हिमाचल प्रदेश के स्कूली बच्चों ने ट्राइबल ज़िला किन्नौर के छितकुल में तीन दिवसीय नेचर कैंप में सीखे कठोर जलवायु परिस्थितियों में पर्यावरण सरंक्षण के गुर।

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HIMCOSTE द्वारा पर्यावरण शिक्षा प्रोग्राम के अन्तर्गत राष्ट्रीय प्रकृति कैम्पिंग कार्यक्रम में सोलन ज़िला के कई छात्र छात्राओं ने लिया हिस्सा ।

अर्थ संस्था के साथ खूबसूरत बासपा घाटी में उच्च ऊंचाई वाले हिमालय की सुंदरता से मंत्रमुग्ध होकर वन्य अभयारण्य ट्रेक को भी उत्साहपूर्वक पूरा किया और एक्सपर्ट के माध्यम से पहचानी दुर्लभ वनस्पतियाँ।

भारत चीन सीमावर्ती गाँव छितकुल के नागस्थी में बर्फीली वादियों को भी निहारा, हुए मंत्रमुग्ध।

IBEX NEWS,शिमला।

हिमाचल प्रदेश के स्कूली बच्चों ने ट्राइबल ज़िला किन्नौर के भारत चीन सीमावर्ती गाँव छितकुल में तीन दिवसीय पर्यावरण जागरूकता शिविर में सरंक्षण के गुर सीखे।HIMCOSTE द्वारा आयोजित पर्यावरण शिक्षा प्रोग्राम के अन्तर्गत राष्ट्रीय प्रकृति कैम्पिंग कार्यक्रम में सोलन ज़िला के कई छात्र छात्राओं ने हिस्सा लिया।इस दौरान अर्थ संस्था के साथ खूबसूरत बासपा घाटी में उच्च ऊंचाई वाले हिमालय की सुंदरता से मंत्रमुग्ध होकर वन्य अभयारण्य ट्रेक को बच्चों ने शिक्षकों के दिशा निर्देशों के साथ उत्साहपूर्वक पूरा किया और अर्थ संस्था के एक्सपर्ट के माध्यम सेदुर्लभ वनस्पतियों की पहचान की।

विप्रो अर्थियन NGO की श्रेय ने मशरूम की प्रजातियों के बारे में बताया और अर्थ संस्था से मनीषा ने बच्चों को कुछ गतिविधियां करवाई।इस प्राकृतिक शिविर में राजकीय उच्च विद्यालय बिनु के विद्यार्थी अंजली और तनवीर ने किन्नौर की भगोलिक परिस्थितियों के बारे में जानकारी प्राप्त की

भारत चीन सीमावर्ती गाँव छितकुल के नागस्थी की वादियों को भी निहारा, बर्फ से ढकें पहाड़ों को देखकर मंत्रमुग्ध हुए।

इन स्कूलों के बच्चों और शिक्षकों ने लिया नेचर कैम्प में हिस्सा।


इन स्कूलों के बच्चों और शिक्षकों ने लिया नेचर कैम्प में हिस्सा।

पर्यावरण संतुलन और प्रकृति संपदा को बनाये रखने के लिए HIMCOSTE (एचपी काउंसिल फॉर साइंस टेक्नोलॉजी एंड एनवायरनमेंट )द्वारा पर्यावरण शिक्षा प्रोग्राम के अन्तर्गत राष्ट्रीय प्रकृति कैम्पिंग कार्यक्रम हिमाचल प्रदेश के ट्राइबल ज़िला किन्नौर के छितकुल में 13 से 15 मई तक तीन दिवसीय जागरूकता शिविर आयोजित किया।इसमें चयनित स्कूल के इको क्लब समन्वयक और दो छात्र नेचर कैंप में भाग लिया। डिप्टी डीईओ सोलन राजकुमार पराशर विज्ञान सुपर वाइज़र अमरीश इको क्लब सोलन जिला स्कूल के समन्वयक ने इस नेचर कैम्प में बच्चों का मार्गदर्शन किया। स्कूल शिक्षक मनोज कुमार ने बताया कि कार्यक्रम का उद्देश्य छात्रों और शिक्षकों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता और समझ पैदा करना है। प्रकृति के इस अनुभव में प्रकृति की सराहना और संरक्षण के प्रति संवेदनशीलता पैदा करने की बहुत बड़ी क्षमता है।

प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग आम तौर पर हालिया घटना है जहां खतरनाक तत्वों की उपस्थिति से प्राकृतिक अवयवों को नुकसान होता है जो ब्रह्मांड में असंतुलन का कारण बनता है और मानव जाति सहित सभी जीवित प्राणियों के लिए कई स्वास्थ्य खतरे पैदा करता है। हवा, पानी, शोर और वातावरण से देश प्रदूषित हो गया है। दुनिया भर में यह चिंताजनक स्तर पर पहुँच रहा है। जबकि हर कोई मानता है कि शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण अपशिष्ट निर्वहन और ऊर्जा की खपत में वृद्धि हुई है जिससे पर्यावरण प्रदूषण हो रहा है, गाँव इस खतरनाक राक्षस के जाल से बच नहीं पाए हैं।पर्यावरण जागरूकता को बढ़ावा देने पर्यावरण संरक्षक बनने और अगली पीढ़ियों के लिए एक उज्जवल भविष्य बनाने में ऐसे नेचर कैम्प में भाग लेने का एक आसान तरीका है।भूमि, वायु, पानी जैसे प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग बुद्धिमतापूर्ण ढंग से प्रयोग करना पर्यावरण संरक्षण के लिए एक आवश्यक कदम है जो केवल पर्यावरण के संबंध में जन-जागरूकता से ही सम्भव है।।


प्रकृति शिविर में सभी उम्र के लोगों को “प्रकृति के साथ फिर से जुड़ने” और इसकी सुंदरता और विविधता का अनुभव करने का अवसर प्रदान किया। बासपा नदी के मुहाने पर बने पुल और खेतों में फसलों का अनुभव प्राप्त किया ।इस शिविर में न केवल अद्वितीय वन पारिस्थितिकी तंत्र का पता लगाने का एक अद्भुत अवसर प्रदान हुआ , बल्कि वनवासियों के जीवन, उनकी संस्कृति, कृषि और परंपराओं के बारे में भी रूबरू हुए।पानी से चलते हुए घराट (चक्की) देखें कि कैसे यहाँ आज भी लोग खेतों ने पैदा ह्यूज अनाजों को इसमें पीसा जाता है।ग्लेशियरों से निकली जलधारों से उत्पन्न पानी को देखकर छात्र आनंदित हुए।

छितकुल हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में एक गांव है। लगभग 11,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित, किन्नर कैलाश की पृष्ठभूमि के साथ, छितकुल , बसपा नदी के साथ पूरी तरह से मनमोहक दृश्य प्रस्तुत करता है। यह भारत-तिब्बत मार्ग का आखिरी गांव और बसपा घाटी का पहला गांव है।छितकुल का प्राकृतिक सौन्दर्य अद्वितीय है। बर्फ से ढकी चोटियों, हरे-भरे घास के मैदानों और क्रिस्टल-स्पष्ट धाराओं के मनोरम दृश्यों से भरपूर ये गाँव है। यह गाँव शांति से घिरा हुआ है, जो इसे प्रकृति प्रेमियों और साहसिक उत्साही लोगों के लिए एक आदर्श स्थानबनाता है।

यहाँ स्लेट या लकड़ी के तख़्ते की छत वाले घर, एक वर्षों पुराना बौद्ध मंदिर हैं।छितकुल के सबसे आकर्षक पहलुओं में से एक इसकी पारंपरिक जीवन शैली है।सदियों पुराने रीति-रिवाजों, वास्तुकला और जीवन शैली को लोगों ने यहाँ संरक्षित रखा है। बच्चों ने यहाँ स्थानीय लोगों को खेती को भी समझा। साथ ही गांव की देवी को समर्पित प्राचीन छितकुल माता मंदिर (माथी मंदिर) एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल को भी निहारा।

मनोज कुमार ने बताया कि छितकुल वन्यजीव अभयारण्य में भी प्रकृति शिविर के दौरान दौरा किया गया।यहाँ विशेष रूप से कुछ दुर्लभ वन और जल पक्षियों के लिए भी हम उत्सुक रहें।शिविर गतिविधियों के हिस्से के रूप में बच्चों को अभयारण्य में मौजूद विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों से संबंधित अवधारणाओं को समझने में मदद मिली। छात्रों ने गाँव में जनजातीय लोगों से उनके रहन सहन , कृषि, ख़ान पान को लेकर बातचीत की। जिससे उन्हें अनाज की विभिन्न किस्मों और उनके चक्रों, क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता जैसी पर्यावरण-अनुकूल प्रौद्योगिकियों को देखने और सीखने में मदद मिली। .


यात्रा पर गए समूह ने एक ग्रामीण स्कूल का भी दौरा किया और वहां के बच्चों से बातचीत की और उनसे अभयारण्य के बारे में सीखा। छात्रों ने अपनी बातचीत और टिप्पणियों के बारे में अपने विचार साझा किए और व्यक्त किए।

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