मनजीत नेगी/IBEX NEWS,शिमला।
यहाँ इष्ट नाग देवता होली मनाते हैं,रंग बिरंगें रंगों से नहीं अपितु वाद्य यंत्रों की विशेष धुनों की थाप पर थिरकते हुए।खास बात ये कि ये धुनें केवल और केवल होली के दौरान ही बजती हैं।इसी उत्सव के लिए बनी है।
इससे पहले तीन दिन तक स्थानीय लोग भी इसी धुन पर गुलाल उड़ेलते हुए नाच गाना कर होली मनाते है ।धड़कते दिलों से उड़ता गुलाल और होली के रंगबिरंगें रंगों का सिलसिला वर्ष 1933 से जारी है और कभी भी ये क्रम थमा नहीं है।
चौथे दिन यानि आज सुबह मंदिर प्रांगण में हज़ारों की संख्या में पहुँची जनता के बीच नाग देवता की पूजा होती हैं। ये पूजा उन लोगों की उपस्तिथि में होती है जिन लोगों ने विभिन्न पात्र बीते तीन दिन होली के दौरान निभाए। इसके बाद गावों की औरतों ने चयनित जगह के लिए देवता साहब को भोज का न्यौता दिया होता है वहाँ नाग देवता साहब भोजन चख कर फाग मेला का आगाज करते हैं और होली के रंगों से सरोबार होते हुए अपनी जनता पर खूब आशीर्वाद लूटाते है, आपने शायद ही कभी ऐसी अनूठी होली देखी या सुनी होगी।
हिमाचल प्रदेश के कबाइली ज़िला किन्नौर की सबसे खूबसूरत घाटी सांगला में कई दशकों पुरानी परंपरा को क़ायम रखते हुए विशेष होली खेली जाती हैं और इस होली केअंदाज़ का हार कोई क़ायल हैं।होली क्लब सांगला के अध्यक्ष सुंदर सिंह नेगी बताते हैं कि ये उत्सव कभी नहीं रूका है और इष्ट नागस देवता की उपस्तिथि से ही इस उत्सव की शान है।
सांगला होली वाद्य यंत्रों की विशेष धुनो के साथ मनाईं जाती है और ये धुने होली उत्सव में ही बजती है और चार दिनों के होली त्यौहार के अंतिम दिन का ये नजारा होता है जब हज़ारों की संख्या में लोग सुबह बेरंग नाग देवता साहब के मंदिर परिसर में पारंपरिक ऊनी वस्त्रों के परिधानों में सज धज कर पहुँचते है ।जिन्होंने तीन दिन पहले होली उत्सव की शुरुआत यहीं से की होती है उन्हीं के साथविशेष रूप से नाग देवता साहब की पूजा अर्चना होती हैं ।फाल्गुन में मनाए जाने वाले फाग मेले का आगाज भी।
होली इसी फाग मेले का हिस्सा है जो इससे तीन दिन पहले से शुरू होता हैं।
दो ऋषि,दो रानी और दो तलवारबाज के साथ होली त्यौहार सांगला घाटी में शुरू होता है और विभिन्न चरित्रों को दर्शाते हुए रंग बिरंगे मुखौटे पहन कर लोग एक घर से अगले घर के लिये जुड़ते जाते हैं। हवा में गुलाल उड़ेलते हुए होली का शांत हुड़दंग वाद्य यंत्रों की धुनो की धमक के साथ आगे बढ़ता हैं । जैसे जैसे होली का हुजूम जुड़ता जाता है वैसे ही ख़ाना खिलाने वालों के हौसलें भी बुलंदियों पर रहते हैं । हर घर से कुछ न कुछ खाने को मिलता है। तीन दिन तक ये सिलसिला थमता नहीं। तैयारियाँ पहले से ही होती है । इसके लिए जोन में बँटे सांगला घाटी में कमेटियाँ गठित हैं जो पूरे तामझाम को इलाक़े में सँभालती हैं।
दूसरे दिन की होली में हनुमान का नया चरित्र उत्सव की कड़ी में जुड़ता है बाक़ी करैक्टर वहीं चलते हैं और होलिका दहन होता है।
सांगला के सभी गावँ घरों से अलग तरह की वेशभूषा ग्रहण कर टोलियों में तीन दिन तक विभिन्न क्षेत्रों में भ्रमण कर एक दूसरे पर गुलाल फेंकते हैं।
ग्रामीणों का समूह देवता बैरिंगनाग के मंदिर प्रांगण से आशीर्वाद लेकर छूदोसरिंग से तैयार होकर विभिन्न तरह के स्वादिष्ट व्यजनों का स्वाद चखते हुए पूरा दिन होली मनाते हैं।पूदोनाला सारिंग और कोश्टयोचूदेन होते हुए मंदिर में पहुंचकर होलीका दहन करती हैं।जब तक चंद्रमा का उदय नहीं होता तब तक होलिका दहन नहीं होता हैं।फाल्गुन की शुरुआत चंद्रमा के उदय के साथ फाग मेले के लिए होती हैं और होली अपने एटीएम चरण में।
बॉक्स। अनूठी होली के पीछे ये भी धारणा।
अनूठी होली का अभिप्राय भारतीय सनातन धर्म कि संस्कृति को यहाँ के लोगों तक पहुँचाना कि लोग समझ पाए कि सनातन धर्म की वास्तव में संस्कृति है क्या? कहते है कि पुराने समय में हिंदू धर्म शैव और वैष्णव में विभक्त था। सबसे पहले दो ऋषि या रौल्ला के रूप में सनातन धर्म के शैव और वेष्णव धर्म को दर्शाया है जो आपस में मतभेद टकराव के बाद एक होते हैं। दूसरे पात्र में दो राजा तलवारबाज़ बताये है जो अपने साम्राज्य का विस्तार करते है और युद्ध की स्तिथि में दर्शाये हैं उनके एक हाथ में तलवार दूसरे में रूमाल। युद्ध के टकराव के बाद वे कैसे एक होते है और रूमाल लहराते हुए मित्रता करते हैं।साम्राज्यवादी शक्तियों को इसके ज़रिए समझाने की कोशिश हुई है।फिर तीसरे पात्र में हिंदुस्तान की नारी शक्ति “रानी “है । उनका गेटअप देवी के रूप में है जो पूजनीय है ।उनके एक हाथ में आईना और दूसरे में दराटी जो लगातार घुमाते है ।दराटी का अर्थ मेहनत है जिससे स्मृद्धता आती है।आईना हिंदुस्तान की नारी कि ख़ूबसूरती को बताता है। हर किरदार का मक़सद है और होली के दिनों में ये स्वाँग चलता हैं। इन पूरे पात्रों के बीच समन्वय बिठाने के लिए हनुमान। हनुमान इसलिए क्यूँकि सनातन धर्म में कलियुग में एकमात्र जीवित देवता माने जाते हैं और कलियुग सम्भालने की जिम्मेदारी इन्ही देवता पर है।सांगला होली में प्रबंधन का जिम्मा हनुमान जी के पास ही रखा गया हैं।कोई हुड़दंग मचाये तो हनुमान अपना रौद्र रूप भी बताते है यानी नियमों में बांधते है।इस उत्सव में पारंपरिक भोजन और घरों में तैयार मदिरा स्थानीय भाषा में कहे फ़ासूर परोसा जाता है।