सोमवार को सदन में हुई चर्चा में नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने कहा कि अगर हिमाचल का पैसा दिल्ली में पड़ा है तो उसे लेकर आएंगे पर सरकार बताए तो सही कहां पड़ा है? इस पर सीएम सुक्खू ने पलटवार किया।

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IBEX NEWS,शिमला।

हिमाचल की वित्तीय स्थिति पर सोमवार को सदन में हुई चर्चा में मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू और नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर में तीखी नोकझोंक हुई। नियम-130 के तहत चर्चा में जयराम ठाकुर ने कहा कि यह कहना सही नहीं है कि पेंशन मोदी ने रोकी है। जयराम ने कहा कि अगर हिमाचल का पैसा दिल्ली में पड़ा है तो उसे लेकर आएंगे पर सरकार बताए तो सही कहां पड़ा है। इस पर सीएम ने पलटवार करते हुए कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री का नाम तो कभी लिया ही नहीं। उन्होंने जयराम ठाकुर की ओर इशारा कर कहा – हमने इन्हीं को दोषी कहा है। इस बारे में वह मंगलवार जवाब देंगे। जयराम ने कहा कि मुख्यमंत्री स्पष्ट करें कि आर्थिक संकट है या नहीं। नया वित्तीय वर्ष शुरू होगा तो छह हजार करोड़ रुपये का कर्ज ले सकेंगे। वेतन-पेंशन का संकट बना रहेगा। सीएम कहते हैं कि 2027 तक प्रदेश सबसे अमीर राज्य बनेगा। यह स्पष्ट नहीं हो पाया। उन्होंने कहा कि कर्मचारियों को वेतन पांच और पेंशन 10 तारीख को देने से यह स्थिति बनी है कि सरकार अपने बूते वेतन और पेंशन देने की हालत में नहीं है। प्रदेश का 40 प्रतिशत बजट कर्मचारियों और पेंशनरों को जाता है। यह सरकार लगातार पिछली सरकार को दोषी ठहरा रही है। जब जयराम सरकार सत्ता में आई तो 48 हजार करोड़ रुपये का कर्ज पिछली कांग्रेस सरकार छोड़कर चली गई थी। सही मायने में प्रदेश अगर आर्थिक रूप से पटरी से उतरा है तो यह 1993 से 1998 के बीच हुआ, जबकि उस समय कोई ऐसा आर्थिक संकट नहीं था। आने वाले समय में हालात और खराब होने जा रहे हैं। विकास के लिए बजट बचाना मुश्किल हो जाएगा। 2024-25 में विकास का बजट केवल 28 प्रतिशत रह गया और अब तो इससे भी कम हो गया है।

इस पर सीएम सुक्खू ने कहा कि जब इनकी सरकार आई तो 48 हजार करोड़ रुपये लोन लिया गया था, तो यह 40 हजार करोड़ रुपये कैसे बढ़ गया। इस पर जयराम ने कहा कि सीमा से कम लोन लिया गया। 2012 से 2017 तक कांग्रेस की सरकार रही। उनके अपने समय में लोन लेने में 48 प्रतिशत की बढ़ोतरी रही, जो पिछली कांग्रेस सरकार में 60 प्रतिशत थी। जयराम ने कहा कि वर्तमान सरकार ने 2810 करोड़ रुपये का कर्ज भविष्य निधि के विरुद्ध भी लिया है। अगर सबको मिलाया जाए तो 24 हजार करोड़ रुपये का कर्ज ले लिया है। हिमाचल प्रदेश 90 हजार करोड़ रुपये के कर्ज के नीचे है। वर्तमान सरकार को एक लाख करोड़ रुपये का कर्ज तक पहुंचने का श्रेय जाने वाला है।

जयराम ने कहा कि सीएम कहते हैं कि एक तो जयराम और एक मोदी दोषी हैं। राजस्व घाटा अनुदान के तहत हिमाचल प्रदेश को जो हिस्सा मिला है, वह बाकी राज्यों की तुलना में अच्छा मिला है। अगले साल तो यह 3 हजार कराेड़ रुपये से भी कम आएगा तो गाड़ी कैसे चलेगी। जीएसटी शेयर कम करने की बात की जा रही है। अगर अध्ययन किया जाएगा तो उसमें पूरे देश के लिए यह निर्णय हुआ था कि जून 2022 के बाद जीएसटी प्रतिपूर्ति का पैसा कम हुआ है। भाजपा सरकार ने पंजाब पे स्केल को लागू हुआ। उसकी देनदारियां चरणबद्ध तरीके से होती हैं। कर्मचारियों के पैसे के बारे में पीएफआरडीए ने स्पष्ट किया हुआ है। यह कर्मचारियों का पैसा है, जो उन्हें मिलेगा। इससे मना कौन कर रहा है। पांच साल तक सत्ता चलाई पर यह रोना कभी नहीं किया। हमने काम भी किया और कर्मचारियों की पेंशन भी दी।

सीपीएस की कुर्सी बचाने के लिए छह करोड़ रुपये खर्च कर दिए कांग्रेस सरकार ने
जनवरी 2016 में जब नया वेतन लागू हुआ। हमने 50-50 हजार रुपये दिए। यह देनदारी है, मगर कांग्रेस सरकार की जिम्मेवारी है। महंगाई भत्ता भी समय पर दिया और इसके अलावा अन्य लाभ भी। सीपीएस की कुर्सी बचाने के लिए छह करोड़ रुपये खर्च कर दिए। मंत्री और सीपीएस दो महीने की सैलरी विलंबित करके लेंगे। चेयरमैन और ओएसडी कैबिनेट रैंक के बना दिए। शुरुआत अपने से करनी चाहिए, लोग ऐसा कह रहे हैं। जहां 30 हजार मिलता था, वहां एक लाख 30 हजार बढ़ा दिया।

नेता प्रतिपक्ष ने मीडिया के प्रतिनिधियों से बात करते हुए सरकार की आर्थिक नीतियों को प्रदेश के वर्तमान  माली हालत का ज़िम्मेदार बताया। उन्होंने कहा कि सरकार ने अपने लोगों को एडजस्ट करने के लिए उन पर महती कृपा की है, जिन बोर्ड के अध्यक्षों को हमारी सरकार में तीस हज़ार रुपये का मानदेय मिलते थे उन्हें एक लाख तीस हज़ार रुपए देने लगे। 7 कैबिनेट रैंक बाँटी, छः विधायकों को सीपीएस बनाकर मंत्रियों जैसी सुविधाएं दे रहे हैं। सलाहकारों की फ़ौज खड़ी कर ली है। सीपीएस को बचाने के लिए कोर्ट में वकीलों की फ़ौज को छः करोड़ रुपये से ज़्यादा की फ़ीस दे चुके हैं। प्रदेश में राजस्व अर्जन के सारे रास्ते बंद कर दिये हैं। उद्योग, आबकारी, माइनिंग से राजस्व आने के रास्ते बंद हैं। प्रदेश में राजस्व कहां से आयेंगे सरकार इस पर विचार नहीं कर रही है। सिर्फ़ टैक्स बढ़ाकर, महंगाई का बोझ लादकर प्रदेश के लोगों को निचोड़कर आर्थिक स्थिति को नहीं सुधारा जा सकता है, सरकार को कल्याणकारी राज्य के दायित्व को भूलना नहीं चाहिए।

नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि प्रदेश में पहली बार ऐसे हालात बने कि कर्मचारियों को वेतन नहीं दे पाए और पेंशनर्स को पेंशन अभी तक नहीं मिल पाई? जब केंद्र से राजस्व अनुदान घाटा का पैसा आया तो ही वेतन दिया जा सका। जब सेंट्रल टैक्सेस का अंशदान आएगा तभी पेंशन दी जाएगी। केंद्र सरकार ने हिमाचल को पचास साल की अवधि के लिए 1500 करोड़ रुपए का ब्याजमुक्त क़र्ज़ दिया. भविष्य में भी इसी तरह की आर्थिक सहायता मिलती रहेगी। इन सबके बावजूद हिमाचल प्रदेश सरकार की तरफ़ से हमेशा केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री को कोसा ही जाता है सरकार की तरफ़ से आभार का एक शब्द नहीं निकलता है।

जयराम ठाकुर ने कहा कि प्रदेश सरकार ने कोई योजना नहीं लागू की, कोई जनहित के कार्य नहीं किए लेकिन 20 महीनें में ही 24 हज़ार करोड़ रुपए से ज़्यादा क़र्ज़ ले लिया। इसी रफ़्तार से अगर सुक्खू सरकार ने क़र्ज़ लेना जारी रखा तो अकेले ही अब तक के हिमाचल के संपूर्ण क़र्ज़ से ज़्यादा क़र्ज़ अकेले ले लेगी और प्रदेश को गंभीर आर्थिक संकट से जूझना पड़ेगा। जयराम ठाकुर ने कहा कि हमारी सरकार ने 2016 से लंबित पड़े पे-कमीशन को लागू किया। यह काम कांग्रेस सरकार को करना था लेकिन नहीं किया, आज के कांग्रेस के ज़्यादातर लोग तब भी सत्ता में ताकतवर हैसियत रखते थे लेकिन उन्होंने क्यों आवाज़ नहीं उठाई। कोरोना के गंभीर आर्थिक संकट के बीच किसी भी कर्मचारी का एक दिन का भी वेतन नहीं रुका। एक भी पैसे किसी कर्मचारी के नहीं काटे गए। जबकि आर्थिक गतिविधियां पूरी तरह से बंद थी और स्वास्थ्य के इंफ़्रास्ट्रक्चर को मज़बूत करना अलग चुनौती थी। हमारी सरकार ने यूनिवर्सिटी खोली, कॉलेज खोले, स्कूल, अस्पताल, सरकारी ऑफिस भी खोले। विकास का काम एक दिन के लिए भी रुकने नहीं दिया। डीज़ल के दाम कम करके महंगाई को क़ाबू में किया।

जयराम ठाकुर ने सवाल उठाते हुए कहा कि वर्तमान सरकार ने क्या किया? डीज़ल पर प्रति लीटर 6 रुपए वैट बढ़ा दिए। सीमेंट, बिजली, पानी, के मनमाने दाम बढ़ाए। संस्थान बंद कर दिए। अस्पताल बंद कर दिये, सहारा योजना बंद कर दी। हिमकेयर के पर कतर दिए, एसपीयू का दायरा घटा दिया। दूर दराज के स्कूल बंद कर दिए। सुक्खू सरकार कल्याणकारी राज्य के दायित्व भूल गई। इसके बाद भी इस तरह का आर्थिक संकट हिमाचल सरकार की नाकामी और ख़राब वित्तीय प्रबन्धन के कारण हैं। सरकार राजकोष को निजी कोष समझ कर खर्च करना बंद करे।  

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