IBEX NEWS,शिमला।
हर वर्ष की भांति श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र विश्वप्रसिद्ध किन्नर-कैलाश की यात्रा 01 अगस्त से आरंभ होगी तथा 26 अगस्त तक चलेगी।यात्री ऑनलाइन या आफलाइन किसी भी माध्यम से इस यात्रा के लिए पंजीकरण करवा सकते है। 1 अगस्त से 26 अगस्त 2024 तक आयोजित की जाएगी किन्नौर-कैलाश यात्रा-2024 यह जानकारी आज यहां उपमण्डलाधिकारी कल्पा डॉ. मेजर शशांक गुप्ता ने दी। उन्होंने बताया कि यात्रा के लिए पंजीकरण करवाना आवश्यक रहेगा तथा पंजीकरण 25 जुलाई, 2024 को प्रातः 11ः00 बजे से आरंभ कर दिया जाएगा।
उन्होंने बताया कि यात्री ऑनलाइन या ऑफलाइन किसी भी माध्यम से पंजीकरण करवा सकते हैं। आफलाईन पंजीकरण के लिए जिला पर्यटन विभाग से सम्पर्क किया जा सकता है तथा ऑनलाईन पंजीकरण के लिए https://hpkinnaur.nic.in पर जाकर पंजीकरण किया जा सकता है तथा आफलाईन पंजीकरण के लिए उसी दिन तागलिंग गांव में जाकर किया जा सकता है।
उन्होनें बताया कि एक दिन में 200 ऑनलाईन व 150 आफलाईन पंजीकरण करवाए जाएगें व एक व्यकित एक से ज्यादा बार पंजीकरण नहीं करवा सकते है तथा मेडिकल फिटनेस प्रमाण पत्र लाना अनिवार्य होगा और मेडिकल फिटनेस फॉर्म 25 जुलाई 2024 से इसी वैबसाईट पर उपलब्ध होगा तथा मेडिकल फिटनेस प्रमाण पत्र जारी होने की तिथि से एक सप्ताह तक ही मान्य होगा।मान्यता है कि इस शिखर पर यहाँ के देवी देवताओं का भी तीर्थ है। पर्व विशेष में किन्नौर के देवी देवता जनता के लिए अच्छी फसल ,सुख साधन की सौगात लाते हैं।
किन्नर कैलाश हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में तिब्बत सीमा के समीप स्थित 6473 मीटर ऊँचा एक पर्वत है जो हिन्दू धर्म में आस्था रखने वालों के लिए विशेष धार्मिक महत्त्व रखता है।इस पर्वत की विशेषता है इसकी एक चोटी पर स्थित प्राकृतिक शिवलिंग।किन्नर कैलाश की खास बात ये है कि यहां पर स्थित शिवलिंग बार-बार रंग बदलता है। किन्नर कैलाश की प्रमुख चोटी सूर्य की किरणों के कारण प्रातः से शाम तक विविध वर्णों में दिखाई देती है।सुबह के समय इसका रंग अलग होता है और दोपहर के समय सूरज की रोशनी में इसका रंग बदला हुआ दिखता है और शाम होते ही इसका रंग फिर से बदल जाता है।मान्यता है कि ये देवी देवताओं का सनिवास स्थान है तो मरने के बाद मृत आदमी की आत्मा किन्नर कैलाश पर जाती है।किन्नर कैलाश पर एक पत्थर सीधा खड़ा है जो अब शिवलिंग की मान्यता प्राप्त कर चुका है लोग अक्सर कृष्ण जन्माष्टमी के दौरान किन्नर कैलाश की परिक्रमा करते है।यह वही हिमालय रेंज है जहां से पवित्रतम नदी गंगा का उद्भव गोमुख से होता है। ‘देवताओं की घाटी’ कुल्लू भी इसी हिमालय रेंज में आता है। इस घाटी में 350 से भी ज्यादा मंदिरें स्थित हैं। इसके अलावा अमरनाथ और मानसरोवर झील भी हिमालय पर ही स्थित है। हिमालय अनेक तरह के एडवेंचर के लिए भी विश्व प्रसिद्ध है। हिमालय विश्व का सबसे बड़ा ‘स्नोफिल्ड’ है, जिसका कुल क्षेत्रफल 45,000 किलोमीटर से भी ज्यादा है।
बौद्ध इसे अपने उपास्य देव चक्रसंवर तथा वज्रवराही का अधिष्ठान मानते हैं। तो हिंदू इसे देव शिव तथा पार्वती का निवास मानते हैं।
किन्नर कैलाश कल्पा के ठीक सामने सतलुज नदी के पार स्थित है।
मूल रूप से, किन्नर कैलाश यात्रा समुद्र तल से 14,000 फीट से अधिक ऊंचे पार्वती कुंड पर समाप्त होती है। 79 फीट ऊंचा शिव लिंग भगवान शिव की छत पर स्थित है। मान्यता यह है कि देवी पार्वती ने इस कुंड का निर्माण किया था, और भगवान शिव इस निवास का उपयोग अन्य देवी-देवताओं के साथ अपनी बैठक के लिए कर रहे थे। एक तरफ 17 किमी का सफर चुनौतीपूर्ण है। अंत में प्रतिफल के रूप में, समझौता सभी अनुयायियों को एक मंत्रमुग्ध अनुभूति देता है।
इस क्रम में चलती रही है है ये धार्मिक
यात्रा का पहला दिन
सबसे पहले सभी यात्रियों को इंडो तिब्बत बार्डर पुलिस (आई.टी.बी.पी.) पोस्ट पर यात्रा के लिए अपना पंजीकरण कराना होता है। यह पोस्ट 8,727 फीट की ऊँचाई पर स्थित है जो किन्नौर के जिला मुख्यालय रेकांगपियो से 41 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। उसके बाद लांबार के लिए प्रस्थान करना होता है। यह 9,678 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। जो 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां जाने के लिए खच्चरों का सहारा लिया जा सकता है।
यात्रा का दूसरा दिन।
इसके उपरांत 11,319 फीट की ऊँचाई पर स्थित चारांग के लिए चढ़ाई करनी होती है। जिसमें कुल 8 घंटे लगते हैं। लांबार के बाद ज्यादा ऊँचाई के कारण पेड़ों की संख्या कम होती जाती है। चारांग गांव के शुरू होते ही सिंचाई और स्वास्थ्य विभाग का गेस्ट हाउस मिलता है, जिसके आसपास टेंट लगाकर भी विश्राम किया जा सकता है। इसके बाद 6 घंटे की चढ़ाई वाला ललांति (14,108) के लिए चढ़ाई शुरू हो जाती है।
तीसरा दिन
चारांग से 2 किलोमीटर की ऊँचाई पर रंग्रिक तुंगमा का मंदिर स्थित है। इसके बारे में यह कहा जाता है कि बिना इस मंदिर के दर्शन किए हुए परिक्रमा अधुरी रहती है। इसके बद 14 घंटे लंबी चढ़ाई की शुरुआत हो जाती है।
चौथा दिन
इस दिन एक ओर जहां ललांति दर्रे से चारांग दर्रे के लिए लंबी चढ़ाई करनी होती है, वहीं दूसरी ओर चितकुल देवी की दर्शन हेतु लंबी दूरी तक उतरना होता है।
किन्नर कैलाश के बारे में अनेक मान्यताएं भी प्रचलित हैं। कुछ विद्वानों के विचार में महाभारत काल में इस कैलाश का नाम इन्द्रकीलपर्वत था, जहां भगवान शंकर और अर्जुन का युद्ध हुआ था और अर्जुन को पासुपातास्त्रकी प्राप्ति हुई थी। यह भी मान्यता है कि पाण्डवों ने अपने बनवास काल का अन्तिम समय यहीं पर गुजारा था।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह भारतीय हिमालय में एक बहुत ही पवित्र स्थान है क्योंकि यह भगवान शिव और माता पार्वती से जुड़ा है।किन्नर कैलाश शिखर के पास एक प्राकृतिक तालाब/कुंड, जिसे पार्वती कुंड के नाम से जाना जाता है, को देवी पार्वती की रचना माना जाता है।शिवलिंग 79 फिट ऊंचा है। इसके आस-पास बर्फीले पहाड़ों की चोटियां हैं। जो इसकी खूबसूरती की में चार चांद लगाते हैं।अत्यधिक ऊंचाई पर होने के कारण किन्नर कैलाश शिवलिंग चारों ओर से बादलों से घिरा रहता है। ये हिमाचल के दुर्गम स्थान पर स्थित है, इसलिए यहां सबसे पहले सभी यात्रियों को इंडो तिब्बत बार्डर पुलिस (आई.टी.बी.पी.) पोस्ट पर यात्रा के लिए अपना पंजीकरण कराना होता है। यह पोस्ट 8,727 फीट की ऊँचाई पर स्थित है जो किन्नौर के जिला मुख्यालय रेकांगपियो से 41 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। उसके बाद लांबार के लिए प्रस्थान करना होता है। यह 9,678 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। जो 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां जाने के लिए खच्चरों का सहारा लिया जा सकता है।
बॉक्स।
इस ट्रेक का सबसे पहला पड़ाव तांगलिंग गांव जो सतलुज नदी के किनारे बसा है। यहां से 8 किलोमीटर दूर मलिंग खटा तक ट्रेक करके जाना पड़ता है। इसके बाद 5 किलोमीटर दूर पार्वती कुंड तक जाते हैं। यहां से तकरीबन एक कलोमिटर की दूरी पर किन्नर कैलाश स्थित है।