लो जी,पुरुषों के हाथों से ये काम भी छीन गया।पेंट एवं ब्रश को औज़ार बनाकर, महिलाएं उकेर रही सुनहरे भविष्य की तस्वीर।महीने के कमाने लगी है हज़ारों ₹।

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राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत पाया प्रशिक्षण। पुरुषों के बर्चस्व को तोड़कर अब  स्वावलम्बी बन रहीं ग्रामीण महिलाएं।

IBEX NEWS,शिमला।

आमतौर पर आप और हम देखते आये हैं कि सड़कों के किनारे चेतावनी बोर्ड्स, सरकारी योजनाओं के गुणगान करते टंगे बड़े फ्लेक्स, वॉल पेंटिंग करते हुए पुरुष ही देखें हैं मगर अब महिलाओं ने इस धारणा को तोड़ते हुए अपना परचम लहरा दिया हैं। समाज को आईना दिखाते हुए मानो देवभूमि हिमाचल के कुल्लू ज़िला की महिलाएं कह रही हो कि हम में है दम। हम किसी क्षेत्र में पुरुषों से कहीं कम नहीं।पेंट एवं ब्रश को औज़ार बनाकर, महिलाएं यहाँ सुनहरे भविष्य की तस्वीर उकेर रहीं हैं।

कुल्लू जिला के स्वयं सहायता समूहों  से संबंधित महिलाएं प्रशिक्षण पाने के पश्चात पेंट और ब्रश के साथ खेलकर न केवल अपने हुनर के दम पर स्वरोजगार पा रही हैं बल्कि उस  से स्वरोजगार  द्वारा अपने व अपने परिवार को आर्थिक रूप से संपन्नता की ओर ले जाने तथा आत्म निर्भर बनने का एक जीवंत उदाहरण बन कर समाज के लिए एक मिसाल प्रस्तुत कर रही हैं। उनके इन सपनों की उड़ान को पूरा करने में सहायक बनी है ।

सरकार की राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन जिसके अंतर्गत उन्होंने प्रशिक्षण प्राप्त किया तथा पेंट एवं ब्रश रूपी औज़ारों के साथ अपनी दक्षता को संवार कर  अपने सुनहरे भविष्य की तस्वीर उकेरने का साहसिक कार्य किया है।


पारंपरिक कार्यों की सीमाओं से हटकर महिलाएं उन कार्यों को भी सफलतापूर्वक एवं पूर्ण दक्षतापूर्वक निभा रही हैं जिनमें कभी पुरुषों का वर्चस्व समझा जाता रहा है।



आज यह महिलाएं ग्रामीण विकास अभिकरण के अंतर्गत होने वाले विभिन्न विकास कार्यों के विवरण से सम्बंधित बोर्ड तैयार कर रही हैं वाल पेंटिंग में भी अपना लोहा मनवा रही है।जिसने इनकी बहुत ही बढ़िया कमाई हो रही है।


जितनी अधिक मेहनत उतनी अधिक आर्थिक आमद। कमाई के साथ-साथ समाज के परंपरागत ढांचे से बाहर निकल कर ये महिलाएं अपनी पहचान अपने दम पर बना रही हैं। 

ऐसी ही एक महिला हैं  ‘आशा’ जो कुल्लू ब्लॉक के गांव बजौरा के नैना स्वयं सहायता समूह की से संबंध रखती हैं। उनका कहना है कि पहले वे केवल चूल्हा चौका एवं खेती-बाड़ी के कार्यों तक ही सीमित थी, घर की देखभाल करना तथा छोटे-मोटे खेती-बाड़ी के कार्य करना यही उनकी दिनचर्या थी।


इससे आर्थिक रूप से परिवार का गुजारा सही से नहीं हो पाता था परंतु जब इन्होंने  राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत दिए जाने वाले प्रशिक्षण कार्यक्रम के बारे में सुना तो शुरू में उन्हें कुछ संकोच हुआ परंतु जब प्रशिक्षण शुरू हुआ तो प्रशिक्षकों द्वारा उन्हें न केवल पेंट ब्रश के साथ कार्य करने की बारीकियों के बारे में समझाया बल्कि इस कार्य के महत्व के बारे में बताते हुए उन्हें प्रेरित भी किया।


परियोजना अधिकारी डॉ0 जयवंती ठाकुर भी इस दौरान सभी के लिए प्रेरणा एवं मार्गदर्शक के रूप में सहयोगी रही। और जब प्रशिक्षण के उपरांत उन्होंने पेंट करने का कार्य आरंभ किया तो न केवल लोगों ने उनके कार्य को सराहा बल्कि इससे उन की आमदनी भी बहुत अच्छी होने लगी जिससे घर-परिवार को भी आर्थिक रूप से संबल मिला।


वही बाराहर पंचायत की  दुर्गा स्वयं सहायता समूह की युवती रीता का कहना है कि पहले वह केवल घर का काम करती थी, पूरा आर्थिक बोझ उसके पति को वहन करना पड़ता था जिससे घर में आर्थिक तंगी भी रहती थी, परंतु प्रशिक्षण पाने के उपरांत वह पंचायत में होने वाले कार्यों के बोर्ड समय-समय पर बनाती रहती है। जिससे उसे मासिक 25 से 30हजार  की आमदनी हो रही  है। इसी आमदनी से अब उसने एक स्कूटी भी खरीदी है जिससे उसे कहीं भी कार्य करने के लिए जाने आने में सुविधा रहती है और आर्थिक रूप से स्वाबलंबी होकर अपने व्यक्तित्व में बड़ा सकारात्मक बदलाव महसूस करती हैं।

वहीं एक अन्य युवती  लीला देवी का कहना है कि वह ‘दीया’ स्वयं सहायता समूह  मोहल की  सदस्यता है। अपनी पंचायतों के अलावा अन्य पंचायतों की मांग के अनुसार  बोर्ड लिखने का कार्य करती है 


इसके अतिरिक्त स्कूलों व अन्य कार्यों तथा निजी बोर्डों को बनाने का कार्य भी उसे मिलता रहता है। जिसे वह पूरी लगन व मेहनत के साथ कर रही है प्रत्येक बोर्ड से ₹800 रुपए  से 1 हज़ार तक की कमाई हो जाती है। इस प्रकार से उसके महीने की कमाई और औसतन 20 से 25 हज़ार बैठती है जो कि उसके लिए  आर्थिक स्वावलंबन का एक बहुत बड़ा जरिया है।

परियोजना अधिकारी ग्रामीण विकास अभिकरण कुल्लू डॉ0 जयबन्ति ठाकुर  ने जानकारी दी कि 
ग्रामीण विकास विभाग की सभी स्कीमों से संबंधित विवरण को बोर्ड पर लिखकर प्रदर्शित करना अनिवार्य रहता है परंतु इसके लिए प्रशिक्षित पेंटरों की कमी के कारण यह कार्य बाधित होता रहता था तथा वोर्ड लेखन व दीवार लेखन में बहुत विलंब होता रहता था।
इसी से उनके मन में विचार आया कि क्यों न राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत कुछ महिलाओं को बोर्ड एवं दीवार पर पेंटिंग के कार्य का प्रशिक्षण दिलवाया जाए ताकि महिलाएं इस कार्य को कर स्वरोजगार तथा अपने पंचायत के भीतर ही कार्य कर आर्थिक आमदनी का जरिया बना सके।
इसी विचार के साथ विभिन्न सहायता समूहों से 7 इच्छुक महिलाओं को इस प्रशिक्षण कार्य के लिए बुलाया गया । महिलाओं ने इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में हिस्सा लिया तथा  15 दिन के इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में पेंट बनाने, ब्रश, पकड़ने तथा अक्षरों को उकेरने की बारीकियां मास्टर ट्रेनर द्वारा सिखाई गई।
प्रशिक्षण कार्यक्रम के पश्चात सभी प्रशिक्षित महिलाएं अपने-अपने पंचायतों के साथ-साथ अन्य पंचायतों के काम की मांग के अनुसार बोर्ड व दीवार पेंटिंग करके अच्छी खासी आमदनी अर्जित कर रही हैं।


पहले जहां उनके परिवार जन भी उनके इस कार्य से नाराज़ रहते थे, आज उनके परिवार के लोग  उनके इस कार्य की भूरी भूरी प्रशंसा कर रहे हैं, तथा उन्हें सहयोग दे रहे हैं।