बुद्ध पुर्णिमा के दिन छितकुल माता देवी गंगा मां की गोद से उतरकर हिमाचल रवाना,6दिन तक रही गंगा मां के आंचल में।

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देर शाम तक उतराखंड के गांव हरसिल पहुंची,हुआ भव्य स्वागत

छितकुल वापसी भी जोखिम भरे दर्रो से ही होगी,चीन और भारत के सीमावर्ती इलाकों पर से होगी ट्रैकिंग

मनजीत नेगी,शिमला

गंगोत्री में स्नान कर गंगा मां की गोद में 6दिन गुजारने के बाद आज सोमवार को बुद्ध पूर्णिमा के दिन छितकुल माता देवी हिमाचल रवाना हो रही है। भारत और चीन के सीमावर्ती इलाकों के बीच पथरीले हजारों फीट ऊंचे पहाड़ों पर से ही माता देवी वापस आयेगी। उत्तराखंड और हिमाचल के जोखिम भरे कई दर्रो को पार करते हुए गांव छितकुल में उनका भव्य स्वागत होगा। लोग फाफरा बाड़ी,पूरी, चावल ,चारों दिशाओं से लाए गए कई किस्म के फूल,गुगुलंग जड़ी बूटियों वाले स्थानीय धूप की पत्तियों से पुजा करते है। इससे पहले उनके रथ को सजाया जाता है और मां का श्रृंगार कर पूजा की जाती है। इसके बाद माता देवी गंगोत्री का प्रसाद गंगाजल मिलाकर देगी।

गांव में प्रवेश कब करना है ये रास्ते में तय होगा और फिर गांव वालों तक संदेश भिजवाया जायेगा।हालांकि अब मोबाइल से ऐसा संभव है।पहले रणसिंघा से चेताया जाता था। इस बार गंगोत्री मंदिर में प्रवेश के दौरान बुद्ध पूर्णिमा के दिन वापस प्रस्थान का दिन निर्धारित किया गया।

11मई को गंगोत्री में स्नान के बाद माता देवी गंगा मां के आंचल की छांव में रही। उनकी पूजा अर्चना भी गंगोत्री के पुजारियों द्वारा ही हुई। इस दौरान छितकुल वासी उनकी पूजा नहीं करते। माता देवी के सारे विशेष कारदार और पूजारी साथ है , मगर गंगोत्री मंदिर के भीतर उनका प्रवेश मान्य नहीं है।वे बाहर आगामी आदेशों तक इंतजार करते हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी गंगोत्री के पुजारी ही इस दौरान छितकुल माता की पूजा करते आ रहे हैं। बताते है की गंगा जी की गोद में बैठने का सौभाग्य माता देवी को ही प्राप्त है, अन्य देवी देवता जो भी स्नान के बाद मंदिर में प्रवेश करते है उन्हें गंगा जी की मूर्ति विशेष के एक तरफ ही जगह मिलती है। माता देवी को ही गंगा जी की गोद में बैठाया जाता है। इस के पीछे मान्यता ये है कि छितकुल माता देवी गंगा मां की स्पुत्री हो सकती है तभी गोद में बैठती हैं। छितकुल माता देवी के गुर तुलसी इसकी पुष्टि कर रहे है।

वहीं गंगोत्री मंदिर के पुजारी 73 वर्षीय गजेंद्र प्रसाद बताते है कि छितकुल माता देवी की पूजा मेरे दादा और उनके बुजुर्गों के जमाने से होती है। टिहरी के इंटरकालेज में प्राचार्य पद से सेवानिवृत प्रसाद का कहना है पीढ़ी दर पीढ़ी से यहां हम पुरोहित है। छितकुल माता देवी का अपना ही विशेष महत्व है,शक्तिशाली और प्रत्यक्ष है, तभी विशेष सम्मान मिलता है। उनकी शक्ति भव्य है। टिहरी नरेश ने तांब्र पत्र पर लिखा है कि यात्रा के दौरान माता देवी को मंदिर में प्रवेश मिलेगा और गंगा जी की गोद में वे विश्राम करेगी। सदियों से ऐसी परंपरा कायम है । मेरे बुजुर्ग भी यही करते रहे है। उन्हें विशेष महत्व देने के आदेश है।

गंगोत्री में सेमवाल पुजारियों द्वारा गंगा मां के साकार रूप यानी गंगा धारा की पूजा की जाती है।भागीरथी शीला के समीप एक मंच था जहां यात्रा के दौरान देवी देवताओं की मूर्तियां रखी जाती थी।

ये आसपास के गावों ,रियासतों से लाई जाती थी जिन्हें यात्रा समापन पर उन्हीं गावों को लौटा दिया जाता था ।इसी से जोड़कर माता देवी की यात्रा को भी जोड़कर देखा जाता रहा है।
प्रत्येक वर्ष मई से अक्टूबर के महीनो के बीच लाखों श्रद्धालु तीर्थ यात्री यहां आते है। छितकुल वासी बीते 2दशक तक इसी स्थान पर तीर्थ नहाते थे।

बताते चले कि पौराणिक कथाओं के अनुसार गंगोत्री में आकाश से गिरती हुई गंगा को महादेव ने अपने मस्तक पर धारण किया था। और उन्हें मनुष्य लोक में छोड़ दिया।भागीरथ के अनुरोध से गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित हुईं। उतरवाहनी बनी उसे गंगोत्री (जहा गंगा उतरी) कहा गया है। पुराने समय में यहां कोई मंदिर नही था , केवल भागीरथ शीला के पास चौंतरा था। इसके समीप ही देवी गंगा की धारा ने गोमुख यानी धरती स्पर्श किया था। देवी गंगा रामचंद्र के वंश की इष्ट देवी मानी जाती है ।

भगीरथ की घोर तपस्या से जब पृथ्वी पर आने का आदेश उन्हे मिला तो तेज प्रवाह वेग को कम करने के लिए महादेव ने अपनी जटाओं में गंगा को बांध लिया। घुंघराली जटाओं में से केवल छोटी धाराओं को ही बाहर निकलने दिया। शिवजी का स्पर्श पाने से गंगा और अधिक पवित्र हो गई। पाताल लोक की तरफ जाते हुए गंगा ने पृथ्वी पर बहने के लिए एक और धारा का निर्माण किया ताकि अभागे लोगों का उद्धार किया जा सके।गंगा एकमात्र नदी है जो तीनों लोको स्वर्ग,पृथ्वी और पाताल में बहती है तभी इसे त्रिपथगा भी कहते है।


पौराणिक कथाओं के अनुसार सूर्यवंशी राजा रामचन्द्र के पूर्वज रघुकुल के चक्रवर्ती राजा भगीरथ ने यहां एक पवित्र शिलाखंड पर बैठकर भगवान शंकर की प्रचंड तपस्या की थी। अपने वंशजों की आत्मा को मुक्ति देने के लिए 5500वर्षों तक घोर तप किया था। उन्होंने उस जगह तक रास्ता बनाया जहां पूर्वजों की राख थी और आगे गति नहीं मिली थी। बंगाल की खाड़ी तक ये धारा प्रवाह बहती है फिर सागर में लीन हो जाती है।
गंगोत्री के लिए एक मान्यता ये भी है कि महाभारत के समय कुरुक्षेत्र में मारे गए अपने सगे संबंधियों की आत्मिक शांति के नाम पर प्रायश्चित करने के लिए भी पांडवों ने देव यज्ञ किया था। उन्हें सांसारिक कष्टों से मुक्ति दिलाई ।

गंगोत्री गंगा नदी का उद्गम स्थान है।मंदिर समुद्र तल से 3042मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। 18वीं शताब्दी में मंदिर का निर्माण हुआ है।

ये लोग है माता देवी के साथ यात्रा पर


तुलसी राम नेगी गुर
हिमत्त सिंह नेगी गुर
प्यार सिंह नेगी गुर
भगरत्न नेगी पुजारी
रजनीश नेगी माथस
सुशील सागर नेगी भंडारी
यशवंत नेगी पतलिका
विनोद नेगी
लक्की नेगी

यह बर्फीले, पथरीले पहाड़ों ग्लेशियरो को लांघते हुए 90 किलोमीटर की यात्रा है।

सड़क माध्यम से छितकुल गंगोत्री तक 450किलोमीटर की यात्रा है।
मगर माता देवी की यात्रा 5300मीटर ऊंचाई पर स्थित लमखागा पास, छोटाखागा पास और क्यारकोटि की घाटियों को पार करके उत्तराखंड के सबसे दूरगामी गांव हरसिल पहुंचती हैं। जब जब माता देवी गंगोत्री स्नान के लिए जाती है तब यही रास्ता चुना
जाता है।वापसी भी यही से होती है। बुध पूर्णिमा के दिन देवी माता छितकुल की ओर रवाना हुईं है और देर शाम तक उतराखंड के हरसिल गांव में पहुंचे है।जहां स्थानीय लोगो ने उनका स्वागत किया है। यहां हर घर से गुरो और पुजारियों को खाना खिलाने की होड़ लगी है और नमक हर घर से पहुंचता है।

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