यों करें। 2अध्यापक यहां है और एक आंगनवाड़ी केन्द्र के लिए मशोबरा से कर्मचारी तैनात है।
बताते है कि सुबह सवेरे ही यहां स्कूल की घंटी बजने के साथ आपस में स्कूल में तैनातियों के बीच घमासान हो जाता है।हर दिन बच्चों के लिए जिस रसोई में खाना पकता है वहां रसोई गेट पर शराब,बीयर,सिगरेट और इस्तेमाल की हुई सिरेंजें यहां मिलती है।रोज रोज इसे हटाने के लिए तू तू ,मैं मैं शुरू होती है और कामों के बंटवारें तक पहुंचती है। बताते हैं कि मिलकर मिड डे मील बनता है।जिस दिन हलवा पकता है सभी में बांटा जाता है बाकि दिन अब अपना अपना खाना खाते है।स्टाफ रूम का कोई मूंह नहीं देखता।
ये सब खेला इसलिए भी यहां चल रहा है कि एक भी हिमाचली बच्चा इस सरकारी स्कूल में नहीं है।अधिकतर बच्चे नेपाली मूल के मजदूर वर्ग के है और कुछ बिहार राज्य के मजदूरों के बच्चे है।करीब बीस छात्र छात्राएं यहां आंगनवाड़ी को मिलाकर शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।
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रोचक ये भी है की इस स्कूल से चंद मिनटों की वॉक पर शिक्षा विभाग के एलिमेंट्री शिक्षा का कार्यालय है। अधिकारी यहां पूरे प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था संभालते है। नाक के नीचे इस स्कूल की दशा का जायजा लेने की सुध नहीं ली जा सकीं। मामले पर प्रतिक्रिया के लिए बार बार संपर्क की कोशिश की गई मगर उच्च बैठक की व्यस्तता के चलते बड़े साहब उपलब्ध नहीं हो पाए।
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शिक्षाविदों और इन बच्चों के भविष्य की चिंता करने वाले कई लोगों की मांग है कि हिमाचल प्रदेश सरकार इस स्कूल की ऐसी स्तिथि पर संज्ञान लें।हर बार जाखू दशहरे में रावन दहन के लिए मुख्यमंत्री मुख्यातिथि बतौर शिरकत करते रहें है।इस बार यानी कल वो इस रास्ते से गुजरे तो काफिला रोककर नजरे इनायत करें।वहीं शिक्षा मंत्री से भी यहां के लोगों का आग्रह है कि वे यहां भी देखें जब जाखू में बुराई पर अच्छाई की जीत का पाठ लोगों को पढ़ाने जायेंगे।
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स्थानीय लोगों ने नाम न छापने की तर्ज पर कहना है कि हैरत की बात ये है कि इस स्कूल के आसपास ऐसे कई बड़े अधिकारियों की सरकारी कोठियां है जो पूरे प्रदेश की लॉ एंड ऑर्डर व्यवस्था संभाले है।शाम ढलते ही इस स्कूल का प्रांगण कैसे नशेड़ियों का अड्डा बन रहा है उन्हें खुलेआम मनमानी कैसे करने दी जा रही है? सरकार इस स्कूल परिसर की घेराबंधी क्यों नहीं कर पाई है?ऐसे में जब यहां पढ़ाई करने वाले छोटे बच्चे हमेशा परिसर में नशेड़ियों की गंदगी झेलने को विवश है।उनके बाल मन पर बुरा असर पड़ रहा है।