विमल नेगी की जन्मभूमि की मिट्टी पर बने हाइड्रोप्रोजेक्ट से चमकाई जा रही थी HPPCL उच्च आलाअधिकारी की जयपुर की कोठी ।

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ग्रोवर की ऐसी शपथिया गवाही की गहनता से जांच हो तो विमल नेगी की मौत की मिस्ट्री की गुत्थी सुलझ सकती मिनटों में ।


रिपोर्ट में विशेष रूप से दो प्रमुख परियोजनाओं में घोटाले का जिक्र किया गया है—450 मेगावाट शोंगटोंग करछम हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट और 32 मेगावाट पेखुबेला सौर ऊर्जा परियोजना।

IBEX NEWS,शिमला

चीफ़ इंजीनियर विमल नेगी के मौत के मामले में राज्य सरकार द्वारा बैठाई गई जाँच में ग्रोवर की गवाही सुराग व सबूत के तौर पर तुरुप का पत्ता साबित हो सकता है।ग्रोवर अखिल भारतीय बिजली अभियंता फेडरेशन के संरक्षक है उन्‍होंने शपथ के तहत अतिरिक्‍त मुख्‍य सचिव ओंकार शर्मा  के समक्ष जो दावा किया है उसमे कहा है कि विमल नेगी की जन्मभूमि की मिट्टी पर बने हाइड्रोप्रोजेक्ट वाली तथाकथित कम्पनी एक उच्च आला अधिकारी की जयपुर में कोठी चमका रही थी । तथाकथित कंपनी के प्रतिनिधि जयपुर स्थित निजी घर के निर्माण में सहायता कर रहे थे और उन्हें अन्य राज्यों में महंगे होटलों में ठहराने, पार्टियों और अन्य सुविधाएं देने का कार्य भी कर रहे थे।सोशल मीडिया में पहले भी इस भ्रष्टाचार से संबंधित शिकायतें वायरल हुई थीं, लेकिन कोई जाँच नहीं हुई।HPPCL में भ्रष्‍टाचार किस कद्र पसर गया है उनका दावा ये खुलासा करता हैं।

बिजली बोर्ड के पूर्व इंजीनियर नेता और हिमाचल प्रदेश स्‍टेट लोड डिस्‍पैच केंद्र के पूर्व प्रबंध निदेशक इंजीनियर सुनील ग्रोवर ने हिमाचल पावर कारपोरेशन के पूर्व चीफ इंजीनियर विमल नेगी की मौत मामले में कारपोरेशन के पूर्व एमडी आइएएस हरिकेष मीणा और मामले में निलंबित निदेशक देशराज के तमाम कच्‍चे चिटठे खोले हैं।ग्रोवर बिजली बोर्ड में लंबे समय से सरकारों की करतूरों के खिलाफ आंदोलनों का हिस्‍सा रहे हैं और उन पर कभी भी भ्रष्‍टाचार और कदाचार के आरोप  नहीं लगे हैं उनकी निष्‍ठाओं पर संदेह करना ओंकार शर्मा को भी मुश्किल होगा। बेशक कोई कितने ही दांव पेंंच क्‍यों न चला दें। बहरहाल, इस मामले में ओंकार शर्मा को अपनी रपट कुछ ही दिनों में सरकार को सौंपनी है लेकिन पुलिस की अब तक जांच पूरी तरह से कटघरे में है। पुलिस का मौन भी  पुलिस की विश्‍वसनीयता को कटघरे में खड़े करता नजर आ रहा हैं। ये कोई छोटा मामला नहीं हैं। ये गुडिया मामले की तरह ही गंभीर व संवेदनशील मामला हैं।

वो भी तब जब निलंबित निदेशक देशराज हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली देसराज द्वारा दायर एसएलपी सर्वोच्च न्यायालय में पंजीकृत है तथा 7 अप्रैल को संभावित रूप से सूचीबद्ध है।

नेता प्रतिपक्ष ने अपने फेस बुक पेज पर बुधवार को ये टिप्पणी की है

हिमाचल प्रदेश में बिजली विभाग के पूर्व इंजीनियर नेता और स्टेट लोड डिस्पैच सेंटर के पूर्व एमडी सुनील ग्रोवर की गवाही ने के पूर्व एमडी IAS हरिकेष मीणा और निदेशक देशराज की कार्यशैली पर गंभीर सवाल दागे हैं। कहा है कि इस मामले में पुलिस की जांच बेहद सुस्त और संदेहास्पद रही है। ग्रोवर ने सवाल उठाया कि क्या किसी दबाव में पुलिस कार्रवाई को धीमा किया जा रहा है?

भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन के प्रमुख उदाहरण देते हुए ग्रोवर ने आरोप दागे है कि HPPCL के अंतर्गत, हरिकेश मीणा (IAS) और अभियंता देशराज द्वारा किए गए भ्रष्टाचार, अक्षमता और मनमानी से जुड़े कुछ प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं:

पेखूबेला सौर ऊर्जा परियोजना (32 मेगावाट) की पूर्ण लागत: ₹220 करोड़ है और निर्माण लागत प्रति मेगावाट: ₹6.8 करोड़ ।निर्धारित टैरिफ (HPPCL द्वारा दायर अनिवार्य याचिका के अनुसार): ₹4.90 प्रति यूनिट।

भ्रष्टाचार के प्रमुख बिंदु:

a) इस परियोजना की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) को जानबूझकर हेरफेर करके लागत को बढ़ाया गया।
b) मार्च 2023 में टेंडर निकाला गया और 4 अप्रैल 2023 को खोला गया। उस समय सौर पीवी मॉड्यूल की कीमत ₹28 प्रति kWp थी, लेकिन 15 मई 2023 को जब परियोजना का ठेका दिया गया, तब कीमतें 20% गिर चुकी थीं। 15 दिन बाद कीमतें और 50% तक गिर गईं, लेकिन फिर भी HPPCL ने इन तथ्यों को ध्यान में रखकर दरों पर पुनर्विचार नहीं किया।
c) ₹220 करोड़ की लागत पर यह परियोजना अत्यधिक महंगे दामों पर सौंपी गई, जबकि राष्ट्रीय औसत ₹3.5 से ₹4 करोड़ प्रति मेगावाट था। वास्तविक लागत ₹120 करोड़ से अधिक नहीं होनी चाहिए थी।
d) यह परियोजना M/s Prozeal नामक एक फर्म को दी गई, जो प्रारंभिक ऑनलाइन बोली में अयोग्य थी, लेकिन बाद में अतिरिक्त दस्तावेज़ लेकर योग्य घोषित कर दी गई।
e) परियोजना के लिए ई-रिवर्स बोली (e-reverse bidding) नहीं करवाई गई।
f) जल निकासी और जल हटाने वाले कक्ष (drainage dewatering chamber) का भुगतान कार्य पूर्ण हुए बिना कर दिया गया, जिससे अगस्त 2024 में परियोजना स्थल पर बाढ़ आ गई।
g) उच्च स्तरीय शक्ति समिति (HLPC) को परियोजना में देरी के बावजूद अनुबंधकर्ता को समय विस्तार (EOT) देने के लिए मजबूर किया गया।
h) परियोजना के लिए बिजली खरीद समझौता (PPA) नहीं किया गया, जिससे वित्तीय व्यवस्था करने में कठिनाई हुई।
i) HPPCL ने बिजली टैरिफ ₹4.9 प्रति यूनिट निर्धारित करने की याचिका दायर की, लेकिन HPERC ने इसे अस्वीकार कर ₹2.90 प्रति यूनिट तय किया, जिससे परियोजना की लागत भी नहीं निकल पाएगी।
j) बतौर एमडी, हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड (HPSEBL), हरिकेश मीणा ने SJVNL द्वारा ₹2.42 प्रति यूनिट की दर से दी जा रही बिजली खरीदने की अनुमति नहीं दी, जिससे HPSEBL को करोड़ों का नुकसान हुआ।
k) HPSEBL को खुले बाजार में सस्ती सौर ऊर्जा खरीदने से भी रोका गया, जिससे करोड़ों की हानि हुई।

शोंगटोंग करचम जल विद्युत परियोजना (450 मेगावाट) – निर्माणाधीन

अनुमोदित लागत: ₹1,724.10 करोड़

अगस्त 2024 तक व्यय: ₹2,230 करोड़

पूर्णता स्तर: केवल 48-53%

संभावित लागत (दिसंबर 2026 में पूरा होने पर, जो अत्यधिक असंभव है): ₹4,800 करोड़

भ्रष्टाचार के प्रमुख बिंदु:

a) मुख्य ठेकेदार, M/s Patel Engineers को अनुचित लाभ पहुंचाया गया।
b) कंपनी को ₹450 करोड़ का ब्याज मुक्त अग्रिम देने का प्रयास किया गया, जबकि पहले ही ₹1,080 करोड़ का भुगतान हो चुका था, बावजूद इसके कि मात्र 48% काम पूरा हुआ था।
c) आरोप हैं कि उक्त कंपनी के प्रतिनिधि हरिकेश मीणा के जयपुर स्थित निजी घर के निर्माण में सहायता कर रहे थे और उन्हें अन्य राज्यों में महंगे होटलों में ठहराने, पार्टियों और अन्य सुविधाएं देने का कार्य भी कर रहे थे।
d)सोशल मीडिया में पहले भी इस भ्रष्टाचार से संबंधित शिकायतें वायरल हुई थीं, लेकिन कोई जाँच नहीं हुई।
e) हरिकेश मीणा द्वारा अपनी मनमानी को वैध बनाने के लिए उच्च स्तरीय शक्ति समितियाँ (HLPCs) बनाई जाती थीं और इन समितियों के अधिकारियों को मनमाने दस्तावेज़ तैयार करने के लिए धमकाया जाता था।

सारांश और मांग

आरोप लगाया है कि उपर्युक्त घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि HPPCL में हरिकेश मीणा (IAS) और अभियंता देशराज द्वारा व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार और दमनकारी प्रशासन किया गया।इनके द्वारा किए गए अनैतिक कार्यों और मानसिक प्रताड़ना के कारण ईमानदार अधिकारी, अभियंता विमल नेगी को अपनी जान गंवानी पड़ी।इन दोनों अधिकारियों की भूमिका आत्महत्या के लिए उकसाने (abetment to suicide) की श्रेणी में आती है।संविधान के अनुच्छेद 311 के अंतर्गत इनकी तत्काल बर्खास्तगी और कठोर दंड की सिफारिश की जानी चाहिए।रिपोर्ट में इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच की मांग की गई है। इसमें स्पष्ट कहा गया है कि भ्रष्टाचार के प्रमुख किरदारों पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।

इस पूरे प्रकरण को लेकर इंजीनियरिंग समुदाय में आक्रोश है। हिमाचल प्रदेश पावर इंजीनियर्स एसोसिएशन और अखिल भारतीय विद्युत अभियंता महासंघ ने सरकार से मांग की है कि दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में व्याप्त भ्रष्टाचार को खत्म किया जाए।

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