मनजीत नेगी/IBEX NEWS,शिमला।
छोटी काशी शिव की धरती मंडी के रिवालसर में पौराणिक शिवस्थल अपने असितत्व को खोने की कगार पर है।250-300 साल पुराने शिव देवस्थल की गरिमा किस कदर छलनी हो रही हैं इससे जीता जागता उदाहरण शायद ही कहीं मिले।शिव की पिंडी के आसपास लोग जूतों के साथ क़दमताल करते है । एक सरकारी स्कूल के बच्चे यहाँ पैग शैग लगाने दारू पार्टी को आते हैं और नशेडियों का पसींदीदा सैरगाह बन रहा हैं और पास में इस स्थल के पुजारी रहें पूर्वजों की समाधि पर लोग आराम फ़रमाते आये दिन दिखते हैं।
इतना ही नहीं दूसरे धर्म के लोग इसे अपने धर्म का उदगम मानने लगे है।स्थानीय लोग इससे बेहद परेशान हैं ।अंतर्राष्ट्रीय महाशिवरात्रि मेले में एक और जहां छोटी काशी शिवमयी हुई है वहीं इस सदियों पुराने मंदिर में नंदी के गले की टूटी हुई मुण्ड माला ,पूँछ में गोपाल जी की ग़ायब मूर्ति, शिव पिंडी में सालों से न हो पाये ज्लाभिषेख राज्य सरकारों और हुक़ूमरानों की चुस्त कार्यशैली को कठघरे में ला रही हैं। ऐसे में जब दूसरे धर्म इस पवनस्थली में खूब फलफूल रहें है तो हिंदू धर्म को लेकर उदासीनता आने वाले समय की पीढ़ियों के लिए घातक हो सकती है।सरकारें क्यों ऐसे स्थलों को अपने अधीन लेने से कतराती हैं जिससे अच्छीख़ासी आमदनी होती हैं और सरकारी कोष को संजीविनी मिल सकती है? तर्क ये कि लोगों की आस्था पर जहां एकाधिकार से कुठाराघात हो रहा हो उन्हें पूजा का अधिकार नहीं।
इस स्थल की जो वर्षों से देखभाल का जिम्मा सम्भाले हैं वो पूरी तरह आश्वस्त हैं कि तथ्य एकदम सच्च हैं और अब सब ठीक करेंगे।सरकार चाहे तो हमसे भी पाँच सात लाख रुपये लें और इसका विकास करके दें। उन्हें मलाल हैं कि लोगों कि आस्था कम हो गई हैं और आस्तिक न होने की वजह से स्थल की ऐसी दयनीय स्थिति हैं। एक सरकारी स्कूल के बच्चों की शिकायत प्रधानाचार्य तक को की गई कि बच्चे यहाँ पार्टी मनाते हैं।
रिवालसर के शिव मंदिर के पुजारी और हलवाई की दुकान के मालिक हंसराज कैमरा पर भी इस संबंध में सभी उपरोक्त तथ्य स्वीकार कर रहे है और बताते है यहाँ के राजा की रानी ने हमारे पूर्वजों को शिव पिंडी पूजा के लिए दी थी।तब से ये हमारे अधीन हैं। हम इसके सरंक्षक हैं। ख़स्ता हालत के भागीदार लोगों को ठहराते हुए हंसराज का आगे आरोप हैं कि लोगों में अब आस्था नहीं और डर से आज पूजा करते हैं। एक एक को कौन देखेगा? नंदी बैल का सुधार करूँगा। गेट भी लगाने की सोच रहा हूँ। सरकार चाहे तो इसके विकास के लिए हमारी मदद करें।
इस स्थल की स्तिथि को लेकर स्थानीय लोग बेहद परेशान हैं। हिमाचल प्रदेश की नई सरकार से उम्मीद हैं कि इस और सरकार सुध लेगी। नगर पंचायत के पूर्व उपाध्यक्ष और वर्तमान सदस्य कश्मीर सिंह यादव का कहना हैं कि मामला बैठक में रखा जाएगा।जबकि स्थानीय वासी चूड़ामणि बताते हैं कि रिवाल्वर झील से गढ़वे भरकर शिव स्थल की पिंडी पर सैंकड़ों लोग बारिश के लिए प्रार्थना करते थे और पिंडी का पानी सीधे झील ने गिरता था जिससे बारिश होती थी। अब ये परंपरा इस स्थल की अनदेखी और एकाधिकार से नहीं रही।
भूप सिंह ठाकुर का कहना है की सरकार पर्यटन की दृष्टि से इसे अपने अधीन ले विकसित करें। आपातकाल में शिव की महीमा अपने आप में दिखती थी।इस स्थल जा एकाधिकार बंद हो ।
नगर पंचायत रिवालसर के पूर्व चेयरमैन बंसी लाल का कहना है कि रिवालसर में हिंदू धर्म के असितत्त्व को बचाने के सरकार प्रयास करें । इस स्थल के जीर्णोद्धार के लिए सरकार संज्ञान लें।पुरातत्व विशेषज्ञों की मदद से उद्धार को महत्व दिया जायें।
रिवाल्सर हिंदू, सिख और बौद्धों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थान है। रिवालसर में प्राकृतिक झील अपने तैरते ईख द्वीपों और मछलियों के लिए प्रसिद्ध है। झील के परिधि के साथ हिंदू, बौद्ध और सिख मंदिर मौजूद हैं। किंवदंती यह है कि महान शिक्षक और विद्वान पद्मसंभव ने तिब्बत को रिवाल्सर से उड़ान भरने के लिए अपनी विशाल शक्तियों का उपयोग किया। ऐसा माना जाता है कि रिवाल्सर झील में तैरने वाले ईख के छोटे द्वीपों में पद्मसंभव की भावना है। पद्मसंभव की एक मूर्ति प्रतिमा भी रिवाल्सर में बनाई गई है। माना जाता है कि ऋषि लोमास ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अपनी तपस्या की है। गुरुद्वारा श्री रिवाल्सर साहिब दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी से जुड़े हुए हैं, जिन्होंने पहारी राजाओं को मुगलों के खिलाफ अपनी लड़ाई में एकजुट होने के लिए बुलाया था। सभी धर्म के लोग बेसाखी पर पवित्र स्नान के लिए रिवाल्सर आते हैं। रिवाल्सर में तीन बौद्ध मठ हैं। इसमें गुरुद्वारा है जिसे 1 9 30 में मंडी के राजा जोगिंदर सेन ने बनाया था। हिंदू मंदिर हैं जो झील के साथ भगवान कृष्ण, भगवान शिव और ऋषि लोमा को समर्पित हैं।
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ऐसा माना जाता है कि मंडी के राजा अर्शधर को जब यह पता चला कि उनकी पुत्री ने गुरु पद्मसंभव से शिक्षा ली है तो उसने गुरु पद्मसंभव को आग में जला देने का आदेश दिया, क्योंकि उस समय बौद्ध धर्म अधिक प्रचलित नहीं था और इसे शंका की दृष्टि से देखा जाता था। बहुत बड़ी चिता बनाई गई जो सात दिन तक जलती रही। इससे वहाँ एक झील बन गई जिसमें से एक कमल के फूल में से गुरु पद्मसंभव एक षोडशवर्षीय किशोर के रूप में प्रकट हुए।इस झील जा पानी घड़ों में भरकर शिवपिंडी पर चढ़ाया जाता था और फिर ये पानी झील में गिरता था। हिंदू धर्म की आस्था आज झील में मछलियों को चारा खिलाने भर हैं।