रक्षा के लिए रक्षक बनकर आए आईजीएमसी शिमला के पल्मोनरी मेडिसिन के प्रोफेसर डॉक्टर सुनील शर्मा और प्रोफेसर डॉक्टर आरएस नेगी।
बिलासपुर जिला की रक्षा जब दूसरी कक्षा में 8 साल की थी तब निगल गई थी ढक्कन का सिरा।
दुनिया भर की दवांए खाने के बाद आईजीएमसी में बीमारी पकड़ में आई, पीजीआई चंडीगढ़ आगामी इलाज को रेफर।
मनजीत नेगी/IBEX NEWS, शिमला
बार बार सांस फूलने, खांसी और फेफड़ों में संक्रमण से परेशान होकर वो दुनिया भर की दवाएं खा रही थी। कभी एंटीबायोटिक,कभी दर्द निवारक तो कभी दमे की, मगर मर्ज लाइलाज होता जा रहा था और सेहत लगातार बद से बदतर। जिला बिलासपुर की तहसील सदर से 30वर्षीय युवती रक्षा देवी थकहार कर प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल आईजीएमसी शिमला पहुंची।
बुधवार का दिन रक्षा देवी के लिए नया सवेरा लेकर आया और चिकित्सक रक्षक के रूप में साक्षात भगवान।
पता चला कि उसके फेफड़ों में 22 साल से पेन का ढक्कन का ऊपरी गोल सिरा फंसा हुआ है। जहां से रीफिल को ढक्कन से कसा जाता है उसका ऊपरी गोल हिस्सा फेफड़ों में निचले लोब में है।
आईजीएमसी शिमला के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के विशेषज्ञ चिकित्सकों प्रोफेसर डॉक्टर सुनील शर्मा और प्रोफेसर डॉक्टर आरएस नेगी और उनकी टीम ने ब्रोंकोस्कोपी से रक्षा के फेफड़ों से फॉरेन बॉडी को ढूंढ निकाला।
इसके लिए रेडियोलॉजी विभाग से सीटी स्कैन का सहयोग भी लिया गया।
मगर मरीज का दर्द और मर्ज हिमाचल में भरा नहीं जा सका।इसके लिए रिजीड ब्रोंकोस्कोपी की जरूरत है जो शिमला क्या पूरे हिमाचल में नहीं है।
अब रक्षा को पीजीआई चंडीगढ़ रेफर किया गया है।सामान्य ब्रोंकोस्कॉपी से रिजीड एक कदम आगे हाईटेक है उसकी पकड़ मजबूत है। ये मशीन यहां होती तो आज ही उसे नया जीवनदान मिल जाता।फेफड़ों में बाहरी चीज को खोजने वाले डॉक्टरों का कहना है कि रिस्क नहीं लिया क्योंकि सामान्य ब्रोंकोस्कोपी से ग्रेनुलेशन टिश्यू फट जाने का खतरा था। आंतरिक ब्लीडिंग का चांस ज्यादा था।लिहाजा रेफर किया गया।
रक्षा पहली बार चार दिन पहले आईजीएमसी शिमला आई थी।इससे पहले सालों साल विभिन्न अस्पतालों की खाक छांनती रही। जो बीमारी थी ही नहीं उसकी दवाएं खाती रही।इसलिए की एक्स_ रे में प्लास्टिक की वस्तुएं नहीं दिखती।
आईजीएमसी में जब आई तब दमे की दवाई का असर न देखते हुए ब्रोंकोस्कोपी की गई। डॉक्टरों को पता चला कि कुछ तो फेफड़ों में है,मगर साफ नहीं हो पाया कि है क्या? फिर सीटी चेस्ट किया तो कुछ स्पष्ट हुआ कि जरूर पैन कैप तरह की कुछ बाहरी वस्तु है। एक बार फिर ब्रोंकोस्कोपी रखी और मरीज की हिस्ट्री दोबारा खंगाली तो पता चला जब दूसरी कक्षा में आठ साल की थी तब पेन के ढक्कन का सिरा निगल लिया था और अब तक तो भूल भी गए थे कि ऐसा हुआ था।
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आईजीएमसी शिमला में इससे पहले प्रोफेसर डॉक्टर आरएस नेगी ने चंबा जिला के 34साल के विपिन के फेफड़ों से 13साल पुराना पेन का ढक्कन निकाला था। विपिन भी छाती के रोगों से वर्षों लड़ रहा था। ब्रोंको के जरिए उसके फेफड़ों से डॉक्टर आरएस नेगी ने ढक्कन निकाल दिया था। रक्षा विपिन की तरह भाग्यशाली नहीं निकली। उसे आगामी इलाज के लिए रेफर किया गया है। हालांकि इससे पहले भी कई मरीजों में सेब,नारियल,मीट के टुकड़े , डैश बोर्ड पिन,सिंपल सुई व आरसीटी करते हुए जो सुई इस्तेमाल होती है वो भी निकाली जा चुकी है।मूंगफली के दाने, प्लास्टिक रैपर्स के टुकड़े आदि कई मरीजों में निकाले गए है।