लवी मेले की रामपुर में धूम। कोविड के बाद इस मेले की रौनक ने खींचे ग्राहक। जमकर हो रही स्थानीय उत्पादों की बिक्री। शिमला जिला उपायुक्त पहुंचे समापन अवसर पर।

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IBEX NEWS शिमला।

इस बार 11 से 14 नवंबर तक लवी मेला आयोजित हुआ। मेले में आज भी रामपुर, आनी, लाहौल-स्पीति, किन्नौर, शिमला जिले सहित बाहरी राज्यों के हजारों लोग खरीदारी करते हैं। अधिकारिक तौर पर मेला सिर्फ चार दिन का होता है लेकिन खरीदारी का सिलसिला करीब एक पखवाड़े से अधिक सयम तक चलेगा।आज जिला शिमला उपायुक्त आदित्य नेगी ने समापन अवसर पर शिरकत की।उन्होंने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय लवी मेला तीन शताब्दी पुराना है और यह पहाड़ी संस्कृति और सभ्यता का प्रतीक है। उन्होंने युवा पीढ़ी से आह्वान किया कि अपने रिति-रिवाजों और मेलों की संस्कृति पर गर्व करें और इनसे प्रेरणा लेकर सकारात्मक सोच को बढ़ावा दें।
उन्होंने बताया कि लवी व्यापार मेले में जनजातीय उत्पाद और संस्कृति की झलक मिलती है तथा स्थानीय लोगों को व्यापार एवं स्टाॅल स्थापित करने का अवसर मिलता है, जिससे विशेषकर ग्रामीण महिलाओं की आय में वृद्धि होती है और वे आत्मनिर्भरता की राह की ओर अग्रसर होते हैं।
उपायुक्त ने बताया कि बदलते सामाजिक परिवेश में अंतर्राष्ट्रीय लवी मेले का महत्व कम नहीं हुआ है और इसका नवीनतम स्वरूप अधिक से अधिक लोगों को आकर्षित करता है।
उन्होंने विभिन्न विभागों द्वारा लगाई गई प्रदर्शनियों का जायजा लिया और ईनाम वितरित किए, जिसमें कृषि विभाग अव्वल, पशु पालन विभाग द्वितीय तथा तृतीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण और बागवानी विभाग शामिल है।

लवी मेला, जिसका औपचारिक नाम अंतर्राष्ट्रीय लावी मेला है, भारत के हिमाचल प्रदेश राज्य के शिमला ज़िले के रामपुर बुशहर नगर में मनाया जाने वाला एक व्यापारिक मेला है। यह कार्तिक के महीने में मनाया जाता है और हिमाचल के सबसे प्रसिद्ध व महत्वपूर्ण मेलों में से एक है।

हिमाचल प्रदेश मेलों एवं त्योहारों के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। हर त्योहार और मेले का अपना एक खास महत्व है। कुछ मेले और त्योहार देश ही नहीं पूरे विश्व में अपनी एक खास पहचान कायम किए हुए हैं। 17वीं शताब्दी से शुरू हुआ लवी मेला आज भी अंतरराष्ट्रीय लवी मेले के नाम से पूरे विश्व में जाना जाता है। इस व्यापारिक मेले का प्रदेश की आर्थिक प्रगति में अहम योगदान है। पुराने समय में यहां के ऊन, पश्मीना, चिलगोजा और स्थानीय उत्पाद की भारत ही नहीं विदेशों में भी बड़ी मांग थी। उस दौर में बुशहर के तिब्बत के साथ अच्छे व्यापारिक संबंध थे। यह व्यापार इतना अधिक बढ़ा कि तिब्बत से आयातित माल की ब्रिकी के लिए लवी मेले का प्रचलन करना पड़ा।
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