राज्य के देवदार वाले बाहुल इलाकों में सल्फर शावर (रेन) का दौर है ।ये ऐसी घटना है जिसके द्वारा पाइनस प्रजातियाँ अपने पीले पराग कण छोड़ती हैं ।
राजधानी के नवबहार रोड पर ली गई एक वीडियो बता रही पीली आँधी की धुंध कैसे नहा रही है लोगों को।
मनजीत नेगी/ IBEX NEWS,शिमला।
अगर आपकी नाक बंद,साइनस पर दबाव,बहती नाक,आँखों में खुजली, लाली व पानी आना ,खराश वाला गला,खाँसी, छींक और घरघराहट,आँखों के नीचे सूजी हुई नीले रंग की त्वचा और बढ़ी हुई दमा संबंधी उपरोक्त शिकायतों में से एक या दो लक्षण हैं ,तो संभल जाइए आप पॉलेन ग्रेन्स (पराग)से होने वाली एलर्जी के शिकार हो गए हैं ।या फिर यूँ कहे कि आप “सल्फर शावर “ में भीग चुके है जिससे आप बीमार रहने लगे है और अब ऐसे बदलते मौसम में आपको हर बार ये परेशानी झेलनी पड़ेगी। हिमाचल में इन दिनों मौसम बदल रहा है और देवदार वाले बाहुल इलाकों में सल्फर शावर (रेन) का दौर है। यें ऐसी घटना है जिसके द्वारा पाइनस प्रजातियाँ अपने पराग कण छोड़ती हैं पाइनस के पराग कण पीले रंग के होते हैं। जब नर शंकु पराग छोड़ते हैं, तो वे एक पीले बादल के रूप में दिखाई देते हैं। यही कारण है कि इस घटना को “सल्फर शावर “के रूप में जाना जाता है।पाइनस के नर और मादा शंकु एक ही पौधे में होते हैं, अर्थात ये एकलिंगी प्रजाति हैं। नर शंकु थोड़े समय के लिए जीवित रहते हैं। वे अपने पराग कण छोड़ने के तुरंत बाद मर जाते हैं। पाइनस के परागकण पंखों वाली संरचनाएँ हैं। वे हवा द्वारा परागण के लिए फैलते हैं।
हालाँकि, सल्फर की उपस्थिति इस प्रक्रिया से जुड़ी नहीं है। यह पराग का पीला रंग है जो सल्फर शावर नाम देता है।राजधानी शिमला की सड़कें, खड़ीं गाड़ियाँ,घरों की छतें, फ़र्श ऐसी बारिश से भीग रहें है।लोगों ने घरों के बाहर धुले कपड़ें सुखाने बंद कर दिए है और पहले से ही एलर्जी से परेशान लोग घरों में दुबकने को विवश है। स्तिथि ये हैं कि इन दिनों आधा घंटा भी यदि साफ़ सुथरी आवोहवा में कोई खड़ा हो तो कुछ क्षणों में उसके कपड़े पीले दिखने लगते हैं और नाक मुँह पीले परागकणों से भर जाएगा।माँग उठ रही है कि सरकार लोगों को ऐहतियातन बतौर जागरूक करें। ऐसे में जब ये समस्या थोड़े दिनों तक है जब तक मौसम बदल रहा है और शुष्कता है।
शिमला में समस्या अधिक इसलिए है कि ये हिल स्टेशन देवदारों से घिरा हैं और सल्फर वर्षा के कारण देवदार ,चीड़ के जंगलों का फर्श और क्षेत्र पीला है। यहीं नहीं सांस के द्वारा जब हम हवा को भीतर खींचते है तो छाती पर भी ये पीलापन ऐसा ही छा जाता है । वायुमार्ग में ये सूजन पैदा कर सकती है, जिससे सांस लेने में कठिनाई हो सकती है ।
हिमाचल प्रदेश के सबसे बड़े चिकित्सा संस्थान IGMC के श्वास रोग विभाग के प्रोफ़ेसर डॉक्टर आरएस नेगी और डॉक्टर सुनील शर्मा का कहना है कि एलर्जी और श्वसन समस्याओं के बीच संबंध को समझने से व्यक्तियों को उनके लक्षणों के कारण की पहचान करने और उचित उपचार लेने में मदद मिल सकती है।अस्थमा की समस्या श्वास नलिकाओं की दीवार के भीतर एलर्जी के कारण होती है। एलर्जी के कारण श्वास नली की दीवार मोटी होने लगती है, जिससे श्वास लेना मुश्किल हो जाता है। अस्थमा एक ऐसी बीमारी है, जिसका समय से सफलता पूर्वक इलाज किया जाए तो इसे कंट्रोल किया जा सकता है और मरीज एक सामान्य जीवन जी सकता है।
अपनी व्यापक पहुंच के कारण, पराग एलर्जी दुनिया में सबसे आम आउटडोर एलर्जी में से एक है। दरअसल, दुनिया में हर सात में से एक व्यक्ति पराग एलर्जी से पीड़ित है।
कुछ लोगों को पूरे वर्ष परागकण से एलर्जी होती है, जबकि अन्य को कुछ निश्चित अवधियों के दौरान, विशेषकर परागकण के मौसम में, एलर्जी हो जाती है। ऐसे मौसम में लोगो को सचेत और एहतियात बरतने की जरुरत है। लोग मास्क पहने।बाहर से आने के बाद कपड़े धोयें।घर के दरवाज़े , खिड़कियाँ बंद रखें।
चिकित्सकों का कहना है कि पराग एलर्जी के लक्षण अन्य मौसमी एलर्जी के लक्षणों के समान हैं । एक बार शुरू होने पर, पराग एलर्जी जीवन भर बनी रह सकती है।
दूसरी और आईजीएमसी की डर्मेटोलॉजी विभाग की एसोसियेट प्रोफ़ेसर डॉक्टर रेनू रत्न का कहना है कई पराग कभी-कभी पराग त्वचा एलर्जी को ट्रिगर कर सकता है और एलर्जिक एक्जिमा का कारण बन सकता है।पराग मुँहासे को बढ़ा सकते हैं और आपकी त्वचा पर खुजली और चकत्ते पैदा कर सकते हैं।
अधिकांश एलर्जी की तरह, पराग से होने वाली एलर्जी की प्रतिक्रिया को रोकने का सबसे अच्छा तरीका इससे बचना है।
परागकण के मौसम में खिड़कियाँ बंद रखें।अपने कपड़ों को बाहर सुखाने की बजाय कपड़े के ड्रायर में सुखाएं।एक निश्चित अवधि के लिए बाहर रहने के बाद प्रतिदिन स्नान करें और अपने बालों को शैम्पू से धोएं।सप्ताह में कम से कम एक बार अपने बिस्तर को गर्म, साबुन वाले पानी से धोएं।धूप का चश्मा और टोपी पहनें।
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ये वृक्ष आमतौर पर हिमाचल प्रदेश के ठंडे क्षेत्रों में क्रमशः 800 मीटर से 3000 मीटर तक की ऊंचाई पर उगता है। देवदार कुल्लू, शिमला, ऊपरी मंडी, ऊपरी सोलन, चंबा, ऊपरी सिरमौर जिलों और किन्नौर और लाहौल और स्पीति के कुछ गैर रेगिस्तानी बेल्टों में उगता है। बिलासपुर जिले में कांगड़ा और शिवालिक पहाड़ियों के ऊंचे ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भी देवदार उगते हैं। देवदार कभी-कभी 60 मीटर तक ऊँचा और परिधि में 2-4 मीटर तक बढ़ सकता है। यह प्राकृतिक रूप से हिमाचल के कम ऊंचाई वाले जिलों जैसे हमीरपुर, बिलासपुर, ऊना, निचले सोलन और निचले सिरमौर में नहीं होता है, जबकि अपेक्षाकृत निचले और गर्म क्षेत्रों में देवदार डोडार जलवायु अंतर के कारण सफल नहीं हो सकता है। हालाँकि, हमीरपुर जिले के 800-1000 मीटर क्षेत्रों के कुछ हिस्सों में पूर्ण विकसित पेड़ हैं।
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लाहौल और स्पीति और किन्नौर जैसे सबसे शुष्क और ठंडे क्षेत्रों में, भौगोलिक सीमाओं के कारण पाईन्स लुप्त होने लगता है। हिमाचल प्रदेश में कुछ देवदार के पेड़ हजारों साल पुराने बताए जाते हैं।देवदार के वन भारत में हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग क्षेत्र, दक्षिण-पश्चिमी तिब्बत और पश्चिमी नेपाल में व्यापक रूप से पाए जाते हैं।किन्नौर जिले में, चिलगोज़ा पाइन भाबानगर, किल्बा, पूह, कल्पा और मूरंग वन रेंज में होता है। चंबा जिले में, चिलगोज़ा पाइन किलाड़, भरमौर और होली वन रेंज में होता है।हिमालयन ब्लू पाइन एक घना सदाबहार पेड़ है, जो अफगानिस्तान से लेकर तिब्बत तक हिमालय में पाया जाता है।