देश के उत्तरी क्षेत्र पर वानिकी अनुसंधान एजेंडाऔर मुद्दों की पहचान पर विज्ञानिकों ने किया मंथन

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मनजीत नेगी/IBEX NEWS,शिमला
हिमालय वन अनुसंधान संस्थान शिमला और वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून द्वारा संयुक्त रूप से देश के उत्तरी क्षेत्र के लिए वानिकी अनुसंधान एजेंडा और मुद्दों की पहचान के लिए हाइब्रिड मोड में संयुक्त रूप से क्षेत्रीय अनुसंधान सम्मेलन में महामंथन किया गया।
हिमालय वन अनुसंधान संस्थान शिमला और वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून नें भारत के उत्तरी क्षेत्र में वानिकी अनुसंधान और मुद्दे विषय पर 27 जून को हाइब्रिड मोड में संयुक्त क्षेत्रीय अनुसंधान सम्मेलन का आयोजन किया ।

सम्मेलन में उद्घाटन सत्र और तीन तकनीकी सत्रों हुए तथा उसके बाद कार्यशाला के विषय पर विचार-मंथन और शोध एजेंडा तैयार किया गया

इस संयुक्त सम्मेलन में हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, चंडीगढ़, दिल्ली, राज्य/केंद्रशासित प्रदेश के वन विभाग प्रमुखों, वन अधिकारियों, कृषि और वानिकी विश्वविद्यालयों और अन्य विश्वविद्यालयों के प्रतिनिधियों, संगठनों, गैर-सरकारी संगठनों, वन आधारित उद्योगों के प्रतिनिधियों, प्रगतिशील किसानों, आदिवासी युवाओं ने भाग लिया।


निदेशक संदीप शर्मा ने मुख्य अतिथि अरुण सिंह रावत, महानिदेशक, भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद, देहारादून, उत्तरी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के वन विभाग प्रमुखों ने भाग लिया।

उन्होंने बताया कि अनुसंधान सम्मेलन में मुख्यत कृषि वानिकी और क्लोनल प्रौद्योगिकियों में आने वाले मुद्दों और समस्याओं पर चर्चा की जाएगी ।

राकेश डोगरा, उप महानिदेशक (अनुसंधान), देहरादून ने क्षेत्रीय अनुसंधान सम्मेलन के विषय को रेखांकित किया गया।

विशेष रूप से देश के उत्तरी क्षेत्र के हितधारकों की अनुसंधान आवश्यकताओं को पूरा करने में भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद, देहारादून के संस्थानों के महत्व पर प्रकाश डाला ।

परिषद देश में शीर्ष वानिकी अनुसंधान संगठन है तथा अनुसंधान जैव विविधता संरक्षण, आनुवंशिक संसाधन प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन, भूमि क्षरण, मरुस्थलीकरण और प्राकृतिक वन संसाधन प्रबंधन पर केंद्रित है । परिषद राष्ट्रीय वन नीति, 1988 के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए अनुसंधान कार्य करती है। अरुण सिंह रावत, महानिदेशक, भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद, देहारादून ने मुख्य अतिथि के रूप में अपने उद्घाटन भाषण में बताया कि भारत के उत्तरी क्षेत्र में वानिकी अनुसंधान और मुद्दों पर विस्तार से विचार-विमर्श किया जाएगा। उन्होंने आशा व्यक्त जताई कि सम्मेलन के परिणाम वानिकी अनुसंधान के लिए महत्वपूर्ण होंगे ।

उन्होंने बताया कि पारंपरिक कृषि वानिकी का अभ्यास लंबे समय से किया जा रहा है, हालांकि कृषि वानिकी में वैज्ञानिक हस्तक्षेप की आवश्यकता है ताकि इसकी उत्पादकता को बढ़ाया जा सके। परिषद प्रौद्योगिकियों को विकसित करने के लिए लगातार काम कर रहा है, जिससे अंततः किसानों को लाभ होगा । उन्होंने आगे बताया कि देश में वन क्षेत्र के अंतर्गत 33 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र के लक्ष्य को प्राप्त करने में कृषि वानिकी की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है ।

कृषि वानिकी के क्षेत्र में कमियों को वैज्ञानिक तरीकों से पहचानने और उन्हें पूरा करने की आवश्यकता है । परिषद महत्वपूर्ण कृषि वानिकी प्रजातियों के क्लोन विकसित कर रहा है। ये किसानों के लिए बहुत उपयोगी हो सकते हैं । कृषि वानिकी न केवल पारिस्थितिकी और पर्यावरण सुधार में मदद करती है बल्कि कृषक समुदायों की आय को भी बढ़ावा देती है । कृषि वानिकी के क्षेत्र में अनुसंधान कार्य को बढ़ाने के लिए राज्य के वन विभागों के समर्थन की आवश्यकता है । उन्होंने आशा व्यक्त की कि विभिन्न विशेषज्ञ अपने बहुमूल्य सुझाव देंगे और परिषद इस सम्मेलन के सुझावों और सिफारिशों पर काम करेगा ।


अजय श्रीवास्तव, पीसीसीएफ एवं वन प्रमुख हिमाचल प्रदेश राज्य वन विभाग ने बताया कि अनुसंधान और निगरानी वानिकी प्रबंधन के महत्वपूर्ण पहलू हैं। इस क्षेत्र में परिषद और इसके संस्थानों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है । पुनर्स्थापन पारिस्थितिकी, जंगल की आग आदि जैसे अनुसंधान क्षेत्रों पर अधिक जोर देने की आवश्यकता है ।

जगदीश चंदर, , पीसीसीएफ एवं वन प्रमुख, हरियाणा ने राजस्व उत्पन्न करने के लिए टिंबर को वैज्ञानिक तरीके से दोहन करने पर जोर दिया । लकड़ी, ईंधन की लकड़ी और अन्य वानिकी सेवाओं की मांग को पूरा करने में कृषि वानिकी और क्लोनल प्रौद्योगिकी बहुत बड़ी भूमिका निभा सकती है । उन्होंने बताया कि भारत में विश्व की मानव आबादी का 17% और दुनिया की 16% मवेशी आबादी है और हालांकि, देश में दुनिया के 4% से भी कम वन क्षेत्र हैं ।

कृषि वानिकी और क्लोनल तकनीक इस अंतर को पाट सकती है। उन्होंने आगे बताया कि पौधों की 45000 से अधिक प्रजातियां हैं। हालांकि वर्तमान में बहुत कम प्रजातियों पर शोध किया जा रहा है, इसलिए अधिक प्रजातियों पर शोध की जरूरत है। उन्होंने वानिकी प्रजातियों के इसके प्राकृतिक स्थान पर एवं एक्स-सीटू संरक्षण पर जोर दिया । सतत विकास लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए ।
इसके बाद सम्मेलन का तकनीकी सत्र शुरू हुआ ।

तकनीकी सत्र में वानिकी अनुसंधान समस्याओं और उत्तरी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के वन विभाग के मुद्दों पर विचार किया।

सत्र की शुरुआत विमल कोठियाल, एडीजी (अनुसंधान एवं योजना), भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद, देहरादून द्वारा परिषद में अनुसंधान कार्यक्रम के अवलोकन पर एक प्रस्तुति के साथ हुई । हिमालय वन अनुसंधान संस्थान शिमला और वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून के निदेशकों ने क्रमशः अपने अपने संस्थान की अनुसंधान गतिविधिया पेश की ।

तत्पश्चात उत्तरी राज्यों के वन विभाग प्रमुखों, वन अधिकारियों, विश्वविद्यालयों के प्रतिनिधियों, संगठनों, गैर-सरकारी संगठनों, वन आधारित उद्योगों के प्रतिनिधियों, प्रगतिशील किसानों, पंचायती राज प्रतिनिधियों एवं आदिवासी युवाओं ने वानिकी अनुसंधान की जरूरर्तों, क्लोनल प्रौद्योगिकी प्रसार और पहल के बारे में प्रस्तुतियाँ दी ।

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