मनजीत नेगी/ IBEX NEWS ,शिमला
इस बरसात के मौसम में हरी घास में घूमना आपकी और आपके अपनों की जान ले सकता है। हिमाचल पहाड़ी क्षेत्र है और अधिकतर आबादी कृषक,बागवानी से जुड़ी है इसलिए घास के बीच बिना एहतियात जाना जानलेवा हो सकता है।स्क्रब टायफस एक ऐसी बीमारी है जो घास में पाए जाने वाले कीड़े (लाइम) के काटने से होती है।इससे सीधे हाईग्रेड बुखार होता है और अज्ञानतावश हल्के में ये बुखार लिया तो जान से गए।
देश या यूं कहिए की दुनिया के जाने माने हिमाचल प्रदेश के सबसे बड़े चिकित्सा संस्थान आईजीएमसी शिमला के मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर संजय महाजन बता रहे हैं कि स्क्रब टायफस के बुखार और इसके लक्षणों को यदि समय रहते पहचाना जाए तो मरीज की जान बच सकती है। पहले हफ्ते में यदि समझ गए कि ये स्क्रब है तो ज्यादा दिक्त नहीं और गंभीर परिणाम रोगी को नहीं भुगतने पड़ते।
डॉक्टर महाजन के नाम इस बीमारी पर पकड़ के कई अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय,राज्यस्तरीय खिताब है और अनेकों जर्नल में इनके लेख प्रकाशित है।डॉक्टरी करने वालों के लिए इनके द्वारा इस बीमारी पर किए काम से मेडिसिन की टेक्स्ट बुक्स में चेप्टर प्रकाशित है। आईसीएमआर में लाइम डिजीज पर ड्रग ट्रायल हो रहे है और सीएमसी वेलोर के साथ ड्रग ट्रायल है। हिमाचल में बीस साल पहले तक लोग इस बीमारी से इलाज के अभाव से मर रहे थे। ये बुखार समझ नहीं आता था और रहस्यमयी बुखार महामारी बन गई थी। डॉक्टर महाजन ने बीमारी को पकड़ा और सैंकड़ों लोगों की जान बचाई।
आज हिमाचल में इस मौसम में यानी 350से400मामले अकेले आईजीएमसी शिमला में ही इलाज को पहुंचते है।बरसात के मौसम ही इस बीमारी के लिए क्रूशियल है। अन्य अस्पतालों में भी मरीज पहुंचते है और अब सभी जगह इलाज है। इनका कहना है कि इस बीमारी को पहचाने और बचें।
देखिए डॉक्टर महाजन जारी वीडियो में लोगों को जागरूक कर रहे है और चेता रहे हैं। स्क्रब टायफस के बारे मे जानकारी साझा कर रहे है,
IBEX NEWS हेल्थ बुलेटिन के जरिए।
डॉक्टर महाजन का कहना है कि स्क्रब टायफस का प्रदेश में पिछले करीब 20सालों से पता चला है। बरसात के दिनों में ये महामारी का रूप ले लेती है।प्रदेश के लगभग हर हिस्से से बहुत अस्पतालों में इस बीमारी से पीड़ित होकर मरीज आते है।
स्क्रब टायफस बीमारी मनुष्यों को जानवरों से मिलती है।इसको जूनोसिस भी बोलते है।ये एक पिस्सू होता है। जिसको माइट बोलते है।बरसात में घास,झाड़ियों में पनपता है। जब कोई इंसान घास के ऊपर पिस्सू से संपर्क होता है तो वे पिस्सू अपना जीवन आगे बढ़ाने या लाइफ साइकिल पूरा करने के लिए खून की जरूरत होती है। आमतौर पर तो खून वो जानवर जंगली चूहों से लेता है। मगर जब इंसान के संपर्क में माईट आता है तो इंसान से “ब्लड मील” लेता है। उस पिस्सू का या माइट का सलाईवा है उसके अंदर बैक्टेरिया मिलता है जिसको ओरिंशिया त्सुत्सुगमाशी बोलते है।ये जाकर शरीर में फैल जाता है।खून की नलिकाओं यानी ब्लड वेसेल में सोजिश करता है।इसके कारण सारे शरीर में खून से फैलता है।
स्क्रब टायफस के मरीज का लक्षण तेज बुखार के साथ आता है।यानी हाई ग्रेड फीवर (तेज बुखार) 102या 103डिग्री सेल्सियस तक आ सकता है। इसके साथ मरीज को शरीर में दर्द, मासपेशियों में ऐंठन होती है ये इसका सबसे कॉमन लक्षण है।
ये शुरू के लक्षण है जो पहले सप्ताह में मिलते है। एक सप्ताह के भीतर मरीज को ट्रीटमेंट नहीं मिलता है तो ये ओरेंशिया तसुत्सुगमुशी(orientia Tsutsugamushi) तब शरीर के दूसरे अंगों के सिस्टम में फैल जाता है।इसमें लीवर,किडनी,दिल,दिमाग इन सभी जगह संक्रमण फैल जाता है। परिणामस्वरूप आंखों में पीलापन,बेहोशी की हालत,एपिलेप्टिक फिट्स (दौरा),गुर्दे की खराबी आना जैसे लक्षण तब उभर जाते है।बाद में इसके चलते मरीज के फेफडे भी संक्रमण का शिकार हो जाते है।इसकी वजह से मरीज को ऑक्सीजन की कमी हो जाती है।इस हालत में मरीज बहुत गंभीर स्तिथि में चला जाता है।ये साधरण लक्षण है।
इस मौसम में वायरल, टाइफाइड,मलेरिया,सभी तरह के बहुत सारे बुखार आते है
आम आदमी इसकी पहचान करें कि पिस्सू ने पेशाब करने की जगह,आर्मपिट में काटता है।ये काले रंग का दाग जैसा बनाता है जो दर्द रहित होता है। ऐसा कुछ दाग दिख जाए तो स्क्रब टायफस कन्फर्म ही हो जाता है।
अगर इस मौसम में किसी को बुखार आए तो गंभीरता से लेना चाहिए। हाईग्रेड फीवर है तो खेत,बगीचे,पार्क में घास वाली जगह पर जाते है तो अपने खुले शरीर को ढकें।वापस आने पर नहा लें। इससे पिस्सू झड़ जाएगा।फिर भी बुखार आता है तो समीप के हॉस्पिटल जाएं और जल्दी अपना इलाज कराएं। खुद डॉक्टर न बने।स्वयं दवा न लें।चिकित्सीय सलाह जरूरी है।
बॉक्स
डॉक्टर महाजन का कहना है कि अब ये रहस्यमयी बुखार नहीं है वो आज से 20साल पहले तक था। इसका हल ढूंढ़ने का श्रेय डॉक्टर महाजन को ही जाता है।
वर्ष 2004 से लेकर वर्ष 2006 के बीच हिमाचल में अचानक इस बुखार के मरीज बढ़ने लगे। पता ही नही चल पाता था कि आखिर ये है क्या बीमारी? तब जांच के मैथड उपलब्ध नहीं थे।अब मौजूद हैं।
बॉक्सअपने स्तर पर या अपनी जेब से पैसे देकर डॉक्टर महाजन ने मरीजों के सैंपल एकत्रित कर फ्रांस भेज दिए थे। परिणाम चौकाने वाले थे। खून के नमूनों से नए स्ट्रेन मिले थे।
इंडिया हिमाचल स्ट्रेन 1
इंडिया हिमाचल स्ट्रेन 2
ये नए स्ट्रेन हिमाचल राज्य के नाम से रखे गए।पूरी दुनिया में तब हिमाचल राज्य के चिकित्सक डॉक्टर संजय महाजन का नाम चमका और खूब वाहवाही मिली।
द यूनाईटिड स्टेट्स सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन(सीडीसी) विश्व अंटारटीका के जर्नल इमर्जिंग इन्फेक्शन ऑफ़ सीडीसी 2006 में भी आर्टिकल छपा। फ्रांस से भी ट्रैवल अवार्ड मिला। चिकित्सा के क्षेत्र में बेहतर काम के लिए 3अंतर्राष्ट्रीय, एक राष्ट्रीय तथा एक राज्य स्तरीय पुरस्कार से इन्हे नवाजा गया है।