IBEX NEWS, शिमला।
करीब 4साल के अबोध बालक क्याब्जे तकलुंग त्सेत्रुल रिनपोछे के पुनर्जन्म से जोड़कर देखते हुए बौद्ध परंपरा के अनुसार सोमवार को हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला के पंथाघाटी में उनका राज्याभिषेक होगा। इसके बाद अवतारी बालक ड्रेक मठ का सिंहासन का जिम्मा संभालेंगे।
क्याब्जे तकलुंग त्सेत्रुल रिनपोछे का पुनर्जन्म
हिमाचल प्रदेश में स्थित स्पीति घाटी के रंगरिक गांव मे हुआ पाया गया है जिनकी उम्र वर्तमान में चार साल सात माह है। इनके पिता सोनम छोपेल , माता केसांग डोलमा
स्पीति घाटी वासी है।
तकलुंग त्सेत्रुल रिनपोछे 2012 में तिब्बती
बौद्ध धर्म की न्यिंगमापा परंपरा के द्जोग्चेनपा गुरु और
सर्वोच्च प्रमुख में से एक थे और वर्तमान में शिमला के
कुसुम्टी क्षेत्र के पंथाघाटी में स्थित दोर्जे द्रक मठ के
सिंहासन धारक भी थे।
निंगमा परंपरा के उत्तरी खजाने (परिवर्तक)
के वंशज हैं।
तिब्बती बौद्ध धर्म की नियगमा परंपरा के ” छ: सर्वोच्च
मठों ” में से एक मठ “दोरजे ड्रैक मठ” इनमें से एक है।
शिमला में स्थित उनके मठ में आगमन को लेकर पूरी तैयारियां की गई है।पूरा मठ दुल्हन की तरह सजाया गया है।
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भगवान बुद्ध पुनर्जन्म के सिद्धांत को मानते है।
भगवान बुद्ध पुनर्जन्म के सिद्धांत को मानते है। जीव जिस प्रकार का कर्म करता है,उसी के अनुसार वह नया जन्म ग्रहण करता है। कर्म के कारण ही प्रतिसंधि होती है जिस कारण जीव दूसरे शरीर में प्रवेश करता है। कर्म और पुनर्जन्म का तारतम्य तब तक बना रहता है जब तक निर्वाण का साक्षात्कार न हो जाए,किंतु जब निर्वाण का साक्षात्कार हो जाता है तब कर्म और पुनर्जन्म भी रुक जाते हैं। सांसारिक पदार्थों में जो मनुष्य की आसक्ति है जब वह ज्ञान में बदल जाती है तो हमारे जन्म के कारणभूत कर्म भुने हुए बीजों के समान भविष्य के जन्म में सर्वथा असमर्थ होते है।कर्म से ही विपाक होता है और वीपाक कर्म से ही पुनर्जन्म,इस प्रकार ये संसार चल रहा है। पुनर्जन्म का सिद्धांत भवचक्र पर आधारित है। उत्पति प्रक्रिया ही भवचक्र है। भगवान बुद्ध को भी अनेक जन्म धारण करने पड़े। अपने पुनर्जन्मो में उनकी संज्ञा बोधिसत्तव अथवा बुद्धत्व प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील प्राणी थी।ज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान बुद्ध ने अपने पूर्वजन्मों का ज्ञान भी पाया।वे अपने पूर्वजन्मों के अनुभवों को स्थिरचित होकर ही याद करते हैं ।इन जन्मों में अकारण ही अभी से स्नेह करते थे। कभी मनुष्य योनि,कभी राजा,आचार्य,तपस्वी ,श्रेष्ठि के रूप में प्रकट होते है।जिनके जीवन का प्रमुख लक्ष्य दुखियों का नाश करना होता है। बुद्ध विजय काव्य में ऐसा जिक्र है जिसमें भगवान बुद्ध ने ये भी कहा है कि पहले कभी न देखे गए जिस व्यक्ति पर विश्वास प्राप्त कर मन खुश होता है वह पुनर्जन्म की प्रीति के कारण है।
वैदिक मत में भी यही मत मान्य है। आत्मा को नित्य शास्वत मानने के कारण वहां किसी प्रकार की विप्रतिपति नहीं है,परंतु बौद्धमत आत्मा के अस्तित्व को ही अस्वीकार करता है। बुद्ध के मतानुसार पुनर्जन्म का अर्थ एक आत्मा का दूसरे में प्रवेश करना नहीं है।बल्कि इसके विपरित पुनर्जन्म का अर्थ है विज्ञान प्रवाह की अविच्छिन्नता। जब एक विज्ञान प्रवाह का अंतिम विज्ञान खत्म हो जाता है तब अंतिम विज्ञान की मृत्यु हो जाती है और एक नए शरीर में एक नए विज्ञान का प्रादुर्भव होता है।इसी को बुद्ध ने पुनर्जन्म कहा है।
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अवतारी बालक
26 नवंबर को स्पीति से प्रस्थान कर चुके है और अब जिला किन्नौर के विभिन्न क्षेत्रों में रुक कर लोगों को अपना आशीर्वाद प्रदान कर रहें हैं।
सोमवार को शिमला के पंथाघाटी स्थित मठ
में भूटान के 7वें नामखाई निंगपो
रिनपोछे की अध्यक्षता में यांग्से रिनपोछे के बाल
काटने की रस्म होने जा रही है।
यह विशेष रूप से स्पीति घाटी और पूरे हिमालय क्षेत्र के
लिए शुभ मुहूर्तों में से एक माना जा रहा है। पहली बार स्पीति में किसी महान गुरु का जन्म हुआ है