महज चार साल के बेटे को ताउम्र पूरी तरह से एक धार्मिक जीवन जीने के लिए देना शायद हम और आप को सोचना भी कलेजा मुंह तक आने बराबर है,मगर बौद्ध धर्म के निंगमा स्कूल के प्रमुख तकलुंग छ्रेतुल रिनपोंछे के चौथे पुनर्वतार साढ़े चार वर्षीय नवांग ताशी राप्टेन की मां कहती है कि “मुझे खुशी है कि मेरा छोटा बेटा लोगों का मार्गदर्शन करेगा और सबके कल्याण के लिए काम करेगा। मैं उन्हें जन्म देकर खुद को सौभाग्यशाली महसूस कर रही हूं।”उनके इस जज्बे को सलाम। जानिए और क्या महसूस कर रही है नन्हें बालक की मां…..और क्या कहते है पिता…..

Listen to this article

“एक माँ के रूप में, अपने बेटे से अलग होने के बारे में सोचना सचमुच बहुत दर्दनाक है। हालाँकि, मुझे इस बात की भी खुशी है कि हमारे घर एक उच्च सन्यासी ने जन्म लिया है। मुझे खुशी है कि मेरा छोटा बेटा लोगों का मार्गदर्शन करेगा और सबके कल्याण के लिए काम करेगा। मैं उन्हें जन्म देकर खुद को सौभाग्यशाली महसूस कर रही हूं।’

……पिता कहते हैं शुरू से ही संदेह था कि कोई उच्च साधु है ,बेटा कहता था कि शिमला जाना है और वहां एक कुते से मिलना है। उसके भाग्य में क्या लिखा था,नहीं जानते थे कि वह टुल्कु होगा और मठ का प्रमुख भिक्षु होगा

IBEX NEWS,शिमला।

नन्हें बालक टूल्कू की मां कलजंग डोलमा कहते हैं कि, “हमने कभी नहीं सोचा था कि हमारे बेटे को रिनपोछे के पुनर्जन्म के रूप में चुना जाएगा। लगभग एक साल पहले, दोर्जे ड्रैक मठ के भिक्षु हमारे पास आए। फिर उन्होंने दलाई लामा और शाक्य ठिछेन रिनपोछे से बात की, जिसके बाद उन्हें रिनपोच्छे जी के पुनर्जन्म के रूप में चुना गया।”
जब उनकी मां से अपने बेटे के पुनर्जन्म के रूप में चुने जाने के बारे में परिवार को कैसा लगता है? ऐसा पूछा गया तो वह कहते हैं कि “एक माँ के रूप में, अपने बेटे से अलग होने के बारे में सोचना सचमुच बहुत दर्दनाक है। हालाँकि, मुझे इस बात की भी खुशी है कि हमारे घर एक उच्च सन्यासी ने जन्म लिया है। मुझे खुशी है कि मेरा छोटा बेटा लोगों का मार्गदर्शन करेगा और सबके कल्याण के लिए काम करेगा। मैं उन्हें जन्म देकर खुद को सौभाग्यशाली महसूस कर रही हूं।’

हिमाचल प्रदेश के जिला लाहौल स्पीति के ताबो रांगरिक गांव के चार वर्षीय बालक दोरजीडक मठ के मठाधीश बन गए है। बौद्ध धर्म के विधिविधान से सोमवार को राजधानी के पंथाघाटी में मुंडन और वस्त्र धारण संस्कार के बाद उनकी मठ सिंहासन पर ताजपोशी की गई और वे मठ के आगामी श्रेष्ठ धार्मिक गुरु तकलुंग छेत्रुल रिनपोछे बन गए है।

               "ताकलुंग त्सेठ्रुल रिनपोछे" जी का 'पुनर्जन्म' "नवांग टाशी रपतन'' के रूप में हिमाचल प्रदेश के लाहौल स्पीति जिले में बौद्ध शिक्षा केंद्र ताबो के करीब, स्पीति घाटी के एक दूरस्थ गाँव, रंगरिक में हुआ है।

तिब्बती बौद्ध धर्म के चार प्रमुख संप्रदायों में से सबसे पुराने (अन्य तीन काग्यू, शाक्य और गेलुग हैं) निंगमा संप्रदाय के प्रमुख रिनपोछे का 24 दिसंबर, 2015 को बौद्ध गया में निधन हो गया था। 89 वर्षीय रिनपोछे के शरीर को 1984 में उनके द्वारा स्थापित दोरजी डाक मठ में 10 महीने तक संरक्षित रखा गया था और बाद में बौद्ध परंपराओं के अनुसार उनका अंतिम संस्कार किया गया था।
तिब्बती बौद्ध धर्म में, यह माना जाता है कि उच्च कोटि के भिक्षु, जिन्हें “टूल्कू” के नाम से जाना जाता है, का पुनर्जन्म होता है। एक टूल्कू पूरी तरह से प्रबुद्ध (बुद्ध) या एक उच्च निपुण भिक्षु (सिद्ध) होता है, जो सभी प्राणियों के लाभ के लिए बार-बार पुनर्जन्म लेता है। तिब्बती बौद्ध श्रद्धेय ऐसे शख्सियतों को खोजने, पहचानने, सिंहासनारूढ़ करने, प्रशिक्षण देने और उनकी पूजा करने की परंपरा का पालन करते हैं। टूल्कू प्रबुद्ध लामा होता है और इन्हें जीवित बुद्ध माने जाता है।
“नवांग ” जिनका जन्म 16 अप्रैल, 2018 को हुआ था, को भूटान के ल्होद्रक खारचू मठ के बौद्ध भिक्षु नामखाई निंगपो रिनपोछे के द्वारा धार्मिक जीवन में शामिल किया गया था, जिन्होंने राप्टेन को न्यिंग्मा संप्रदाय के नए प्रमुख के रूप में उनकी पहचान कराई थी।

यह पूछे जाने पर कि क्या परिवार को संदेह था कि वह एक उच्च साधु का पुनर्जन्म है, उसके पिता सोनम छोपेल कहते हैं कि, “मेरा बेटा हमेशा शिमला जाने और वहां एक कुत्ते से मिलने की बात करता था। हमें कभी नहीं पता था कि उसके भाग्य में क्या है और वह एक सिद्ध लामा का पुनर्जन्म लेकर हमारे घर में जन्मा है। मैंने कभी नहीं सोचा था कि वह टुल्कु होगा और मठ का प्रमुख भिक्षु होगा।

जैसे ही टाशी नवांग को पुनर्जन्म के रूप में पहचाना गया, उसके माता-पिता ने उसे उस ताबो स्थित विद्यालय “सेरकोंग पब्लिक स्कूल” से वापस ले लिया जिसमें वह पढ़ रहा था।
उनके पिता छोपेल जी कहते हैं कि उनका बेटा रपतन “पिछले तीन महीनों के दौरान, पूरी तरह से बदल गया है और वह हमारे साथ बैठना या रहना पसंद नहीं करता है। शिमला की यात्रा के दौरान वह अपनी अलग गाड़ी में अन्य लामाओं के साथ बैठे बहुत खुश लग रहे थे।
स्पीति घाटी के एक बौद्ध शिष्य कहते हैं कि, “पुनर्जन्म की प्रक्रिया लंबी होती है और इसमें एक वर्ष से अधिक का समय लगता है। उच्च बौद्ध भिक्षुओं की मृत्यु के बाद, लामाओं ने पता लगाया कि पुनर्जन्म कहाँ पैदा होगा। भिक्षु एकांतवास में चले जाते हैं, अनुष्ठान करते हैं और उस विशेष अवधि के दौरान पैदा हुए बच्चों की सूची बनाते हैं। बाद में, वे विशिष्ट स्थान और कुछ पहचान साझा करते हैं। इस तरह से एक सिद्ध भिक्षु यानी “टूल्कू” की पहचान कराई जाती है।

उनकी दादी से पूछने पर वह कहती है कि वह प्राय: शिमला जाकर अपने कुत्तों से मिलने की बात करता रहता था। हमें गर्व है कि नए बौद्ध गुरु को स्पीति के हिमालयी क्षेत्र से चुना गया है।

बॉक्सहिमाचल प्रदेश के जिला लाहौल स्पीति के ताबो रांगरिक गांव के चार वर्षीय बालक

दोरजीडक मठ के मठाधीश बन गए। बौद्ध धर्म के विधिविधान से सोमवार को राजधानी के पंथाघाटी में मुंडन और वस्त्र धारण संस्कार के बाद उनकी मठ सिंहासन पर ताजपोशी की गई और वे मठ के आगामी श्रेष्ठ धार्मिक गुरु तकलुंग छेत्रुल रिनपोछे बन गए।

साभार बौद्ध धर्म संघ