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मनजीत नेगी,शिमला

हिमाचल के कबाइली जिला किन्नौर की देवियों की सबसे शक्तिशाली देवी माता छितकुल आज गंगोत्री यात्रा पर जा रही है। सदियों पुरानी चली इस धार्मिक परंपरा को छितकुल वासी हर्षोल्लास के साथ अब भी निभा रहे हैं। माता देवी के रथ के साथ इस बार गांव के 9 लोग चयनित है। भारत के अंतिम गांव छितकुल में बीते कई दिनों से यात्रा विशेष की तैयारिया चल रही थी जो आज मंगलवार को पूरी हो गई। सुबह से ही गांव में खुशी का माहौल रहता है लोग नम आंखों से माता देवी को यात्रा की शुभकामनाएं देते हैं।

यह बर्फीले, पथरीले पहाड़ों ग्लेशियरो को लांघते हुए 90 किलोमीटर की यात्रा पूरी होगी। हालांकि सड़क माध्यम से छितकुल गंगोत्री तक 450किलोमीटर की यात्रा है।
मगर माता देवी की यात्रा 5300मीटर ऊंचाई पर स्थित लमखागा पास, छोटाखागा पास और क्यारकोटि की घाटियों को पार करके उत्तराखंड के सबसे दूरगामी गांव हरसिल पहुंचती हैं। जब जब माता देवी गंगोत्री स्नान के लिए जाती है तब यही रास्ता चुना जाता है।


छितकुल – हरसिल (गंगोत्री घाटी) की यह यात्रा किन्नौर_ गढ़वाल हिमालय मे होती है । पूरे पश्चिमी हिमालय में इस ट्रैक को सबसे खतरनाक माना जाता है। किन्नौर की तरफ से लमखागा को लांघना इतना आसान नहीं है।
भारत _तिब्बत सीमा पर हिमाचल के आखिरी गांव छितकुल के लोगो का मानना है कि माता देवी के आशीर्वाद से ही यह सब संभव हो पाता है। आज तक कभी भी इस ट्रैक पर कोई हादसा यात्रा के दौरान नही हुआ हैं। इस धार्मिक पर्व में शामिल लोगों के पास न तो कोई विशेष प्रशिक्षण है न ही इतनी ऊंचाई वाले ग्लेशियरों की गहरी खाइयों को पाटने के लिए कोई हाई टेक उपकरण। टैंट ,खाने पीने का सामान भी अपने बूते होता है।सत्तू, फाफरा, चावल ओघला,भुने जौ के दाने , मखन आदि ही रहता है। राहत की बात ये है कि अब खानपान में नयापन मैगी, बिस्किट्स, चॉकलेट्स से आया है।दुखद पहलू ये कि इस यात्रा के लिए प्रदेश सरकारों की उदासीनता का ठीकरा यहां कोई किसी पर नहीं फोड़ता। सरकार की और से यात्रा के लिए कभी किसी प्रकार की मदद नही मिलती न ही प्रशासन कभी सुध लेता रहा है।गांव वालों को कोई मलाल भी नही।हालांकि बीते वर्ष इस रूट पर पर्यटकों के साथ त्रासदी हुई कई ट्रेकर्स बर्फीले तूफान की चपेट में आए और मौत का निवाला बने।
छितकुल से माता देवी के साथ यात्रा पर जा रहे लोगों और उनके परिवारों के माथे में कोई शिकन तक नही हैं।यहां के लोगों का मानना है कि गांव की देवी माथी मानी जाती है।यह छितकुल के ऊंचाई वाले इलाके की रक्षिका हैं। इसलिए माता देवी को *रणसंगा* भी कहा जाता है।

लोगों की धारणा है कि माता देवी वृंदा वन से यहां आई थी।देवी के नाम से एक लोकगीत भी है जिसे स्थानीय लोग विशेष अवसरों पर गाते है। जिसके मुताबिक यह दावा खोखला साबित होता है कि छितकुल से गंगोत्री ट्रैक वर्ष 1933 में एक अंग्रेज मार्को पालिस ने खोजा था ।


छितकुल गांव में सबसे पुराने 100 वर्षीय जिया लाल का कहना है कि मेरे बुजुर्ग भी इस यात्रा पर जाते रहे हैं और बुजुर्गों के बुजुर्ग भी माता देवी के रथ के साथ गंगोत्री यात्रा पर जाते रहे है। अब तक 16 बार जिया लाल नेगी इस धार्मिक यात्रा का हिस्सा बन चुके है ।वे माता देवी के गुर भी हैं। उन्होंने बताया कि अब जो मंदिर वर्ष 2012 में गांव में माता देवी का नया बना है इससे पहले करीब 500साल पुराना मंदिर प्रांगण में था और इससे पहले गांव की ऊंची चोटी थिंगसियनिंग में था ।आज भी यहां पूजा होती है।लोक गाथाओं में भी इसका जिक्र है। हर साल माता देवी इस स्थान पर जाती है । वे इस स्थान को नहीं भूली है ।मान्यता है कि माता देवी की गंगोत्री यात्रा तब से है।
हर बार गांव के लोगों को माता देवी कुछ हुक्म के साथ चयनित करती हैं और आदेश देती है कि इस समय मुझे जाना है।
यात्रा गांव के भरकुटू से शुरू होती है। दूसरे दिन नागस्थी ,रानीकंडा होते हुए दुमती तक पहुंचती है।यह स्थल समुद्र तल से 4050मीटर ऊंचाई पर है।इसके बाद घुंडर जो छितकुल गांव का चरागाह भेड़, बकरी, गाय, याक आदि के लिए है ,यहां रात गुजारने के बाद सबसे ऊंचे पास लामखागा के लिए तैयारी होती हैं। घुंडूर 4600मीटर ऊंचाई पर है।पहले यहां से गंगोत्री या बद्रीनाथ जाने के लिए अलग रूट भी था जो चीन की एक घाटी से होकर गुजरता था। किन्नौर के पूर्व में तिब्बत है जो अब चीन के प्रभुत्व में है।इसके दक्षिण में उत्तरकाशी और रोहड़ू,दक्षिण पश्चिम में रामपुर, पश्चिमोत्र में कुल्लू तथा लाहुल स्पीति है।चीन से व्यापारिक संबंध बंद होने के साथ पुराना रास्ता भी बर्फीले पहाड़ो में जमीजोंद्द हो गया है। अब इस रास्ते कोई नहीं जाता न ही कोई ट्रैक है।
गांव की 80वर्षीय बरम देवी का आगे कहना है की जब 12साल की थी तब मां की तीर्थ के लिए गंगोत्री की कठिन यात्रा पर गई है।गांव के लोगों के मरने के बाद तीर्थ नहाने बद्रीनाथ, गंगोत्री ही जाते थे। पिता मोती राम नेगी माता देवी के गुर थे अधिकतर धार्मिक यात्रा पर गए है। उन्होंने मुझे बताया कि नाना और परनाना भी ऐसा करते रहे। उनसे सुना है कि ये परंपरा सदियों से चली आई है। अब लमखागा पास से यात्रा संभव है।


ये पास इतना महत्वपूर्ण इसलिए है कि इसके टॉप पर जमा बर्फीला मैदान है। ग्लेशियर की तह में पानी दो हिस्से में बंटता है। पूरी दुनिया में सबसे पवित्र मानी जाने वाली गंगा नदी के लिए यही यहीं से भी जलधारा निकलती है। लमखगा के पास जो जलंधरी गड़ ट्रिब्यूट्री है वो भागीरथी नदी के लिए जाती है जो बाद में गंगा नदी से मिलती है।उत्तराखंड की तरफ गंगा नदी और किन्नौर की ओर से सतलुज के लिए इस पास से वासपा ग्लेशियर मौजूद है। वासपा नदी बाद में सतलुज में मिलती है। ग्लेशियरों के बीच खाई कब निगल जाएं इस बात से बेफिक्र ग्रामीण लगातार आगे बढ़ते है।माता देवी पर आस्था इतनी कि वापस लौटने के लिए बर्फ की मोटी तह में खाद्य सामग्री दबा जाते है कि वापसी में भी यहीं विश्राम और खाना पीना होना है।यहां सुखी लकड़ी मिलना संभव नहीं है इसलिए पीठ पर लादकर रखा जाता है।

लमखागा पास से नीचे बेस कैंप और इससे आगे बढ़ते हुए गुलाबी बुरांस, भोजपत्रो के घने जंगल मिलते है। क्यारकोटि नामक जगह पर पहुंचा जाता है।इस बीच बिना नाम के असंख्य पानी के छोटे बड़े झरने ,पहाड़ पार किए जाते है । हिमालय के गर्भ में स्थित पर्वतों की चोटियों से गुजरते हुए यहां पर लाल देवता जगह पर माता देवी से आग्रह किया जाता है की गंगोत्री स्नान पर कब पहुंचना है।हालांकि पहले छितकुल से रवानगी के वक्त ही पूरी यात्रा का विवरण बनता था कि किस दिन वहां पहुंचना है।क्यारकोटी में पूजा अर्चना के बाद यात्रा उत्तराखंड के अंतिम गांव हरसिल पहुंचती है। यहां माता देवी के दरबार में हज़ारों लोग हाजरी भरते है किसी के घर में गरीबी क्यों है?बेटा आवारा है?सरकारी नौकरी नहीं है,बीमारी क्यो लग गई,दिमाग क्यूं उठ गया।वो जमीन निगल गया हमारी।परिवार की रंजिश कब खत्म होगी। खुशहाली कब आएगी आदि समस्याओं को लेकर लोग मां के दरबार में पहाड़ी परंपरा अनुसार पूजा करने पहुंचते है।बताते है कि वे माता देवी के आगमन की बाट जोह रहे होते हैं उनके पहुंचने पर उत्तराखंड के कई गांवो में भरपूर खुशी का माहौल होता है।आगे बढ़ते हुए माता देवी गंगा स्नान के लिए समय का चयन तब के लिए करने की आज्ञा देती है कि जब सारे जंगली, जानवर पशु ,पक्षी कीड़े मकोड़े भोजन से तृप्त होकर अपनी अपनी ओट में चले जाए । दोपहर बाद गंगा स्नान होता है।
देवी का मुखौटा इस दौरान कुंड में डूबा रहता है। जब स्नान खत्म हो जाता है तब मुखौटा अपने आप ऊपर आ जाता है। फिर आगामी 24 घंटों तक माता देवी मां गंगा की गोद में बैठती है।इसके बाद खुद वापसी का आदेश देते है।

वापसी भी इसी ट्रेक पर होती है। कुल मिलाकर आठ या नौ दिन एक और की ट्रैकिंग को लग जाते है।

==इस बार ये लोग है माता देवी के साथ यात्रा पर

तुलसी राम नेगी गुर
हिमत्त सिंह नेगी गुर
प्यार सिंह नेगी गुर
भगरत्न नेगी पुजारी
रजनीश नेगी माथस
सुशील सागर नेगी भंडारी
यशवंत नेगी पतलिका
विनोद नेगी
लक्की नेगी

==धार्मिक पर्यटन के नाम पर लाखों रुपए की योजनाओं पर अब तक कागजों में ही सरकारे कसरत करती रहीं हैं। ऐसे पर्यटन केंद्रों को उभारने के लिए कोई प्रयास नहीं हो पाए है। न ही धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने वाले ग्रामीणों को कभी सरकारों ने शाबाशी दी।मांग उठ रही है की प्रशासन इस संबंध में कुंभकर्णी नींद से जागे।

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