मान्यता है कि अपने प्रवास के दौरान देवी देवता अपने अपने इलाक़ों के लिए अच्छा भाग्य, फसलें, मौसम आदि भविष्य तय करके लाती है। इंद्र देव के दरबार में वे हाज़िरी भरते है और किन्नौर कैलाश से भी अपनी प्रजा के लिए सौभाग्य जीतकर लाती है।
उनकी दिव्य अलौकिक मूर्ति देवीरथ में सजा दी गई हैं। ये स्वर्ग जाने से पूर्व रथ से उतार दी गई थी।किन्नौर के अन्य देवीदेवता भी प्रवास से लौट आए है और मंदिरों में नियमित पूजा-अर्चना शुरू कर दी गई है। स्वर्ग प्रवास पर रहते समय देवताओं को मंदिर के बाहर से आकाश की ओर धूप दिया जाता था। देवताओं के स्वर्ग में रहते समय शुभ कार्य नहीं किए जाते थे।
IBEX NEWS,शिमला।
देवभूमि हिमाचल के कबाइली ज़िला किन्नौर की सबसे शक्तिशाली माता देवी छितकुल मंदिर के कपाट आज खुल गए और स्वर्ग प्रवास से लौट आई है।मान्यता अनुसार देवी इस अवधि में इंद्रलोक में रहती है और अपने प्रवास के दौरान देवी अपने इलाके के लिए अच्छा भाग्य, फसलें, मौसम आदि भविष्य तय करके लाती है। प्रवास से लौटने के बाद माता देवी का वाद्ययंत्रों ढोल नगाड़ों की धुनों के बीच लोगों ने ख़ुशी से स्वागत किया।माता देवी का ख़ुशी से स्वागत मूर्ति देवीरथ में सजा दी गई हैं। ये स्वर्ग जाने से पूर्व रथ से उतार दी गई थीं। मंदिर में नियमित पूजा-अर्चना शुरू होगी। स्वर्ग प्रवास पर रहते समय उन्हें मंदिर के बाहर से आकाश की ओर धूप दिया जाता था।
देवी देवताओं के स्वर्ग में रहते समय शुभ कार्य नहीं किए जाते । आज से सब कार्य शुरू होंगे। हालाँकि छितकुल में ख़ेतों की बिजाई का काम माता देवी द्वारा तय की गई तिथि से शुरू होगा। अपनी मर्जी से नए साल की फसलों की बिजाई का काम कोई भी शुरू नहीं कर सकता।माता देवी की और से किसी एक व्यक्ति को चुना जाएगा और फिर खेती बाड़ी का काम उस व्यक्ति विशेष के कर कमलों से शुरू होगा। लोगों में धारणा है कि कैसा व्यक्ति इस विशेष कार्य के लिए चुना गया है और उससे भी अनुमान बैठाया जाता है कि साल की फसलें कैसी होगी।हालाँकि कहीं ऐसी पुष्ट जानकारी अंकित नहीं है ।
माता देवी के कपाट पड़ौसी राज्य उतराखण्ड कि गंगोत्री धाम के साथ ही बंद हुए थे ।माता देवी ही स्वयं ये दिन तय करती है। इन्हें गंगोत्री की पुत्री भी कहते है। जब भी ऊंचें गंगनचुभी पहाड़ों से पैदल मार्च कर माता देवीगंगोत्री यात्रा पर जाती है तो गंगा स्नान के बाद वहाँ उनकी गोद में ही बैठती हैं।इस वक्त माता देवी के चुनिदा कारदार, माली और लोग उनके साथ होते हैं।किन्नौर की सबसे शक्तिशाली और सबकी पूजनीय माता देवी का डंका उतराकशी में गंगोत्री यात्रा के दौरान उन क्षेत्रों में भी चलता है जहां से उनका रथ गुजरता है। लोग पूजा के लिए खड़े रहते है ।
किन्नौर के अन्य देवी देवता भी स्वर्ग प्रवास से वापस लौट आए है।
जाख देवता रचोली, बहासरा देवता, काजल देवता गसो, दरकाली में लक्ष्मी नारायण देवता, लालसा में दोगड़ू देवता, बरांदली में छत्रखंड देवता, डंसा देवता, शोली में शोलेश्वर महादेव, देवता खंटू सेरिमझाली आदि देवताओं ने अपने गूरों के माध्यम से वर्षफल भी सुनाया।
किन्नौर में अनेकों मंदिरों में वर्षफल सुनने को मंदिरों में बड़ी संख्या में लोग जुटे रहे और देवताओं के दर्शन करके आशीर्वाद भी लिया। अधिकांश देवताओं ने फसल अच्छी रहने की भविष्यवाणी की है तो वहीं छिटपुट घटनाओं की संभावना भी जताई है।