माँ की ममता की छाँव को छितकुल माता देवी गंगोत्री धाम आज होगी रवाना।मंदिर प्रांगण में पूजा अर्चना शुरू।

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  • चुनिंदा 8 कारदारों का कारवां आज गंगोत्री होगा रवाना।गंगोत्री धाम के कपाट आज ही खुल रहें हैं।
  • ग्लेशियरों की गहरी खाईयों को लांघने के लिए कारदारों के पास ना कोई विशेष प्रशिक्षण,ना किसी को महँगे ऑक्सीजन सिलिंडर जैसी अत्याधुनिक सुविधाओं को साथ रखने का लालच, ना ही जान की परवाह के लिए किसी के माथे पर कोई शिकन।माता देवी के आशीर्वाद पर भरोसा कर लांघ जाते है ख़तरनाक दर्रे।

  • साथ के जाने वाली खाद्या सामग्री में सतुओं की पोटली पर विश्वास आज भी नहीं डगमगाया।पीठ का भार कम हो ,वापसी को आगे बढ़ते हुए बर्फ़ की मोटी चादरों में दबा जाते है सामग्री।
  • सरकार से आज दिन तक इस तरह की विशेष धार्मिक यात्राओं के लिए नहीं मिलता एक नया पैसा, न ही ली जाती है कोई सुध। लोगों को कोई मलाल नहीं।कठिनतम यात्रा के इस ट्रैक पर ट्रैकरों की चुकी है कई जाने।
  • लोग माता देवी को देते हैं इस ट्रैक को जिंदा रखने का पूरा क्रेडिट।रिकॉर्ड ये है कि इस मौसम में हर साल होने वाली इस यात्रा में आज तक नहीं हुई है कोई अनहोनी।

मनजीत नेगी/ IBEX NEWS,शिमला।

हिमाचल प्रदेश के जनजातीय ज़िला किनौर की अपनी गरिमा और महत्व है ,वो भी आज से नहीं अनादि काल से है।भारत के पुरातन इतिहास और साहित्य में किन्नौर का ज़िक्र वैदिक काल से मिलता है और मानसरोवर से उद्गम जिस सतलुज की घाटियों में किन्नौर बसा हुआ है इसका उल्लेख शुतुद्री , शतद्रु के नाम से ऋग्वेद से लेकर महाभारत तक है।सतलुज नदी में भारत और चीन (तिब्बत) के बॉर्डर पर मौजूद चुंग सखागो दर्रा बासपा घाटी के शीर्ष पर स्थित है । यह बारहमासी ग्लेशियरों से पोषित होता है और दुनिया की सबसे पवित्र मानी जाने वाली गंगा नदी के साथ जलग्रहण क्षेत्र साझा करता है ।

बासपा नदी इन्ही पहाड़ियों से शुरू होती है, करछम के पास बाएं किनारे से सतलज नदी में मिलती है । छितकुल (3,475 मीटर) से लेकर जहां बसपा करछम (1,830 मीटर) में सतलुज नदी से मिलती है।इसी नदी के मुहाने पर छितकुल गाँव बसा है और पूरे किन्नौर की देवियों में सबसे शक्तिशाली मानी जाने वाली छितकुल गाँव की देवी “माथी” जो ऊँचाई वाले क्षेत्रों की रक्षिका कहलाती है सदियों पुरानी परंपरा के अनुसार गंगोत्री धाम,गंगा नदी की उद्गम स्थान के लिए यात्रा पर जा रही है । पड़ोसी राज्य उत्तराखंड के चार धाम तीर्थयात्रा में चार स्थलों में से ये एक है | नदी के स्रोत को भागीरथी कहा जाता है , और देवप्रयाग के बाद से यह अलकनंदा में मिलती है, जहाँ से गंगा नाम कहलाती है | पवित्र नदी का उद्गम गोमुख पर है जो कि गंगोत्री ग्लेशियर में स्थापित है और कहते है कि छितकुल माता देवी गंगा पुत्री है और गढ़वाल इलाक़े में अकेली ऐसी छितकुल माता देवी है जो कई दिनों तक माँ गंगा की गोद में बैठती है। कुछ साल पहले गंगोत्री में दक्षिण भारत के एक पुजारी ने आपत्ति जताते हुए माता देवी को गंगा माता की में बैठाने से इनकार कर दिया कि इलाक़े के कोई भी बड़े देवी देवताओं को ऐसा नहीं करते तो फिर हिमाचल प्रदेश पड़ोसी राज्य की देवी को क्यों बैठाया जाए?कारदार उन्हें मनाते रहें माने नहीं और फिर छितकुल माता देवी के मुख्य क़ारदार जिन्हें हिन्दी तक आसानी से बोलनी नहीं आती दक्षिण भारतीय पुजारी को उसकी भाषा में समझाया गया। लोग अवाक रह गए और माता देवी को उनके स्थान दिया गया।ग्रामवासी ये यात्रा हर्षोल्लास के साथ अब भी निभाते हैं। माता देवी के रथ के साथ इस मर्तबा गांव के 8 लोग चयनित है। यात्रा विशेष की तैयारिया बीते दिनों से हो रही है जो आज शुक्रवार को पूरी हो होगी। ग्लेशियरों को लांघ कर होने वाली ये नब्बे किलोमीटर की यात्रा हालांकि सड़क माध्यम से छितकुल गंगोत्री तक 450किलोमीटर की है। मगर माता देवी के आदेशों से 5300मीटर ऊंचाई पर स्थित लमखागा पास, छोटाखागा पास और क्यारकोटि की घाटियों को पार करके पूरी होती हैं। जब जब माता देवी गंगोत्री धाम में स्नान के लिए जाती है तब यही रास्ता चुना जाता है।

अक्षय तृतीया आज ही के दिन गंगोत्री धाम के कपाट खुले है और छितकुल माता देवी गंगोत्री धाम गंगा माँ से मिलने जा रही है।

माता देवी को नम आँखों से विदाई देते ग्रामवासी।

माता देवी की पूजा अर्चना कर उनकी यात्रा मंगलमय होने की कामना के साथ गाँववाले इस तरह करते है उनकी विदाई।
  • छितकुल – हरसिल (गंगोत्री घाटी) की यह यात्रा किन्नौर_ गढ़वाल हिमालय मे होती है । पूरे पश्चिमी हिमालय में इस ट्रैक को सबसे खतरनाक माना जाता है। किन्नौर की तरफ से लमखागा को लांघना बड़ा कठिन है।बताते हैं कि छितकुल में करीब 500साल पुराना मंदिर इसके प्रांगण में था और इससे पहले गांव की ऊंची चोटी थिंगसियनिंग में था ।आज भी यहां पूजा होती है।लोक गाथाओं गीतों में भी इसका जिक्र है। हर साल देवी इस स्थान पर जाती है । वे इस स्थान को नहीं भूली है ।मान्यता है कि माता देवी की गंगोत्री यात्रा तब से है। माता देवी वृंदावन से आई है और इसी रास्ते आई है।

गंगोत्री धाम के कपाट आज ही खुल रहें हैं।

ये यात्रा छितकुल के भरकुटू से शुरू होती है। दूसरे दिन नागस्थी ,रानीकंडा होते हुए दुमती तक पहुंचती है।यह स्थल समुद्र तल से 4050मीटर ऊंचाई पर है।इसके बाद घुंडर जो छितकुल गांव का कंडे यानि चरागाह भेड़, बकरी, गाय, याक आदि के लिए है ।यहां रात गुजारने के बाद सबसे ऊंचे पास लामखागा दर्रे के लिए तैयारी होती हैं। घुंडूर 4600मीटर ऊंचाई पर है।पहले यहां से गंगोत्री या बद्रीनाथ जाने के लिए अलग रूट भी था जो चीन की एक घाटी से होकर गुजरता था। किन्नौर के पूर्व में तिब्बत है जो अब चीन के प्रभुत्व में है।इसके दक्षिण में उत्तरकाशी और रोहड़ू,दक्षिण पश्चिम में रामपुर, पश्चिमोत्र में कुल्लू तथा लाहुल स्पीति है।चीन से व्यापारिक संबंध बंद होने के साथ पुराना रास्ता भी बर्फीले पहाड़ो में दफन हों गया है।

लमखागा दर्रा गढ़वाल क्षेत्र का सबसे कठिन संपर्क दर्रा भारत तिब्बत सीमा के पास स्थित है।लमखागा दर्रे के दौरान देवदार और भोजपत्र के समृद्ध जंगलों वाले हिमाचल और गढ़वाल के कुछ दूरदराज के इलाकों से यात्रा पहुँचती हैं

अपनी ऊंचाई और सुदूरता के कारण, लमखागा दर्रा उत्तराखंड हिमालय में सबसे कठिन ट्रेक में से एक माना जाता है। लमखागा दर्रे को सबसे पहले 1933 में ग्रीक-ब्रिटिश पर्वतारोही मार्को पैलिस ने पार किया था। मगर छितकुल मातादेवी की सदियों पुरानी इस धार्मिक प्रथा या यात्रा इस बात को झुठला रही है कि ये ट्रैक तीस के दशक में बना।

अब इस रास्ते कोई नहीं जाता न ही कोई ट्रैक और सिलकरुट है। गुंडर घास के मैदान से गुजर कर निथल थाटांग और सुथिथांग के पास पहुँचकर घाटी मैदानों के साथ चौड़ी हो जाती है और अंत में लमखागा दर्रा (5,282 मीटर / 17,320 फीट) सबसे कठिन दर्रे में से एक है जो हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले को उत्तराखंड के हर्षिल से जोड़ता है पर पहुँचते है। लमखागा दर्रा गढ़वाल हिमालय में एक उच्च ऊंचाई वाला दर्रा है जो हिमाचल प्रदेश में सांगला से जुड़ता है। अपनी ऊंचाई और सुदूरता के कारण, लमखागा दर्रा उत्तराखंड हिमालय में सबसे कठिन ट्रेक में से एक माना जाता है। लमखागा दर्रे को सबसे पहले 1933 में ग्रीक-ब्रिटिश पर्वतारोही मार्को पैलिस ने पार किया था। मगर छितकुल मातादेवी की सदियों पुरानी इस धार्मिक प्रथा या यात्रा इस बात को झुठला रही है कि ये ट्रैक तीस के दशक में बना।छितकुल गांव में सबसे पुराने 100 वर्षीय जिया लाल का कहना है कि मेरे बुजुर्ग भी इस यात्रा पर जाते रहे हैं और बुजुर्गों के बुजुर्ग भी माता देवी के रथ के साथ गंगोत्री यात्रा पर जाते रहे है। अब तक 16 बार जिया लाल नेगी इस धार्मिक यात्रा का हिस्सा बन चुके है ।वे माता देवी के गुर भी रहें हैं।

यात्रा के पथ पर कई ऐसे दर्रे है जिनका नाम मालूम नहीं।

इस बार मदन सिंह (65 वर्षीय), हिम्मत सिंह नेगी( 63 वर्षीय),रजनीश कुमार नेगी (33 वर्षीय) , जसविंदर सिंह नेगी (37 वर्षीय), परवीन कुमार नेगी (34 वर्षीय), राजेश कुमार नेगी ( 49वर्षीय),राजकिरण नेगी ( 29 वर्षीय), अशोक कुमार नेगी ( 54 वर्षीय) धार्मिक यात्रा पर जा रहें हैं। ख़ास बात ये कि कारदारों में सब पढ़ें लिखे है ।डबल एमए, बीएड ग्रेजुएट और हिस्ट्री में गोल्ड मेडलिस्ट तक भी यात्रा में शामिल है।ग्रुप में पहली मर्तबा दो लोग जा रहें है और अशोक कुमार 11वीं बार हिम्मत सिंह पाँचवीं मर्तबा इस यात्रा में जा रहें हैं। न मौसम के मिज़ाज की चिंता इन्हें सता रही है ना ही ग्लेशियरों की गहरी खाईयों को लांघने के लिए किसी को महँगे ऑक्सीजन सिलिंडर जैसी अत्याधुनिक सुविधाओं को साथ रखने का लालच है। जान की परवाह के लिए माथे पर कोई शिकन नहीं हैं।माता देवी के आशीर्वाद पर भरोसा है कि वो स्वयं इस दौरान रखवाली होती हैं।कठिन दर्रों को लांघने वाले हम कौन होते हैं? रजनीश बताते है कि हमें किस बात की चिंता है माता देवी स्वयं साथ जा रहीं हैं। वहीं जसविंदर नेगी का कहना है कि माता देवी ने हमे स्वयं चुना हैं तो कोई डर नहीं।अशोक नेगी बताते हैं कि नब्बे के दशक से यात्रा पर जा रहा हूँ। मौसम इस दौरान बढ़िया रहता है और माता देवी स्वयं रास्ता बताती है । उनका आशीर्वाद बना रहता है। इनके हौसलें को पूरे ग्रामवासी दाद देते है ऐसे में जब छितकुल गॉव से पीछे रक्कछम के देवता भी इस यात्रा पर जा रहें हैं मगर सड़क मार्ग से वे वहाँ रवाना होंगे।लमखागा दर्रा ट्रेक एक पौराणिक ट्रेक मार्ग है जिसमें लोग पुराने समय के व्यापार और भेड़ बकरियों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाते हैं।लमखागा दर्रा गढ़वाल क्षेत्र का सबसे कठिन संपर्क दर्रा भारत तिब्बत सीमा के पास स्थित है।लमखागा दर्रे के दौरान देवदार और भोजपत्र के समृद्ध जंगलों वाले  हिमाचल प्रदेश और गढ़वाल के कुछ दूरदराज के इलाकों से यात्रा पहुँचती है।माता देवी गंगा स्नान के लिए समय का चयन तब के लिए करने की आज्ञा देती है कि जब सारे जंगली, जानवर पशु ,पक्षी कीड़े मकोड़े भोजन से तृप्त होकर अपनी अपनी ओट में चले जाए । दोपहर बाद गंगा स्नान होता है।देवी का मुखौटा इस दौरान कुंड में डूबा रहता है। जब स्नान खत्म हो जाता है तब मुखौटा अपने आप ऊपर आ जाता है। फिर आगामी 24 घंटों तक माता देवी मां गंगा की गोद में बैठती है।इसके बाद खुद वापसी का आदेश देते है।

छितकुल से उत्तराखंड के गंगोत्री तक सड़क निर्माण का प्रस्ताव

पड़ोसी देश चीन के साथ सीमा पर बढ़ती तनातनी के बीच हिमाचल पुलिस ने प्रदेश सरकार के माध्यम से केंद्र सरकार को किन्नौर के छितकुल से उत्तराखंड के गंगोत्री तक सड़क निर्माण का प्रस्ताव भेजा है।रणनीतिक और व्यापारिक लिहाज से भी लाभ के लिए राजभवन और सरकार को भेजे इस प्रस्ताव को केंद्रीय रक्षा मंत्रालय को भेजा जा चुका है।हाल में सेवानिवृत्त डीजीपी संजय कुंडू ने राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय के निर्देश पर आधा दर्जन आला पुलिस अधिकारियों को किन्नौर और लाहौल जिले की चीन से लगती 240 किलोमीटर लंबी सीमा के आसपास के क्षेत्रों में दस दिन के दौरे पर भेजा था। दौरे के बाद तैयार प्रस्ताव में आम लोगों के अलावा स्थानीय सूचना तंत्र से जुड़े अधिकारियों-कर्मचारियों के सुझाव के आधार पर पुलिस ने राजभवन के माध्यम से केंद्र को कई सुझाव दिए।चूंकि अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगते अपने क्षेत्र में चीन की गतिविधियां बढ़ीं हैं, ऐसे में प्रस्ताव में कहा गया है कि अगर किन्नौर के छितकुल से उत्तराखंड के गंगोत्री तक सड़क बने तो उत्तराखंड और हिमाचल की दूरी कम होगी। साथ ही चीन की तरह सीमा के समानांतर सड़क कनेक्टिविटी से आईटीबीपी और सेना को भी फायदा होगा।