मनजीत नेगी/IBEX NEWS,शिमला।
ठंगी के माघी मेला में प्रचंड ठंड भी ठगी सी रह जाती है। पल पल शून्य से कई डिग्री नीचे लुढ़कते तापमान में बर्फ की मोटी परत पर ग्रामीण महिलाएँ पारंपरिक खूबसूरत वेशभूषा में अपने इष्ट देव की नंगे पाँव पूजा करती है ऐसा लगता है मानो ठंड भी इनके साथ रम जाती है । घंटों तक मंदिर परिसर आस पास की जगहों में आठ दिनों तक विभिन्न तरीक़ों से क्रमवार पूजा अर्चना होती हैं ।सदियों पुरानी परंपरा से माघी मेला समारोह की ख़ास बात ये कि बुद्ध और हिंदू धर्म का संगम देखने को मिलता हैं । बीती रात समापन हुए इस आठ दिवसीय समारोह में हर एक दिन का अपना ही महत्व हैं।
मेले में देवता से मिले भरपूर आशीर्वाद से गाँववासी गदगद हैं। ऐसे में जब टिडोङ वैली के मध्य में बसने वाला ग्राम ठंगी का ऐतिहासिक माघ मेला इस साल भी पुरे हर्षो उल्लास के साथ मनाया गया।
सर्व प्रथम देवता रापुक शंकर का किल्ला से सत्तू और फाफरे का बकरा रूपी मूर्ति बनाकर देवता के पुजारी एवं कामदार सूर्य देव के अस्त होते ही सुनिकतेन स्थान पर ले जाकर पूजा होती है । रात को देवता के विराजमान होने की जगह शू पंठअँग जो पुजारी के घर स्थित है समस्त ग्राम वासी इकट्ठे होकर सदियों पुराना मार्मिक कार गीत जो एक पेड पर आधारित है गाया जाता है। बताते हैं कि इस दौरान प्रकृति माँ की भी पूजा होती हैं।
पहले दिन रात 11:30 बजे सुनसान रात्रि में देवता के पुजारी उनके सहयोगी देवता के माली पुजारी के घर से देवता के किल्ला में आते हैं । कोई अप्रिय आवाज़ जो आकस्मिक सुनाई देती है ग्राम वसियों को सुनाते हैं ।पूरे दिन इस बात की चर्चा रहती है।
दूसरे दिन सुबह समस्त ग्राम वासी पूजा के लिए दूध ,फूल लेकर कांसे या मिट्टी के बर्तन में टॉप पर माखन लगाकर मंदिर परिसर में आते हैं । सौरे (18) चिनाङ वाद्य यंत्रों से सात राग की भाँति 18 ध्वनियाँ निकालकर देवता को इंद्र लोक से आहवान करते हैं ।शाम को देवता को पूरी तरह सजाकर माघ माह में मंदिर परिसर ले जाया जाता है । इसे सानताङ छुकशीम यानी मंदिर परिसर मिलन कहते हैं । इस मिलन में लम्बर से देवी कुम्फीङ राकशु और सापाकतेन से किमशु का देवता से मुलाकात होती है ।
तीसरे और चौथा दिन ओमया एवं ञुमया कुशीम मैला होता है । इस गाँव से जो भी लड़कियाँ बाहर दूसरी जगहों पर शादी शुदा है उन्हें भोज पर बुलाकर व्यंजनों का पूरा आनन्द गाँववासी लेते हैं ।
पाँचवें दिन रूम पजाम यानी जितने भी फलदार पेड हैं उनका फल यानी (रूम) देवता के चरणो में रखा जाता है और आने वाले वर्ष में साल में अच्छा फसल हो उसकी कामना करते पूजा अर्चना होती है और महिलाएँ अपने खूबसूरत वेष भूषा में धूप ,मदिरा,छाछ लेकर जब मंदिर परिसर में आते है और देवता को धूप देते अत्यन्त मनमोहक दृश्य का नज़ारा होता है ।
छठा दिन सबसे बडा पर्व सावने कायाङ होता है ।
सर्व प्रथम वर्ष में जितने भी पहला बच्चा होता है उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना कर हलवा एवं चिलटा (पोच) का पूजा किया जाता है । देवता के गुरु द्वारा हाथ में चौंगरी लगाकर इसका आग़ाज़ किया जाता है ।
इसके बाद तीन गुर,देवता रापुक शंकर के पुजारी सावने थानाङ से पूजा पाठ कर आहिस्ता आहिस्ता मंदिर परिसर में प्रवेश करते हैं तीनो मालियों को जगाया जाता है और ग्राम वसियों को माली द्वारा अपना आदेश सुनाया जाता है । खूब मेला उस दौरान होता गई जिसका अपना ही महत्व होता है।
चारों दिशाओं में सावने देवता का वास माना जाता हैं जिनमें
पिगला सावने, परपो सावने, सावन सेसर, बारह सावने इनका विधिवत पूजा किया जाता है इसके बाद महिलाएँ एक विशेष येह जा नृत्य करती हैं जिसे ऊ कायाङ एवं दाङ कायाङ का यह तीनो दिन महिलाएँ पारम्परिक वेष भूषा में एसे लगते हैं जैसे इंद्र लोक से पारियाँ साक्षात धरती पर अवतरित हो आई हों।गाँव के पुरुष सफ़ेद छुआ खूबसूरत गलबंद ऊनी पजामा सिर पर फुल वाला टोपी शोभायमान लगता है । पूर्वजों ने जो सांस्कृतिक धरोहर विरासत में दिया है उसे ठंगी वालों ने अब तक संजोया है।
माघ मैले के दोरान 8 दिनों तक गाँव के मध्य ज़ोमखाङ में बोद्ध भिक्षुओं एवं भिक्षुणियों द्वारा युम पोथी काङग्युर जैसे महान ग्रन्थों का पाठ कर सुख समृद्धि की कामना करते है ।इसके अनुरूप सब मिलकर आठ दिनों तक यह खूबसूरत मेला लगता है और सब इसका आनन्द लेते है परम पूज्यनीय देवता रापुक शंकर भी प्रसन्न चीत हो कर अपना शुभ आशीर्वाद प्रदान करते है ।