हिमाचल प्रदेश के रोहड़ू के दलगांव में चल रहे ऐतिहासिक भुंडा महायज्ञ में शनिवार को शाम के वक्त बेड़ा रस्म पूरी की गई। इस महायज्ञ में सूरत राम ने मौत की घाटी को घास से बनी रस्सी से पार किया। इसे देखने के लिए हजारों की संख्या में दलगांव में भीड़ उमड़ी। शनिवार को देवता बकरालू के प्रांगण में सूरत राम ने सफेद कफन बांधकर खुद तैयार किए रस्से पर बैठकर नौवीं बार देवता के आशीर्वाद से एक छोर से दूसरे छोर तक 100 मीटर खाई को सकुशल पार किया। स्पैल वैली में हुए पवित्र आयोजन का हजारों देवलु और श्रद्धालु गवाह बने।दावा किया जा रहा है कि इसमें एक लाख से ज्यादा लोग शामिल हुए।आरोहण के लिए पालकी से उतारकर जैसे ही उसे लकड़ी की काठी पर बिठाया गया, वाद्य यंत्रों में शोक की धुनें बजने लगीं। ऊपर वाले छोर पर बेड़ा सूरत राम थे और नीचे दूसरे छोर में उनका पूरा परिवार इंतजार में था।रस्म को पूरा करने से पहले जब रस्सा लगाया जा रहा था तो उस दौरान कुछ लोगों के हाथ से रस्सी नीचे गिर गई। मगर बाद में संभलते हुए स्थानीय लोगों ने इसे बांध दिया। इससे रस्म निभाने में वक्त लग गया और फिर लंबी पूजा-अर्चना के बाद ठीक शाम 5:46 बजे सूरत राम को सकुशल रस्से के सहारे नीचे उतारा गया। नीचे पहुंचते ही उनके माथे पर बंधे पंचरत्न को लेने के लिए श्रद्धालुओं में होड़ मच गई। लोगों ने बेड़ा को देवता की पालकी में बिठाकर नाचते-गाते मंदिर परिसर तक पहुंचाया। लोगों ने उन्हें भेंट के तौर पर नकद राशि दी।
रस्म को विशेष जाती का व्यक्ति बेड़ा बनकर निभाता है। बेड़ा सूरत राम ने एक ऊंची पहाड़ी से रस्सी के जरिए नीचे की दूसरी पहाड़ी के बीच स्लाइड करते हुए मौत की खाई को पार किया। सूरत राम ने (65 साल) नौवीं बार बेड़ा बनकर रस्सी के सहारे मौत की घाटी को पार किया।1985 में बकरालू महाराज के मंदिर में इससे पहले भुंडा हुआ था। उस वक्त भी सूरत राम (तब 21 साल के थे) ने ही इस रस्म को पूरा किया था। आज सूरत राम ने नौवीं बार रस्म निभाई है।