दोस्तों के बीच से यूँ गया, ना उसका शरीर मिला न काँधा दे पाये दोस्त ।मैकेनिकल इंजीनियर योगेन्द्र का पाँच दिनों से कोई सुराग नहीं, गाँववासियों के साथ अस्थायी पुल बनाकर घर लौटने से पहले अपनी रस्सी और कुल्हाड़ी लाने मुड़ा था कि पुल की बीच की बली ने ले ली उसकी बलि।

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छितकुल के बासपा नदी की ट्रिब्यूटरी खड्ड जानापार में ग्लेशियर के टूटने से टूटे पुल को बनाने गया था 33 साल का योगिंद्र।

पुल के बीच की बली टूटने से पानी के तेज बहाव में बहा, पाँचवें दिन अब सर्च अभियान रोकने की तैयारी, होमगार्ड की टीम बीते कल वापस लौटी।

IBEX NEWS,शिमला।

बस दिल जीतने का मक़सद है , दुनिया जीत कर तो सिकंदर भी ख़ाली हाथ गया था।अपने फ़ेसबुक अकाउंट पर बार बार इस लाइन को री शेयर करने वाले सबके लाड़ले मैकेनिकल इंजीनियर अपने दोस्तों के बीच से यूँ गया कि सब कोई छटपटा रहा है ।दोस्त ग़मगीन है ,हाथ मल रहें है और यारों के यार ज़िंदादिल योगिंदर की अर्थी को कंधा तक नहीं दे पाए। दोस्त घर में अन्य अंतिम संस्कार में मदद कर रहें हैं दोस्तों ,रिश्तेदारों ,घरवालों को कई दिनों वाद भी उसका शव नहीं मिला हैं जो सतलुज नदी की ट्रिब्यूटरी नदी बासपा(जानापार) के तेज बहाव में बह गया।तीन साल से भी कम उम्र की नन्हीं अन्ननया सुधबुद्ध खो चुकी माँ और बूढ़ी दादी माँ के पास किलकारियाँ भर रहीं हैं और अब घर वाले मैकेनिकल इंजीनियर योगेन्द्र सिंह की अर्थी मिलने तक की उम्मीद भी खो चुके है। पाँच दिन से योगेन्द्र का कुछ अता पता नहीं चल पाया ।

सर्च अभियान में नहीं मिला कोई भी सुराग

भारत चीन की सीमा के साथ सटे हिमाचल प्रदेश के अंतिम गाँव छितकुल से आगे नाग़स्ती ITBP कैम्प के पास जानापार खड्ड पर अस्थायी पुल बनाने गया था। लकड़ी के पुल लकड़ी की बलियों से यूँ तैयार किया जाता है कि सर्दियों में लोग गाँव के पार हरी पतियों को अपने पशुओं के लिए ला पायें।गर्मियों में गाँववालों की भेड़ बकरियाँ भी इसी पुल से आती जाती हैं।

18 सितंबर को दोपहर बाद पुल बनकर तैयार हुआ।गाँव की कुछ महिलाएँ भी इस काम में साथ थी। लोग घर लौटने लगे तो योगेन्द्र ये कहता हुआ पूल क्रॉस करने लगा कि मेरी रस्सी और कुल्हाड़ी दूसरे किनारे रह गई ।मैं ले आता हूँ। जैसे ही वो आगे बढ़ा पुल के बीच की बली यानी कड़ी टूट गई और वो बासपा नदी की ट्रिब्यूटरी नाले जानापार के तेज बहाव में बहता ही चला गया ।लोग चिल्लाते रह गए ।जब तक लोग संभले पानी के तेज बहाव में योगेन्द्र पल में आँखों से ओझल हो गया।सभी ने मिलकर ढूँढा मगर नामोनिशान नहीं मिल पाया।एक जमाने से हर साल यहाँ अस्थाई पुल बनता है । जब जब ग्लेशियर्स से हिमखंडों से ये टूटता है तो उस साल सभी मिलकर बनाते है ।इस साल भी लोग पुल बनाने के लिए इकट्ठा हो कर गए थे कि इस हादसे ने सभी को झकझोर कर रख दिया।

चार दिनों से ITBP, क्यूआरटी टीम, सांगला पुलिस और होम गार्ड के साथ गाँववासी योगेन्द्र को मिलकर ढूँढ रहें हैं। हादसे के बाद से छितकुल तक बासपा में खोज अभियान चलाया गया मगर कोई सुराग नहीं मिला। गाँव से क़रीब तीन किलोमीटर दूर शिषंग खड्ड के पास उसका एक जूता मिला है । इससे अंदाज़ा लगाया जा रहा है कि हो सकता हैं कि योगिंद्र शिशंग खड्ड से आगे बह गया है या फिर जूता ही बह के आया है ।इन सब प्रश्नों के बीच होमगार्ड की टीम बेरंग लौट गई हैं या यूँ कहें कि टीम को वापस भेज दिया गया है ।सर्च अभियान को बंद करने की तैयारी हो रही है । ज़िला किन्नौर प्रशासन के अधिकारियों का कहना है कि पंचायत प्रधान ने कहा है कि अब इस ऑपरेशन को कॉल ऑफ किया जा रहा है उसके घर वाले भी यहीं बोल रहें हैं। एसडीएम डॉक्टर मेजर शशांक गुप्ता ने इसकी पुष्टि की है ।

अपनी संस्कृति को कभी नहीं भुला योगिंद्र

इन सब तथ्यों के बीच ये कहा जा रहा है कि योगेन्द्र सिंह नेगी मामले को शिमला के समरहिल शिव बावड़ी के हादसे भाँति नहीं लिया जा रहा है जो तब ख़त्म किया गया जब तक सारे शवों को रिकवर नहीं किया गया।केंद्र सरकार के वाइब्रेंट विलेज छितकुल में 33 वर्षीय युवा मैकेनिकल इंजीनियर का परिजन दाह संस्कार भी नहीं कर पाए।

योगिंद्र की बेटी अनन्या

अभी अभी तो योगिंद्र का वैवाहिक जीवन शुरू हुआ था । वर्ष 2015 में एचएपीटीयू हमीरपुर से ग्रेजुएट हुआ था।

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