मनजीत नेगी/IBEX NEWS ,शिमला
उतराकाशी के लेवाड़ी गांव से हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिला के छितकुल आ रहे ट्रैकर गाइड की जान लापरवाही बरतने से हुई बताई जा रही है। रास्ते में आगे बढ़ने के लिए रस्सी फैंकी मगर सुरक्षा के लिहाज से रस्सी शरीर या कमर में नहीं बांधी या फिर भूल गए। हाथ थक गया और सीधे ग्लेशियर्स की गहरी खाई में हमेशा के लिए मौत की नींद सो गया। जबकि दूसरे की किस्मत अच्छी समझो,हाथ थक गया था मगर हिम्मत नहीं हारी।साथी की मौत या उसके गिर जाने के बाद और शरीर में जान आ गई, बच गया।हाथों में ही चोट है।
खिमलोगा दर्रा में फंसे ट्रैकर व पोर्टर को सुरक्षित निकालने के लिए हिमाचल पुलिस, भारत तिब्बत सीमा पुलिस बल व होमगार्ड के जवानो का 35 सदस्य दल आज रविवार प्रातः खिमलोगा दर्रे के लिए रवाना हो गया है। देर शाम तक ही इनकी वापसी होगी।
जिला प्रशासन को गत सायं सूचना मिली कि उत्तराखण्ड की उत्तरकाशी से 28 अगस्त 2022 को 3 ट्रेकर व 6 पोर्टर हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले के छितकुल के लिये रवाना हुये। जिनमे से एक ट्रेकर 50 वर्षीय नरोत्तम राम व 3 पोर्टर गत सायं छितकुल पहुंचे। ट्रेकर व पोर्टरो ने बताया कि उनके साथ आ रहे एक ट्रेकर सुजॉय डुले की खिमलोगा दर्रे को पार करते हाथ से रस्सी छूटने के चलते मौके पर ही मौत हो गई है जबकि दूसरा ट्रेकर 49 वर्षीय सुब्रोतो विश्वास इस दौरान घायल हो गया है।उन्होंने बताया कि घायल ट्रेकर व तीन पोर्टर अभी भी खिमलोगा दर्रे में फंसे हैं। बर्फ पर ही टैंट लगाकर वे अपनी सुरक्षा का इंतजार कर रहे है।
जानकारी देते उपायुक्त किन्नौर आविद हुसैन सादिक़ ने बताया कि गत सायं सूचना मिलते ही घायल ट्रेकर व3पोर्टल को सुरक्षित निकालने व मृतक के शव को लाने के लिए पुलिस आईटीबीपी व होमगार्ड के जवानों के 35 सदस्य दल तैयार किया गया। जो मौसम खराब होने व अंधरे के चलते रात के समय रवाना नही हो सका तथा आज प्रातः 5 बजे रवाना हो गया।
आविद हुसैन सादिक़ ने बताया कि तीनों ट्रेकर पश्चमी बंगाल से है जबकि पोर्टर कल्याण सिंह,नैन सिंह, देवराज, प्रदीप, जयेन्द्र सिंह उत्तराखंड के उत्तराकाशी जिले के लेवाड़ी गावँ व देवराम उत्तराखण्ड के उत्तराकाशी के जमेल गावँ से है।
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बेहद जोखिम भरा रास्ता है ये।
छितकुल गाववांसी तुलसी राम नेगी ,सुशीलसागर,धर्मसिंह,मुकेश नेगी का कहना है कि ये रूट बेहद डरावना और खतरनाक में से एक है। तुलसी राम नेगी ने बताया कि जो ट्रैकर छितकुल पहुंचे उन्होंने बताया कि गाइड ने रस्सी फैंकी और सीधे उसके सहारे आगे बढ़ने लगा। कमर में या पकड़ मजबूती के लिए अपने आप में रस्सी नही बांधी। बीच रूट में गाइड का हाथ थक गया और वे गहरे ग्लेशियर में जा गिरा।बता रहे है कि उसकी डेड बॉडी ग्लेशियर की खाई में दिख रही है। बता रहे हैं कि वे ग्लेशियर फटा हुआ था उसके बीच में वे गिरा है। जबकि दूसरे का भी हाथ थक गया था। छितकुल गांव के कुछ लोगों की 50वर्षीय ट्रैकर से बात हुई है।वो अपने आपको मृतक के मामा बता रहें थे।
अब अन्य दोस्त बर्फ के ऊपर टैंट लगाकर रेस्क्यू का इंतजार कर रहे हैं।
बॉक्स सिकुड़ कर ग्लेशियर का अधिकतर हिस्सा ढांक।
वर्षों पहले यहां ग्लेशियर का मैदान था लोग आसानी से इसके उपर से गुजरते थे। अब जलवायु परिवर्तन से साल दर साल ग्लेशियर्स पिघलने लगा।बीते 30 से 350सालों में ग्लेशियर्स की जगह भारी चट्टानों का ढांक दिखता है। ग्लेशियर सिकुड़ गया है।ढांक अधिक सामने आ गया है। ग्लोबल वार्मिंग से सामने आए पहाड़ की वजह से अब ये रूट करीबन बंद था। वर्षों पहले लेवाड़ी और छितकुल के बीच व्यापारिक संबंध थे। ये रूट खूब इस्तेमाल होता था। लेवाड़ी गांव से लाल चावल मिलता था और छितकुल वाले जौ, फाफड़ा,ओघला वगैरह बेचते थे।
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लेवाड़ी से छितकुल के व्यापारिक संबंध थे।
छितकुल गांव वासियों का कहना है कि तीन दशकों से बंद पड़े इस रूट पर 2साल पहले 15ट्रैकर्स लेवाड़ी गांव से छितकुल पहुंचे थे। इसके बाद अब ये ट्रैकर्स आ रहे थे। बता रहे हैं कि लेवाड़ी रूट के लिए आइटीबीपी के जवानों ने भी ट्राई किया है मगर वे भी इसको दिख रहे ढांक की वजह से जानलेवा बता रहे हैं।पहले पुराने लोगों को नहीं मालूम है कि वहां ढांक था।वो ग्लेशियर्स का मैदान ही समझते थे।उन्होंने ढांक नहीं देखा था।
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इस हादसे ने गांव वालों को भी मायूस कर दिया है। ऐसी ही एक मौत छितकुल वासी की भी इन ऊंचे ग्लेशियरों की खाई पाटने के वक्त हुई।वो दर्द स्वर्गीय एमबी नेगी के पिता के लिए परिजनों में आज भी हरे है। भेड़ बकरियों के साथ लोग अपनी मंजिल की और बढ़ रहे थे कि सबसे आगे सीटी बजाकर चल रहे साथी को पता ही नहीं चला कि दूसरा साथी कब गहरे ग्लेशियर में समा गया। वो ग्लेशियर के बीचों बीच सुरक्षित था और मदद की गुहार लगा रहा था।इतनी लंबी रस्सी मौके पर नहीं थी और वक्त बीतने के साथ सालों पहले बर्फ की मोटी चादर में दफन हो गया। आईजीएमसी शिमला में पल्मोनरी मेडिसिन विभाग में प्रोफेसर डॉक्टर आरएस नेगी का कहना है कि दादा जी के साथ ऐसा हुआ।हो सकता है उनकी डेड बॉडी बर्फ की तह में आज भी सुरक्षित हो। इतना दमखम कौन दिखाएगा। ये वर्षों पुरानी बात है। काश तब भी आज के जमाने की भांति टेक्नोलॉजी होती।
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दर्रे से कल लाया जाएगा शव,आज फंसे ट्रैकर्स और घायल का अस्थाई शिविर तक लाया गया।
जिला उपायुक्त सादिक हुसैन ने विशेष बातचीत में बताया कि आज सभी को सुरक्षा दल ने दर्रे में फंसे लोगों घायल को सुरक्षित किया है। खिमलोंगा पास के मध्य में अस्थाई बेस कैंप में दल ने उन लोगों को ठहराया है। कल उन्हें रिकॉन्ग पियो जिला अस्पताल लाया जाएगा। शव को हालांकि अभी दर्रे पर ही सुरक्षित स्थल पर रखा है कल ही शव को दर्रे से लाया जाएगा।ऐसे में जब घायल और फंसे लोगों को सुरक्षित निकालना प्राथमिकता है।