शीत मरुस्थल के नाम से देशभर में मशहूर लाहौल स्पीति के लोगों पर भी पश्चिमी सभ्यता का जादू सिर चढ़ के बोल रहा हैं। यहां बदली जीवनशैली का ही परिणाम है कि अब लोगों को ऐसी बीमारियां अपनी चपेट में ले रही है जो पहले यहां बहुत कम ही होती थी। पिताशय की पत्थरी यानी गॉल ब्लैडर स्टोन की बीमारी यहां अपनी जड़े जमाने में कामयाब हो चुकी है और रक्तचाप के मामले भी अधिक है। खान पान,रहन सहन में बदलाव के नतीजों के कारण स्वच्छ वातावरण में रहने वाले लोगों को ये बीमारियां सबसे अधिक सता रही है। ये चौंकाने वाले तथ्य हिमाचल प्रदेश के सबसे बड़े चिकित्सा संस्थान इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज शिमला के संबधित विभाग के विशेषज्ञ डॉक्टरों ने उजागर किए है।
सर्जरी विभाग के विशेषज्ञ डॉक्टर आरएस जोबटा और दिल रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉक्टर (प्रोफेसर )पीसी नेगी ऐसी रिपोर्ट की पुष्टि कर रहे है। प्रदेश सरकार के जनजातीय विकास विभाग और हिमालय की गोद में दूर दराज के कठिन इलाकों में बसे मरीजों की नब्ज टटोलने वाली अभ्योदया संस्था के सहयोग से आयोजित मल्टी स्पेशलिटी मेडिकल शिविर में ये सामने आया है। 3दिवसीय ये शिविर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र काजा स्पीति में आयोजित किया गया। 3000 कुल मरीज शिविर में पहुंचे इनमे सबसे अधिक मामले पित की पत्थरी के सामने आए। अल्ट्रासाउंड एवम चिकित्सीय जांच पर पता चला कि उन्हें गॉल ब्लैडर स्टोन है।एसिड पेप्टिक अल्सर,हेपेटाइटिस की बीमारी उम्मीद से अधिक इन इलाकों में पांव पसार रही है। चिकित्सकों का कहना है कि पारंपरिक तरीके के खान पान में तब्दीली, ठंडे मौसम के कारण रसोई में अधिक गर्मी में बैठना और पेय पदार्थों का कम इस्तेमाल भी एक कारण है। शरीर में पानी की मात्रा ठंडे मौसम में सही होनी चाहिए। आराम परस्त जीवनशैली भी इसका बड़ा कारण है।
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सपिति जो कि ग्रेटर हिमालय की गोद में है इससे एक दिन पहले सीएचसी पूह किन्नौर जिला में भी ऐसा 2दिवसीय मेडिकल शिविर आयोजित किया गया था। दोनो के तुलनात्मक अध्ययन से हैरान करने वाले ये पहलू सामने आए। काजा सीएचसी में 300अल्ट्रासाउंड किए गए जिसमे से 100 लोगों को गॉल ब्लैडर स्टोन की शिकायत सामने आई।पूह में 180 अल्ट्रासाउंड में महज 20 मरीज इस बीमारी के सामने आए।
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डॉक्टरों का कहना है कि ऐसे मामलों की बढ़ती संख्या को देखते हुए स्वास्थ्य संबधी नीति निर्धारकों को संज्ञान लेना चाहिए। विस्तृत जानकारी एकत्रित कर समाधान के लिए कदम उठाने की जरूरत है।चिकित्सकों ने अभ्योदया संस्था का आभार जताते हुए कहा कि दूरगामी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का दर्द समझने के लिए बेहतरीन काम किया जा रहा है।
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शिविर में हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर पीसी नेगी, डॉ राजेश शर्मा, चर्म रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अजीत नेगी, मेडिसन के डॉ प्रमोद जरेट, डॉ रामचंद्र नेगी, आंख, कान गला रोग विभाग के डॉ रमेश आजाद, आंखों के डॉक्टर विनोद कश्यप, दांतो के रोग के डॉक्टर निशांत नेगी, सर्जरी के डॉक्टर आर एस जोबटा ,डॉक्टर बलवंत नेगी, रेडियोलोजी के अनुपमा जोबटा, स्त्री रोग के डॉ करतार नेगी ,सोनम नेगी सहित अन्य उपस्थित रहे।
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पित्त का हमारे शरीर के लिए क्या महत्व है?
पित्त के बिना पाचन क्रिया की शुरुआत नहीं हो सकती| गॉल ब्लैडर और लीवर के मध्य बाइल डक्ट नामक एक छोटी सी नाली होती है| यह नली गॉलब्लेडर को पित्त तक पहुँचाने का काम करती है| जैसे ही व्यक्ति के शरीर में भोजन जाता है वैसे ही यह नाली पित्त को एक छोटी आंत के उपयुक्त हिस्से में भेज देती है| यहाँ से आरम्भ होती है पाचन क्रिया । खाना पचने के लिए हमे बॉईल जूस की आवशयकता होती है, ये जूस लिवर में बनता है और पित्ताशय का काम होता है की इसे भोजन से पहले संग्रहित करना, जिस कारण से भोजन से पहले ये पित्ताशय पूर्ण रूप से भरा होता है| भोजन के बाद , पित्ताशय बिलकुल खाली हो जाता है क्योंकि इसके द्वारा संग्रहित किया गया जूस भोजन को पचाने के लिए काम आता है| इस लिए पित्ताशय लिवर के नीचे पाया जाता है।
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हमारे पित्त में कोलेस्ट्रॉल जमने लग जाता है तो ये कुछ छोटे छोटे पथरों के रूप में उजागर होने लग जाता है| ये स्थिति हमरे पित्त के लिए सही नहीं हैं।