IBEX NEWS,शिमला।
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में आज मंगलवार को शिमला के कुफरी स्तिथ ओबरॉय ग्रुप के फाइव स्टार वाइल्ड फ्लावर हॉल छराबड़ा को लेकर सुनवाई होगी। बीते शनिवार को राज्य सरकार ने कोर्ट के आदेशों का हवाला देते हुए वाइल्ड फ्लावर हॉल पर कब्जा कर लिया था। मगर दोपहर तक हाईकोर्ट ने सरकार के कब्जे के एग्जीक्यूटिव ऑर्डर पर स्टे लगा दिया। आज इस मामले में कोर्ट में सुनवाई निर्धारित है।इससे स्पष्ट होगा कि सरकार फाइव स्टार होटल पर कब्जा कर पाएगी या अन्य कोई कानूनी अड़चनें सामने होगी।प्रदेश की राज्य सरकार ने वाइल्ड फ्लावर होटल में टूरिज्म डायरेक्टर मानसी सहाय को एडमिनिस्ट्रेटर नियुक्त किया है । हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम बीते शनिवार को पूरे दल बल के साथ होटल पर कब्जे के लिए छराबड़ा पहुंच गया था। तब मानसी सहाय ने भी ओबेरॉय ग्रुप के होटल पर कब्जा करने का दावा कर लिया था।शिमला से लगभग 15 किलोमीटर दूर छराबड़ा में ओबेरॉय ग्रुप ने लगभग 22 एकड़ जमीन पर 86 कमरों का फाइल स्टार होटल बनाया है । दीगर हो कि वाइल्ड फ्लावर पहले HPTDC के पास ही होता था। अप्रैल 1993 को बिजली के शॉर्ट सर्किट के कारण भीषण आग से लकड़ी से बना होटल जलकर राख हो गया था। इसके बाद सरकार ने ओबेरॉय ग्रुप के माध्यम से यहां होटल बनाया।। इस स्थान पर नया होटल बनाने के लिए राज्य सरकार ने ओबेरॉय ग्रुप की ईस्ट इंडिया होटल कंपनी के साथ करार किया। करार के अनुसार कंपनी को चार साल के भीतर पांच सितारा होटल का निर्माण करना था। ऐसा न करने पर कंपनी को 2 करोड़ रुपए जुर्माना प्रतिवर्ष राज्य सरकार को अदा करना था। वर्ष 1996 में सरकार ने कंपनी के नाम जमीन को ट्रांसफर किया।6 वर्ष बीत जाने के बाद भी कंपनी पूरी तरह होटल को उपयोग लायक नहीं बना पाई। साल 2002 में सरकार ने कंपनी के साथ किए गए करार को रद्द कर दिया। सरकार के इस निर्णय को कंपनी लॉ बोर्ड के समक्ष चुनौती दी गई। बोर्ड ने कंपनी के पक्ष में फैसला सुनाया था।
सरकार ने इस निर्णय को हाईकोर्ट की एकल पीठ के समक्ष चुनौती दी।हाईकोर्ट ने मामले को निपटारे के लिए मध्यस्थ के पास भेजा। मध्यस्थ ने कंपनी के साथ करार रद्द किए जाने के सरकार के फैसले को सही ठहराया था और सरकार को संपत्ति वापस लेने का हकदार ठहराया। इसके बाद एकल पीठ के निर्णय को कंपनी ने बैंच के समक्ष चुनौती दी थी।बैंच ने कंपनी की अपील को खारिज करते हुए अपने निर्णय में कहा कि मध्यस्थ की ओर से दिया गया फैसला सही और तर्कसंगत है। कंपनी के पास यह अधिकार बिल्कुल नहीं कि करार में जो फायदे की शर्तें हैं, उन्हें मंजूर करे और जिससे नुकसान हो रहा हो उसे नजरअंदाज करें।