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….लोक बोलियों के इस्तेमाल पर विवरणिका होगी तैयार

…केन्द्रीय जनजातीय मंत्रालय एवं जनजातीय अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केन्द्र कराएगा काम

…किन्नौर जिला शोधार्थी एंव लेखक टाशी नेगी इस पर करेंगे शोध

मनजीत नेगी, शिमला

कबाइली जिला किन्नौर में लोक बोलिया अपना अस्तित्व खो रही है या बच्चे भी दिलचस्पी दिखा रहे रहें है और इन बोलियों का कितना बोलबाला गांव में आज भी है इस पर पूरा खाका तैयार होगा। ऐसे में जब क्योंकि आज किन्नौर की मुख्य लोक-बोली ‘हमस्कद’ या किन्नौरी अपने अस्तित्व को लेकर खतरे में है। बदलती जीवनशैली और पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव में अब लोगो का रहन सहन यहां बदला है और नई पीढ़ी राष्ट्रभाषा और अंग्रेजी में बढ़पन्न दिखा रहें है। लोक बोलियों के इस्तेमाल पर विवरणिका तैयार होगी।


जनजातिय जिला किन्नौर में प्रचलित सात लोक-बोलियों की विवरणिका तैयार की जाएगी।केन्द्रीय जनजातीय मंत्रालय एवं जनजातीय अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केन्द्र के तत्वधान में किन्नौर जिला शोधार्थी एंव लेखक टाशी नेगी इस विवरणिका को तैयार करेगें। इससे जिले की प्रचलित लोक-बोलियों के संरक्षण एवं सवंर्धन में सहायता मिलेगी।
टाशी नेगी ने बताया कि किन्नौर जिला की संस्कृति व यहां प्रचलित लोक-बोलियों के प्रति भाषाविधो व शोधार्थीयों का हमेशा ही आकर्षण रहा है। नेगी ने कहा-क्योंकि आज किन्नौर की मुख्य लोक-बोली ‘हमस्कद’ या किन्नौरी अपने अस्तित्व को लेकर खतरे में है। उन्होनें विश्वास जताया कि इस परियोजना से जिले की लोक-बोलियों के संरक्षण व संर्वधन में सहायता मिलेगी।

यह जानकारी उपायुक्त किन्नौर आबिद हुसैन सादिक नें मंगलवार को दी हैं।

गौर हो कि सर्वप्रथम 1886 से 1927 के मध्य जार्ज ए0 ग्रियर्सन द्वारा किए गए भारतीय बोलियों के सर्वेक्षण में किन्नौर में प्रचलित लोक-बोली को पहली बार चिन्हित किया गया था। इसे जार्ज ग्रियर्सन ने ‘कनावरी’ कहा है। इस अवधि और कई वर्षों तक या यूं कहें कि 21वीं शताब्दी के आ जाने के बाद भी, प्रायः यही समझा जाता रहा है कि जार्ज ग्रियर्सन ने ‘कनावरी’ नाम से जिस लोक-बोली को अपने सर्वेक्षण (लिगंविस्टिक सर्वे आफ इण्डिया) में चिन्हित किया है, यही एक मात्र किन्नौर की लोक-बोली है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि किन्नौर के अधिकांश क्षेत्र में इस (कनावरी) का प्रयोग होता है किन्तु यह बात भी सत्य है कि किन्नौर में ‘कनावरी’ या ‘हमस्कद्’ के अतिरिक्त अन्य 6 प्रकार की लोक-बोलियां ओर प्रचलित है।
टाशी नेगी ने कहा कि वर्ष 1961 की जनगणना अनुसार भारत में 1,652 मातृबोलियां थीं। 1921 में हुए जनसंख्या सर्वेक्षण के अनुसार 184 ऐसी मातृबोलियां थीं जिनका प्रयोग 1,000 से अधिक लोग कर रहे थे। इनमें 400 ऐसी थीं जिनका ग्रियर्सन के सर्वे में उल्लेख नहीं हुआ है।

इस अवसर पर सिद्धान्त एजुकेशन एण्ड रिसर्च फाउंनडेशन की फाऊडर मेबर नमीता शार्मा व भाषा एवं संस्कृति विभाग से नीमा राम भी उपस्थित थे।

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