मनजीत नेगी/IBEX NEWS,शिमला।
हिमाचल प्रदेश के प्रीमियर चिकित्सा संस्थान आईजीएमसी शिमला सहित टांडा, मंडी,हमीरपुर,चंबा के डॉक्टर्स और प्रोफेसर्स आज से मरीजों की नब्ज तो देखेंगे मगर साथ विरोधस्वरूप काले बिल्ले लगाकर अपनी सरकार का विरोध भी जताएंगे। मांगे पूरी नहीं होने के कारण कॉलेज के चिकित्सक सरकार से नाराज़ है। चार अक्टूबर से सामूहिक अवकाश पर जाने की तैयारी है। इस बीच यदि सरकार मांगो को लेकर संज्ञान लेती है तो मास कैजुअल लीव पर नहीं जाएंगेl।कॉलेज प्राचार्य डॉक्टर सीता ठाकुर को इस संबंध में सैंमडीकॉट शिमला ने इतलाह कर दिया है और बाकी मेडिकल कॉलेज में आज बैठक में तय किया गया है कि अब और सहन नहीं होगा। मास कैजुअल लीव सरकार को दी जाएगी।
आईजीएमसी एवम डेंटल डॉक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेश सूद ने कहा कि सभी मेडिकल कॉलेज अब एकजुट हो गए है सरकार मांगो पर शीघ्र निर्णय लें। हमारा ध्येय मरीजों की अनदेखी नहीं, बस हम न्याय चाहते हैं।
यदि हिमाचल प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों के सैंकड़ों डॉक्टर्स और प्रोफेसर्स खफा हो गए तो मरीजों को अस्पतालों के बिस्तरों पर कराहने को मजबूर होना पड़ेगा। दूरदराज के अस्पतालों से रेफर मरीजों को परेशानी झेलनी पड़ेगी। सैंकड़ों डॉक्टर अवकाश पर जायेंगे तो अस्पतालों की चिकित्सा व्यवस्था चौपट हो जायेगी। बिन मांगे विपक्ष को एक और मुदा भी। हिमाचल में विधानसभा चुनाव सिर पर है।
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मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों को अभी तक अकादमिक भत्ता नहीं मिलता।ये लंबे समय से मांग है। मेडिकल कॉलेज में जिन डॉक्टरों को पढ़ाया उन्हें जिलों और परिफ्री के अस्पतालों में ये एलाउंस 18000 ₹ मिल रहा है। इससे पहले ये सात हजार ₹ मिलता था ।
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हिमाचल प्रदेश सरकार ने चिकित्सकों की इस मांग को पाटने के लिए एक विशेष कमेटी बनाई थी जब पहले डॉक्टरों ने अपनी मांग सरकार के समक्ष रखी थी।अब वो कमेटी कहां गई?क्या काम कमेटी ने किया?रिपोर्ट किधर है? कोई नहीं जानता।सरकारी फाइलों में ही कमेटी और उसके दस्तावेज दफन है। संघ के बड़े अधिकारियों का आरोप है कि उस कमेटी के अधिकारियों की याददाश्त अब फीकी पड़ी है क्योंकि उन लोगों के तबादले अब दूसरे विभागों में हो गए है या फिर यूं कहे की दूसरे महकमों का जिम्मा अब उनके पास है।ऐसे में चिकित्सक हैरान और परेशान है।
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बताते है कि जब नए बड़े “साहब” से इस संबंध में बात हुई तो दो टूक जवाब मिला है कि मामले पर उन्हें नॉलेज नही है। सरकार के संबंधित ऑफिसरों को ही जब मामले का ज्ञान नहीं बताया जा रहा है तो डॉक्टर्स अपने आपको ठगा महसूस कर रहे है।
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दूसरी और लंबित बड़ी मांगों में ये है सरकार आईजीएमसी से दूसरे मेडिकल कॉलेजों के लिए डॉक्टरों और प्रोफेसरों को 6 महीने के लिए भेजना बंद करें। आधे साल तक दूसरे कॉलेजों में सरकार अब डॉक्टरों को भेज रही है।इससे वरिष्ठता और कनिष्ठता को लेकर बंदरबाट हो रही है। प्रमोशन की रेवड़ियां अपने चहेतों को बांटने के साथ पोस्टिंग मनपसंद कॉलेजों में हो रही है।
सरकार का ये फैसला आईजीएमसी सहित अन्य कॉलेजों को भी दीमक की तरह भीतर ही भीतर खोखला कर सकता है। सरकार इसके लिए स्थाई समाधान खोजे। नई भर्तियां नए कॉलेज के लिए की जाए। संघ के प्रतिनिधि डॉक्टर योगेश दीवान,दिव्या वशिष्ठ,मनजीत कुमार,अरुण चौहान ने कहा है कि टाइम बाउंड प्रमोशन भी सरकार नही दे पाई है।
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आज से विरोध जता रहे डॉक्टरों का आरोप है कि कॉलेज प्राचार्य को ताश के पतों की तरह फेंटा जा रहा है। कॉलेजों के संघ को सरकार ने भरोसे में नहीं लिया और मनमर्जी से प्राचार्यों को इधर से उधर किया जा रहा है।जब आईजीएमसी टांडा का कैडर अलग है और डॉक्टरों से पूछकर ये सेपरेशन हुई जो टांडा गए उन्हें प्रमोशन भी बकायदा दी तो अब जूनियरों को सीनियरों के सिर पर सरकार कैसे बैठा रही है।इससे मेडिकल कॉलेजों का पूरा सिस्टम ही गड़बड़ा रहा है।