कहा,थोड़ा -बहुत लेता,मंत्रालय को शिकायत नहीं आती तो ठीक था और जाँच भी नहीं होती।अब मंत्रालय अपना काम कर रहा है और केस कोर्ट में हैं।
वाटर सैस पर और कहा क्या कहा आरके सिंह केंद्रीय ऊर्जा मंत्री ने क्लिक करें सुने जारी वीडियो में । IBEX NEWS,शिमला।
मनजीत नेगी/ IBEX NEWS,शिमला।
हिमाचल प्रदेश देश के अन्य राज्यों की अपेक्षा विद्युत परियोजनाओं में बहुत अधिक वाटर सेस ले रहा है। थोड़ा बहुत लेता तो इतना हो – हल्ला नहीं होता और भारत सरकार के ऊर्जा मंत्रालय के दरबार तक इसकी गूंज नहीं पहुँचती। अब भारत सरकार को इसकी शिकायत आई तो क़ानून खंगाले और पता चला कि ये ग़ैर क़ानूनी है और सही नहीं है। बीते सप्ताह हिमाचल प्रदेश के ज़िला किन्नौर के वाइब्रेंट विलेज छितकुल दौरे के दौरान केंद्रीय ऊर्जा मंत्री RK सिंह ने ये बड़ा बयान दिया है और कहा कि अब उतराखंड भी विद्युत परियोजनाओं पर सेस नहीं ले रहा है। हिमाचल प्रदेश की विद्युत परियोजनाओं पर इम्पोज़ किए वाटर सैस पर केंद्रीय ऊर्जा मंत्री ने बताया कि ये निर्णय क़ानून के अनुसार असावैंधानिक और ग़ैर क़ानूनी है।हिमाचल की शिकायत आई तो मंत्रालय ने इस संबंध में पहली बार क़ानून खंगाले।हिमाचल ने सभी राज्यों से ज़्यादा सेस लगाया।थोड़ा बहुत लेता और मंत्रालय को शिकायत नहीं आती तो ठीक था और जाँच भी नहीं होती।
उन्होंने कहा कि सरकारें विद्युत परियोजनाओं से उत्पादित बिजली की खपत पर क़ानूनी तौर पर टैक्स लगा सकती हैं। मतलब जो बिजली खपत या इस्तेमाल हो रही है उस पर सैस लगाया जा सकता है लेकिन बिजली उत्पादन पर क़ानूनन ये ग़ैर क़ानूनी है और असंवैधानिक है।
अब मंत्रालय मामले पर अपना काम कर रहा है और केस कोर्ट में हैं।वाइब्रेंट विलेज के दौरे के दौरान एक सवाल के जवाब में सहजता से दिया जवाब तो सीएम हिमाचल ने भी कहा कि केंद्र और राज्य सरकार साथ मिलकर विवाद विवाद सुलझा लेंगे।
आर्थिक तंगी से जूझ रही हिमाचल प्रदेश की सुखविंद्र सिंह सुक्खू सरकार ने राजस्व बढ़ाने के लिए पन बिजली उत्पादन पर शुक्रवार से वाटर सेस लागू किया है। पड़ोसी राज्य उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर की तर्ज पर राजस्व जुटाने के लिए प्रदेश सरकार ने बिजली उत्पादन पर पानी का सेस लगाने का फैसला लिया है। प्रदेश में छोटी-बड़ी करीब 175 पनबिजली परियोजनाओं पर वाटर सेस से सरकार के खजाने में हर साल करीब 700 करोड़ रुपये जमा होंगे। मज़े की बात ये कि अभी तक 125 बिजली प्रोजेक्ट बी इसके लिए अपना पंजीकरण तक करवा लिया है। 28 कंपनियां सरकार के इस निर्णय के ख़िलाफ़ कोर्ट में गई है।
सरकार प्रति घन मीटर 0.10 रुपये से लेकर 0.50 रुपये प्रति घनमीटर तक वाटर सेस वसूलेगी।
यूं वसूलेंगे सेस (रुपये में)
- 30 मीटर तक हेड की पनबिजली परियोजना 0.10 प्रति घन मीटर
- 30 से 60 मीटर तक हेड की पनबिजली परियोजना 0.25 प्रति घन मीटर
- 60 से 90 मीटर तक हेड की पनबिजली परियोजना 0.35 प्रति घन मीटर
- 90 मीटर से अधिक हेड की पनबिजली परियोजना 0.50 प्रति घन मीटर
केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने केंद्रीय ऊर्जा मंत्री की सहमति से एक पत्र सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को भेजा है। इसमें कहा गया है कि राज्य बेशक यह तर्क दे रहे हों कि वे अपने यहां पानी पर टैक्स लगा रहे हैं, लेकिन यह टैक्स उत्पादित बिजली पर लग रहा है और बिजली पर टैक्स लगने के कारण दूसरे राज्यों या ग्रिड में बिजली की कीमत बढ़ रही है। यह संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ है। कोई भी राज्य ऐसा कदम नहीं उठा सकता, जिसका असर दूसरे राज्यों के लोगों पर हो। इस पत्र में हिमाचल के साथ-साथ उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में पहले लिए गए इसी तरह के फैसले पर भी सवाल उठाए गए हैं।
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हिमाचल में वर्तमान में 50 से ज्यादा बिजली प्रोजेक्ट चल रहे हैं और 30 से ज्यादा परियोजनाओं पर अभी काम चल रहा है। इन सभी परियोजनाओं पर यह टैक्स लागू होगा। राज्य की कुल विद्युत उत्पादकता करीब 25000 मेगावाट है। ऐसे में यदि यह फैसला लागू हो गया, तो सरकार की कमाई का एक अच्छा जरिया सामने आएगा। हिमाचल में भाखड़ा जैसे पुराने डैम रॉयल्टी भी नहीं देते। हालांकि इसके बाद स्थापित हुई नई बिजली परियोजनाएं ज्यादा रॉयल्टी दे रही हैं। हिमाचल में पानी पर इस तरह सेस इससे पहले नहीं लगा था। बिजली बनाने के लिए इस्तेमाल हो रहे पानी पर ही यह टैक्स लगेगा।
हिमाचल सरकार का इस मामले में ये स्टैंड रहा है कि पंजाब और हरियाणा ने तर्क दिया है कि इंटर स्टेट रिवर वॉटर डिस्प्यूट एक्ट 1956 के तहत इस तरह का कोई टैक्स नहीं लगाया जा सकता, जबकि असलियत यह है कि एक्ट की धारा-7 इस तरह का वोटर सेस लगाने से नहीं रोकती। हिमाचल को अपने पानी पर यह फेस लगाने का अधिकार है, क्योंकि यह पड़ोसी राज्यों के पानी पर नहीं है, न ही नदियों का पानी छोडऩे को लेकर यह विवाद है। इससे पहले पड़ोसी राज्यों उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में इस तरह का वाटर सेस लगाया है।
उसी आधार पर हिमाचल ने भी यह फैसला लिया है, ताकि अपना राजस्व बढ़ाया जा सके। पानी क्योंकि स्टेट सब्जेक्ट है, इसलिए किसी भी राज्य को यह अधिकार है। बीबीएमबी के प्रोजेक्टों पर वाटर सेस का जो असर होगा, उसमें उसमें हिमाचल भी शामिल है, क्योंकि इसके पांच भागीदार राज्यों में हिमाचल भी है। बीबीएमबी का शानन प्रोजेक्ट वैसे भी मार्च 2024 में अगले साल लीज अवधि खत्म होने के बाद हिमाचल को आ रहा है। बीबीएमबी को अब भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार हिमाचल का एरियर चुकाना है। इसलिए पंजाब का यह विरोध जायज नहीं है कि वाटर सेस के कारण उन्हें 1200 करोड़ सालाना चुकाने होंगे। हिमाचल प्रदेश सरकार ने अपने राज्य के हित में यह फैसला लिया है और सरकार इस फैसले के साथ खड़ी है।