छितकुल विंटर गेम्स के लिए कूल ।12 महीने बर्फीली ठंडी वादियाँ और भरपूर पानी से न सिंचाई के लिए कोई टैंक,न पेयजल योजना, न कभी नल होते हैं बंद, तब विंटर्स गेम्स पहल पर अब न साधे सरकार मौन।सिंचाई के लिए खेतों में कुहल लगा रहे गाँववासी श्रवण के हाथों बनी एक झील ने जगाई फिर आस।

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मनजीत नेगी/ IBEX NEWS,शिमला।

ये स्विट्ज़रलैंड या झीलों के शहर फ़िनलैंड की जानी मानी झीलों के नज़ारे से किसी भी मायने में कमतर नहीं। बारह महीने बर्फ़ीले पहाड़ों से घिरे रहने वाले देश दुनिया में सुप्रसिद्ध पर्यटक स्थल छितकुल में सरकार प्रयास करें तो यहाँ टूरिस्ट को लंबी अवधि तक बांधा जा सकता है। आइस हॉकी जैसी विंटर गेम्स को बढ़ावा देकर यहाँ एडवेंचर्स स्पोर्ट्स,रिवर राफ्टिंग ,सकींग साइट्स ,पैराग्लाइडिंग आदि को उभार कर आय के नये स्त्रोत पैदा किए जा सकते हैं।

यहाँ इस ओर सरकारें कभी प्रयास नहीं कर पाई है।क्षेत्रफल के लिहाज़ से ये गावँ बहुत बड़ा हैं। पड़ौसी राज्य उतराखंड के खाते में कभी हिमाचल के पहाड़ थे ,किन्नौर के जननायक माने जाने वाले ठाकुर सेन नेगी ने लंबी लड़ाई लड़कर उन्हें किन्नौर ज़िला की झोली में लौटाया था और छितकुल का एरिया इससे कई गुणा बढ़ गया।

भारत तिब्बत सीमा पर हिमाचल के ज़िला किन्नौर के आख़िरी गाँव छितकुल के बीचोंबीच कोई झील नहीं है मगर ऊँची पहाड़ियों पर दर्जनों हैं। गाँव के बीच से ग्लेशियर्स और इन झीलों में इकट्ठा हुआ पानी कई जगह से कल कल करता हुआ दिन रात बहता रहता है ।लोगों को कभी यहाँ पानी के एकत्र करने की कोई आवश्यकता नहीं पड़ी।ये शायद हिमाचल का इकलौता गॉव है जहाँ खेतों में सिंचाई के लिये कोई टैंक नहीं है।पानी प्रचुर मात्रा में है।

किसी भी तरह की पेयजल योजना के लिए हाहाकार यहाँ के बाशिंदों ने कभी नहीं मचाया है। कई सालों पहले लाखों रुपये की एकमात्र पेयजल योजना इस गाँव के लिए चश्मे के पानी की लाने की कोशिश हुई। विपरीत तापमान परिस्थितियों के चलते गांव के लोगों की कुछ बालटियाँ ही नहीं भर पाई और हाँफ गई। लोग पीने के पानी के लिए ग्लेशियर्स की धाराओं से प्राकृतिक नालों में बहने वाले पानी को इस्तेमाल करते हैं।

आसपास ऊपर नीचे इधर उधर कोई आबादी नहीं और पानी को दूषित कोई नहीं करता। पानी पीने और कपड़े धोने के लिए चिन्हित स्पॉट है और नालों से जो पानी नलकों को जोड़ा है ऐसे नलकें छितकुल में कभी बंद नहीं किए जाते। यहाँ घरों के आँगन के नलकें दिन रात बहते हैं बंद किए तो माइनस तापमान में वे फट जाते हैं।

साभार श्रवण कुमार नेगी।
इस तरह छितकुल में नलके खुले ही रहते हैं।

खेतों में भी अब तक कूल्हों से सिंचाई होती है।जब जब ज़मीन यहाँ शुष्क तापमान ने नमी खो देती है तो कुहलों का सहारा लिया जाता हैं।

इसी कड़ी में गावों के पढ़े लिखे युवक् श्रवण कुमार नेगी ने अपने एक खेत को पूरी तरह पानी से भर दिया। ये इस खेत का पानी दूसरे खेत को ले जाना चाह रहे थे। और जब कुछ दिन बाद देखा तो ये मैनमेड झील बनी हुई थी। लोगों को यहाँ इस तरह पानी इकट्ठा करने की आवश्यकता नहीं पड़ती हैं। गाँववासियों ने जब से इस झील को देखा है तो माँग उठ रही है कि सरकार यहाँ विंटर्स गेम्स को बढ़ावा दें।लाहौल स्पीति ,किन्नौर के ही नाको में ऐसे प्रयास हो रहे हैं और इन दिनों आइस हॉकी खेल का आयोजन हो रहा गई तो छितकुल के लिये भी सरकार पहल करें।

श्रवण के खेत में ये झील गाँव से दूर बनी है है और आईटीबीपी पोस्ट से आगे मुजलंग के पास है ।

आम जनता को यहाँ जाने नहीं दिया जाता। छितकुल के समीप नागासथी पोस्ट भारत का अंतिम बिंदु हैं जहां तक् आम लोग टहल सकते हैं। गाँव वासी चाहते हैं कि सरकार यहाँ से पोस्ट को आगे बढ़ायें। हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल जब छितकुल दौरे पर् थे ।तब लोगों ने ये माँग रखी थी ।ये गावँ कभी भारत और तिब्बत के बीच सिल्क रूट रहा हैं।

दक्षिण में उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल, पूर्व में पड़ौसी देश चीन (तिब्बत), उत्तर में स्पीति घाटी और पश्चिम में कुल्लू से घिरा हुआ हैइस गांव की सीमा उत्तराखंड से महज 20 किमी की दूरी पर स्थित है।यह गांव सांगला घाटी से 28 किमी की दूरी पर है।भारत के अंतिम गाँव छितकुल के लिए देश दुनिया से बहुत टूरिस्ट पहुँचते हैं।

फोटो साभार श्रवण कुमार नेगी