big breaking। कहीं आपके नौनिहाल भी “मोबाइल हूकर्स “के शिकार तो नहीं? बच्चों को चुप कराने,ख़ाना खिलाने के लिए यदि आप मोबाइल दिखाकर पीछा छुड़ा रहें हैं तो मानसिक, शारीरिक तौर पर जाने अनजाने उनकी पूरी ज़िंदगी को खोखला करने की गलती कर रहें हैं।डिजिटल हथियार देकर“मोबाइल हूकर्स”बनाकर नन्हें मन पर गहरी चोट कर उन्हें अकेला रहने की आदत ,कमजोर,डिप्रेशन, इंसोम्निया, एंक्साइटी,आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ज़िद्दी,चिड़चिड़ा ,इंटरनेट एडिक्शन डिसऑर्डर जैसी गंभीर बीमारियों का शिकार बना रहा है। आलम ये कि अब बच्चों को अस्पतालों तक चिकित्सा सुविधा के लिये अभिभावक पहुँच रहे है ये देवभूमि हिमाचल में अलार्मिंग स्तिथि बनने लगी है। कैसे? बता रहें हैं IGMC मनोचिकित्सा विभाग के विभागध्यक्ष देश के जाने माने मनोचिकित्सक डॉक्टर दिनेश दत्त शर्मा.. आप भी सुनिए और पढ़िए और समझिए उनसे एक्सक्लूसिव बातचीत में आँखें खोलने वाला कड़वा सच्च और अपने बच्चों के भविष्य को बचा लीजिए। क्लिक करें IBEX NEWS, शिमला।

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मनजीत नेगी/ IBEX NEWS,शिमला।

छोटी उम्र के बच्चों के फोन के इस्तेमाल और इससे होने वाले दुष्प्रभाव के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। छोटी उम्र का दूधमुहा या टॉडलर बच्चा कई कई घंटे तक मोबाइल में खोया रहता है। माता-पिता को बच्चे के फोन ज्ञान पर गर्व होता है। लेकिन बच्चे के रोने या किसी तरह की ज़िद करने पर बहलाने के लिए फोन देना उसे इस नई लत का ग़ुलाम बनाने का पहला क़दम है। बच्चों को चुप कराने,ख़ाना खिलाने के लिए यदि आप मोबाइल दिखाकर पीछा छुड़ा रहें हैं तो मानसिक, शारीरिक तौर पर जाने अनजाने उनकी पूरी ज़िंदगी में ज़हर घोलकर स्वास्थ्य को खोखला करने की गलती कर रहें हैं।डिजिटल हथियार देकर“मोबाइल हूकर्स”बनाकर नन्हें मन पर गहरी चोट कर उन्हें अकेला रहने की आदत ,कमजोर,डिप्रेशन, इंसोम्निया, एंक्साइटी,आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ज़िद्दी,चिड़चिड़ा ,इंटरनेट एडिक्शन डिसऑर्डर जैसी गंभीर बीमारियों का शिकार बना रहा है। आलम ये कि अब बच्चों को अस्पतालों तक चिकित्सा सुविधा के लिये अभिभावक पहुँच रहे है ये देवभूमि हिमाचल में अलार्मिंग स्तिथि बनने लगी है। कैसे? बता रहें हैं IGMC मनोचिकित्सा विभाग के विभागध्यक्ष डॉक्टर दिनेश दत्त शर्मा.. आप भी सुनिए और पढ़िए और समझिए उनसे एक्सक्लूसिव बातचीत में आँखें खोलने वाला कड़वा सच्च और अपने बच्चों के भविष्य को बचा लीजिए।उन्होंने अपील की है की बच्चों को मोबाइल देना बिलकुल बंद करें संभव हो तो दूसरे खेल विकल्पों पर फोकस करें।समाज में मोबाइल का इस्तेमाल बढ़ रहा है । ज़िंदगी में मोबाइल आज बहुत ही महत्वपूर्ण वस्तु बन गई है।

कोविड के दौरान बच्चों की पढ़ाई ऑनलाइन कर दी गई थी जिससे सभी बच्चों को मोबाइल रखना अनिवार्य हो गया था परिणामस्वरूप पढ़ाई के लिये वे यूज़ कर रहें हैं मगर इसके अलावा सोशल मीडिया इंस्टाग्राम, फेसबुक्स ,गेम्स में बहुत ज़्यादा समय बिता रहें हैं। ऐसे केस भी आते हैं कि बच्चे पसंदीदा कार्टून कैरेक्टर की तरह ही हरकतें करने लगते हैं। इस कारण उनके दिमागी विकास में बाधा पहुंचती है।

कभी कभी कुछ बच्चे वाल्नरेबल (नवजात शिशु या अत्यधिक संवेदनशील किशोरी की तरह शारीरिक या भावनात्मक रूप से घायल होने के लिए खुले )होते है वे एडिक्शन के स्तर तक भी पहुँच सकते है। मोबाइल में ज़्यादा समय बिताने से इंटरनेट एडिक्शन डिसऑर्डर का शिकार बन जाते हैं । अगर मोबाइल उनसे लेते है या इनकार करते हैं यो वे चिढ़चिढ़े ,ग़ुस्सैल बन रोने लगते है और कई प्रकार की व्यवहार की समस्या उनमें आ जाती है ।बच्चे “मोबाइल हूकर्स”बन रहे हैं और नन्हें मन पर गहरी चोट कर उन्हें समाज में अकेला रहने की आदत ,कमजोर,डिप्रेशन, इंसोम्निया, एंक्साइटी,आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ज़िद्दी,चिड़चिड़ा ,इंटरनेट एडिक्शन डिसऑर्डर जैसी गंभीर बीमारियों का शिकार बना देता है ।इससे सतर्क होने ही आवश्यकता है ।प्रदेश के सबसे बड़े चिकित्सा संस्थान IGMC शिमला के मनोचिकित्सा विभाग के विभागध्यक्ष डॉक्टर दिनेश दत्त शर्मा से IBEX NEWS ने इस संबंध में और भी सील किए पेश है उनसे बातचीत के कुछ अंश जो आपके नौनिहालों के भविष्य को मोबाइल के इस्तेमाल के ख़तरे से बचा सकते है।

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IBEX NEWS प्रश्न…छोटे बच्चों के लिए किस प्रकार मोबाइल इस्तेमाल ग़लत है?

जवाब…….छोटे बच्चों को मोबाइल भूलकर भी न दे। ये घातक है । आज के दिनों में अभिभावक ख़ुद बच्चों को मोबाइल दे देते हैं ।बहुत छोटे बच्चों को भी अब मोबाइल दे दिया जाता हैं। ये ठीक नहीं है।जब बच्चा मोबाइल के साथ ज़्यादा रहता हैं तो ज़्यादा समय बिताने से वे वर्चुअल वर्ल्ड में रहते है। वो अकेला रहना पसंद करता है और इससे मानसिक विकार उभरते हैं।आमतौर पर सोशल इंटरेक्शन कम होने लगती है। इस बारे में अध्ययन बताते हैं की इससे नींद की कमी,डिप्रेशन और एंक्साइटी उभरती है।अच्छे व्यक्तित्व जा विकास नहीं हो पाता।

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IBEX NEWS प्रश्न

जिनमें पहले से ही एंक्साइटी, डिप्रेशन हो? ऐसे मामलों के लिए मोबाइल जा इस्तेमाल कितना सही है?आमतौर पर लोग टाइम पास के लिये मोबाइल जा इस्तेमाल करते हैं?

जवाब… जो पहले से ही एंक्साइटी, डिप्रेशन के शिकार है वो मन बहलाने के लिए मोबाइल यूज़ कर रहे हैं मगर ज़्यादा टाइमिंग मानसिक विकारों को और ज़्यादा प्रभावित करती है।ऐसे लोग अकेलापन , सोशल डिस्टेंस्टिंग बढ़ाने लगते है जिससे गंभीर मानसिक रोग के पनपने जा ख़तरा गहरा जाता हैं।

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IBEX NEWS प्रश्न

मोबाइल सबसे अधिक किस समूह या आगे फैक्टर के लिए हानिकारक हैं?पाँच साल,दस साल से कम आयु वर्ग ? किस ऐज फैक्टर को सबसे अधिक मोबाइल प्रभावित कर रहा हैं?

जवाब……सभी बच्चों के समूह के लिए मोबाइल हानिकारक है। व्यवहार संबंधी समस्या इससे पनप रही है। छोटे बच्चों में भी ये समस्या देखी गई हैं। किशोरावस्था में तो यकीनन ये कठिनाई ज़्यादा हैं।

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IBEX NEWS प्रश्न

चिकित्सा सुविधा के लिए आईजीएमसी आपके विभाग में इलाज को लोग पहुँच रहे हैं?

जवाब…

कोविड के दौरान पढ़ाई के लिए इंटरनेट आवश्यक था। उस दौरान अभिभावकों को समस्या ये आ गई कि बच्चों से मोबाइल वापस लेना मुश्किल हो गया ऐसे में जब मोबाइल जरूरी भी नहीं है।ग़ुस्सा ,बैचेनी बच्चों में बढ़ गई। तो अभिभावक ओपीडी में पहुँचे और उनकी काउन्सलिंग की। ओपीडी में ऐसे केस बढ़ ही रहे हैं।

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IBEX NEWS प्रश्न

मोबाइल एडिक्शन मानसिक , शारीरिक रूप से घातक हैं, तो ऐसे ने क्या आईजीएमसी में डी-एडिक्शन OPD या केंद्र है? क्या विशेषज्ञ भी मौजूद हैं?

जवाब… बिलकुल। आईजीएमसी में मोबाइल की बुरी लत छुड़ाने के डी-एडिक्शन OPD भी मौजूद हैं और अब बढ़ते मामलों को देखते हुए अलग ओपीडी शुरू की हैं। आईजीएमसी में डीएम डी-एडीक्शन (डॉक्टरेट ऑफ़ मेडिसिन) डॉक्टर निधि शर्मा विशेषज्ञ है। एक तो नशे की लत होती है दूसरी मोबाइल के इस्तेमाल से उपजी लत को बिहेव्यरल एडिक्शन कहते है। इससे मानसिक बीमारियों के शिकार होते है। इसको दूर करने के लिए विशेष ओपीडी में उपचार शुरू किया है।

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IBEX NEWS प्रश्न

अभिभावकों को क्या राय देते है?कैसे बच्चों में मोबाइल हैबिट्स या मोबाइल से दूर रखें?कैसे बच्चों को हैंडल करें?

जवाब…इसमें सबसे पहले इंडिविजुअल स्तर पर अस्सेस करते है। बिहेवियर को स्टडी किया जाता हैं ।व्यावहारिक रूप से क्या दिक्कते आई हैं?किस तरह की पैरेंटिंग वे कर रहें हैं? इसमें अभिभावकों को भी पैरेंटिंग टिप्स देते हैं।किस तरह से बच्चों को समय देना हो।इंटरनेट चलाने में कोई दिक़्क़त यदि बच्चों को पेश रही है तो उन्हें स्वयं सुपरवाइज़ करके बताये ताकि वे ज़्यादा उलझे न।बिहेव्यरल मैनेजमेंट करते हैं। घरेलू कामों में भी उनकी मदद ले।

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IBEX NEWS प्रश्न

बच्चों को कैसे बिजी रखे? अधिकतर अभिभावक दोनों आजकल के जमाने में जॉब पर है। शिमला में प्लेग्राउण्ड भी कम ही हैं।

जवाब

जब भी बाहर से पैरेंट्स आये अपने बच्चों को क्वालिटी टाइम दें। उन्हें कई दूसरी गेम्स सिखायें। उनके साथ खुलकर बातचीत करें।माता-पिता एक राय रखें। यदि मोबाइल या किसी और चीज़ के लिए मां ने मना किया है तो पिता भी मना करें। वरना बच्चे यह जान जाते हैं कि किससे परमिशन मिल सकती है। 

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IBEX NEWS प्रश्न

डी-एडिक्शन क्लिनिक में सभी समूह की काउंसलिंग होती है। तो छोटे बच्चों के लिए अलग ट्रीटमैंट का विकल्प क्या हैं?

जवाब…..निकट भविष्य में छोटे बच्चों के लिए विशेष ओपीडी की तैयारी हैं इसको CGC कहते हैं यानि चाइल्ड गाइडेंस क्लिनिक।इसमें बच्चों की ही सभी तरह की काउंसलिंग होगी।

क्यों है खतरनाक मोबाइल और क्या करें पेरेंट्स ।
. 12 से 18 महीने की उम्र के बच्चों में स्मार्टफोन के इस्तेमाल की बढ़ोतरी देखी गई है। ये स्क्रीन को आंखों के करीब ले जाते हैं और जिससे आंखों को नुकसान पहुंचता है।
.बच्चों को जल्दी चश्मा लगने, आंखों में जलन और सूखापन, थकान जैसी दिक्कत हो रही हैं। 
स्मार्टफोन चलाने के दौरान पलकें कम झपकाते हैं। इसे कंप्यूटर विजन सिंड्रोम कहते हैं।

 .बच्चे मोबाइल का इस्तेमाल अधिकतर गेम्स खेलने के लिए करते हैं। वे भावनात्मक रूप से कमज़ोर होते जाते हैं ऐसे में हिंसक गेम्स बच्चों में आक्रामकता को बढ़ावा देते हैं।
.बच्चे अक्सर फोन में गेम खेलते या कार्टून देखते हुए खाना खाते हैं। इसलिए वे जरूरत से अधिक या कम भोजन करते हैं। अधिक समय तक ऐसा करने से उनमें मोटापे की आशंका बढ़ जाती है।

.बच्चों का इमोशनल ड्रामा सहन न करें। अपने जवाब या राय में निरंतरता रखें। एक दिन ‘न’ और दूसरे दिन ‘हां’ न कहें। रोने लगें तो ध्यान न दें। बाद में प्यार से समझाएं। 

बॉक्स।
.इंटरनेट पर कुछ अच्छा और ज्ञानवर्धक है तो उसे दिखाने के लिए समय तय निर्धारित करें और साथ बैठकर देखें। स्मार्ट टीवी का इस्तेमाल कर सकते हैं इससे आंखों और स्क्रीन के बीच दूरी भी बनी रहेगी।

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