एक्सक्लूसिव:किन्नर-कैलाश यात्रा 1 अगस्त से 15 अगस्त तक आयोजित होगी किन्नौर की सबसे ऊँची चोटी और पवित्र स्थल किन्नर-कैलाश यात्रा।

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ये शिखर यहाँ के देवी देवताओं का भी तीर्थ है।मान्यता है कि पर्व विशेष में किन्नौर के देवी देवता जनता के लिए अच्छी फसल ,सुख साधन की सौगात लाते हैं।

यात्रा को सुरक्षित व सुगम बनाने के लिए समय रहते आवश्यक तैयारियां पूरी करने के अधिकारियों को निर्देश…जगत सिंह नेगी

मनजीत नेगी/IBEX NEWS,शिमला।

हर वर्ष की भांति श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र विश्वप्रसिद्ध किन्नर-कैलाश की यात्रा 01 अगस्त से आरंभ होगी तथा 15 अगस्त तक चलेगी।यात्री ऑनलाइन या आफलाइन किसी भी माध्यम से इस यात्रा के लिए पंजीकरण करवा सकते है। आफलाईन पंजीकरण के लिए जिला पर्यटन विभाग से सम्पर्क किया जा सकता है तथा ऑनलाइन पंजीकरण के लिए http://hpkinnaur.nic.in पर जाकर पंजीकरण किया जा सकता है। 

प्रतिदिन यात्रा के लिए कुल 350 व्यक्तियों की अनुमति रहेगी जिसमें 200 यात्रियों का पंजीकरण ऑनलाइन तथा 150 यात्रियों का पंजीकरण ऑफलाइन माध्यम से रहेगा।अब इस वर्ष यात्रियों को मान्यता प्राप्त चिकित्सक से चिकित्सा प्रमाण-पत्र साथ लाना अनिवार्य रहेगा तथा चिकित्सा प्रमाण-पत्र जारी करने की अवधि यात्रा के 15 दिन पूर्व से अधिक न हो।

किन्‍नर कैलाश हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में तिब्बत सीमा के समीप स्थित 6473 मीटर ऊँचा  एक पर्वत है जो हिन्दू धर्म में आस्था रखने वालों के लिए विशेष धार्मिक महत्त्व रखता है।इस पर्वत की विशेषता है इसकी एक चोटी पर स्थित प्राकृतिक शिवलिंग।किन्नर कैलाश की खास बात ये है कि यहां पर स्थित शिवलिंग बार-बार रंग बदलता है। किन्नर कैलाश की प्रमुख चोटी सूर्य की किरणों के कारण प्रातः से शाम तक विविध वर्णों में दिखाई देती है।सुबह के समय इसका रंग अलग होता है और दोपहर के समय सूरज की रोशनी में इसका रंग बदला हुआ दिखता है और शाम होते ही इसका रंग फिर से बदल जाता है।मान्यता है कि ये देवी देवताओं का सनिवास स्थान है तो मरने के बाद मृत आदमी की आत्मा किन्नर कैलाश पर जाती है।किन्नर कैलाश पर एक पत्थर सीधा खड़ा है जो अब शिवलिंग की मान्यता प्राप्त कर चुका है लोग अक्सर कृष्ण जन्माष्टमी के दौरान किन्नर कैलाश की परिक्रमा करते है

किन्नौर कैलाश परिक्रमा जहाँ आस्थावान हिंदुओं और बुद्ध दोनों संप्रदाय के लिए पवित्र है। इसकी परिक्रमा हिमालय पर होनेवाले अनेक हिन्दू तीर्थों में से एक है, वहीं देशी-विदेशी पर्यटकों के लिए एक आकर्षक एवं चुनौतीपूर्ण ट्रेकिंग भी। हिमालय पर्वत का संबंध न केवल हिंदू पौराणिक कथाओं से है वरन हिंदू समाज की आस्‍था से भी इसका गहरा लगाव है।

बौद्ध इसे अपने उपास्य देव चक्रसंवर तथा वज्रवराही का अधिष्ठान मानते हैं। तो हिंदू इसे देव शिव तथा पार्वती का निवास मानते हैं।

यह वही हिमालय रेंज है जहां से पवित्रतम नदी गंगा का उद्भव गोमुख से होता है। ‘देवताओं की घाटी’ कुल्लू भी इसी हिमालय रेंज में आता है। इस घाटी में 350 से भी ज्‍यादा मंदिरें स्थित हैं। इसके अलावा अमरनाथ और मानसरोवर झील भी हिमालय पर ही स्थित है। हिमालय अनेक तरह के एडवेंचर के लिए भी विश्‍व प्रसिद्ध है। हिमालय विश्‍व का सबसे बड़ा ‘स्‍नोफिल्‍ड’ है, जिसका कुल क्षेत्रफल 45,000 किलोमीटर से भी ज्‍यादा है। 

भगवान श्री कृष्‍ण ने हिमालय पर्वत के बारे में भगवद् गीता में कहा है, 

“मेरा निवास पर्वतों के राजा हिमालय में है।”

उसी तरह हिमालय को महिमामंडित करते हुए स्‍वामी विवेकानंद ने एकबार कहा था कि, ‘हिमालय प्रकृति के काफी समीप है।..वहां अनेक देवी-देवताओं का निवास है।..महान हिमालय…देवभूमि।’ यही कारण है कि भारतवासियों, खासकर हिंदू समाज में हिमालय को देवत्‍व के काफी करीब माना जाता है।

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किन्नर कैलाश कल्पा के ठीक सामने सतलुज नदी के पार स्थित है।

मूल रूप से,  किन्नर कैलाश यात्रा  समुद्र तल से 14,000 फीट से अधिक ऊंचे पार्वती कुंड पर समाप्त होती है। 79 फीट ऊंचा शिव लिंग भगवान शिव की छत पर स्थित है। मान्यता यह है कि देवी पार्वती ने इस कुंड का निर्माण किया था, और भगवान शिव इस निवास का उपयोग अन्य देवी-देवताओं के साथ अपनी बैठक के लिए कर रहे थे। एक तरफ 17 ​​किमी का सफर चुनौतीपूर्ण है। अंत में प्रतिफल के रूप में, समझौता सभी अनुयायियों को एक मंत्रमुग्ध अनुभूति देता है।


यात्रा का पहला दिन

सबसे पहले सभी यात्रियों को इंडो तिब्‍बत बार्डर पुलिस (आई.टी.बी.पी.) पोस्‍ट पर यात्रा के लिए अपना पंजीकरण कराना होता है। यह पोस्‍ट 8,727 फीट की ऊँचाई पर स्थित है जो किन्‍नौर के जिला मुख्‍यालय रेकांगपियो से 41 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। उसके बाद लांबार के लिए प्रस्‍थान करना होता है। यह 9,678 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। जो 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां जाने के लिए खच्‍चरों का सहारा लिया जा सकता है। 

यात्रा का दूसरा दिन।

इसके उपरांत 11,319 फीट की ऊँचाई पर स्थित चारांग के लिए चढ़ाई करनी होती है। जिसमें कुल 8 घंटे लगते हैं। लांबार के बाद ज्‍यादा ऊँचाई के कारण पेड़ों की संख्‍या कम होती जाती है। चारांग गांव के शुरू होते ही सिंचाई और स्‍वास्‍थ्‍य विभाग का गेस्‍ट हाउस मिलता है, जिसके आसपास टेंट लगाकर भी विश्राम किया जा सकता है। इसके बाद 6 घंटे की चढ़ाई वाला ललांति (14,108) के लिए चढ़ाई शुरू हो जाती है।

तीसरा दिन

चारांग से 2 किलोमीटर की ऊँचाई पर रंग्रिक तुंगमा का मंदिर स्थित है। इसके बारे में यह कहा जाता है कि बिना इस मंदिर के दर्शन किए हुए परिक्रमा अधुरी रहती है। इसके बद 14 घंटे लंबी चढ़ाई की शुरुआत हो जाती है।

चौथा दिन

इस दिन एक ओर जहां ललांति दर्रे से चारांग दर्रे के लिए लंबी चढ़ाई करनी होती है, वहीं दूसरी ओर चितकुल देवी की दर्शन हेतु लंबी दूरी तक उतरना होता है।

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किन्नर कैलाश के बारे में अनेक मान्यताएं भी प्रचलित हैं। कुछ विद्वानों के विचार में महाभारत काल में इस कैलाश का नाम इन्द्रकीलपर्वत था, जहां भगवान शंकर और अर्जुन का युद्ध हुआ था और अर्जुन को पासुपातास्त्रकी प्राप्ति हुई थी। यह भी मान्यता है कि पाण्डवों ने अपने बनवास काल का अन्तिम समय यहीं पर गुजारा था।


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हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह भारतीय हिमालय में एक बहुत ही पवित्र स्थान है क्योंकि यह भगवान शिव और माता पार्वती से जुड़ा है।किन्नर कैलाश शिखर के पास एक प्राकृतिक तालाब/कुंड, जिसे पार्वती कुंड के नाम से जाना जाता है, को देवी पार्वती की रचना माना जाता है।शिवलिंग 79 फिट ऊंचा है। इसके आस-पास बर्फीले पहाड़ों की चोटियां हैं। जो इसकी खूबसूरती की में चार चांद लगाते हैं।अत्यधिक ऊंचाई पर होने के कारण किन्नर कैलाश शिवलिंग चारों ओर से बादलों से घिरा रहता है। ये हिमाचल के दुर्गम स्थान पर स्थित है, इसलिए यहां पर ज्यादा लोग दर्शन के लिए नहीं आते हैं। किन्नर कैलाश का प्राकृतिक सौंदर्य मंत्र मुग्ध कर देने वाला है।यहां पर चढ़ाई करना बेहद मुश्किल है। क्योंकि यहां 14 किलोमीटर लंबे इस ट्रेक के आस-पास बर्फीली चोटियां हैं। लेकिन यहां कि खूबसूरती देखते ही बनती है। यहां के सेब के बगीचों के साथ यहां की सांगला और हंगरंग वैली के नजारो की बात ही अलग है। इस ट्रेक का सबसे पहला पड़ाव तांगलिंग गांव जो सतलुज नदी के किनारे बसा है। यहां से 8 किलोमीटर दूर मलिंग खटा तक ट्रेक करके जाना पड़ता है। इसके बाद 5 किलोमीटर दूर पार्वती कुंड तक जाते हैं। यहां से तकरीबन एक कलोमिटर की दूरी पर किन्नर कैलाश स्थित है।

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किन्नर-कैलाश यात्रा-2023 के सफल कार्यन्यवन के लिए राजस्व, बागवानी एवं जनजातीय विकास मंत्री जगत सिंह नेगी ने किन्नौर जिला के अधिकारियों के साथ बैठक आयोजित कीहै। उन्होंने यात्रा के आयोजन को लेकर जिला के सभी विभागों के अधिकारियों को निर्देश दिए कि यात्रियों के लिए यात्रा को सुरक्षित व सुगम बनाने के लिए सभी आवश्यक तैयारियां समय रहते पूर्ण करें।पुलिस व होम-गार्ड के अधिकारियों को यात्रियों की सुरक्षा व आपात स्थिति से निपटने के लिए पर्याप्त मात्रा में जवानों की तैनाती करने को कहा। एक त्वरित प्रतिक्रिया दल का गठन करने के भी निर्देश दिए। उन्होंने चिकित्सा विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिए कि यात्रा के दौरान हर प्रकार की चिकित्सीय आवश्यकता को पूर्ण करें तथा यात्रा के अधिकतर स्थानों पर चिकित्सीय सुविधा उपलब्ध करवाएं।
उन्होंने वन विभाग को यात्रा की सम्पूर्ण तैयारियां सुनिश्चित करने के निर्देश देते हुए कहा कि वन विभाग द्वारा रास्ते का सुधारीकरण कार्य, मार्ग में सुगमता लाने व सी.सी.टी.वी कैमरा लगाने का कार्य सुनिश्चित किया जाए। जल शक्ति विभाग को यात्रा के दौरान पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करने को कहा।


 

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