IBEX NEWS,शिमला।
हिमाचल प्रदेश में बजरंगबली हनुमान का एक ऐसा मंदिर भी है जहां न कभी राम भक्त हनुमान चालीसा का पाठ गूंजता है न ही हिंदू कभी भी मंदिर में आ जा सकते है। हैरानी हो रही है न ये जानकर। ये कटु सत्य है तीन धर्मों की तपोस्थली के नाम से मशहूर रिवालसर प्राचीन तीर्थ है जहाँ एक बड़ा सरोवर और सरोवर के निकट ही गुरु पद्मसम्भव द्वारा स्थापित ‘मानी-पानी’ नामक बौद्ध मठ है। इसे महर्षि लोमश की तपोभूमि माना जाता है। यह स्थान हिंदू, बौद्ध एवं सिख धर्म के अनुयायियों के लिए श्रद्धा का केंद्र है।यहाँ बोद्ध गोंपा में स्तिथ हनुमान मंदिर है और यहाँ हिंदू अपने हिसाब से पूजा नहीं कर सकते। स्थानीय बाशिंदों के ऐसे कई गंभीर आरोप है और कहना है कि इस मंदिर के साथ ही काली माता का सदियों पुराना मंदिर है जो अब अस्तित्व खो रहा है और यहाँ तालाबंदी की गई है और काली माता की सदियों पुरानी मूर्ति का स्थल बदल दिया बदले में दूसरे धर्म कि मिलती जुलती मूर्ति स्थापित की गई हैं। जिस स्थान पर मूर्ति पहले थी वो मनमर्ज़ी से हटाई गई और हिंदू आस्था पर ऐसी चोट से लोग आहत है।रिवाल्वर में हिंदू धर्म के लोग सरकार से आग्रह कर रहे हैं कि इस मामले में हस्तक्षेप करें कि इन मंदिरों में हिंदुओं का प्रवेश प्रतिबंधित क्यों है? सार्वजनिक हो ऐसे मंदिर।सदियों पुराने शिव मंदिर की भी ऐसी की कहानी है जहां अब समाधियाँ बन रही है और लोग शिव पिंडी ,नदीं बैल की दुर्दशा अपनी आँखों से देखने को विवश है।
रामभक्त हनुमान का मंदिर यहाँ है न कभी न हिंदुओं के लिए सुबह और साँय को कपाट खुले होते है ,न रामनाम और हनुमान चालीसा का पाठ यहाँ गूंजता है।सुनिए यहाँ के बाशिंदों की ज़ुबानी दर्दभरी कहानी…. क्या कहते है छोटी काशी के नाम से प्रसिद्ध मंडी के रिवाल्सर में स्थित ऐसे मंदिर के असितत्त्व की कहानी और दर्द भारी दास्ताँ लोगों की ज़ुबानी।झील के पास ये हनुमान मंदिर हैं और मठ के भीतर होने से यहाँ लोग आसानी से आ जा सकते और बताते हैं कि वहीं लोग इस मंदिर में अपने हिसाब से पूजा प्रक्रिया करते है औरों के लिए कपाट बंद और लोग प्रतिबंधित।मगर बुद्ध धर्म के अनुसार इस मंदिर में पूजा अर्चना होती है तर्क ये हैं कि किंवदंती यह है कि महान शिक्षक और विद्वान पद्मसंभव ने तिब्बत को रिवाल्सर से उड़ान भरने के लिए अपनी विशाल शक्तियों का उपयोग किया। इन शक्तियों को उनपर पवन पुत्र हनुमान के आशीर्वाद से जोड़कर देखा जाता है और तभी गोंपा में हनुमान की मूर्ति है और बोद्ध धर्म पूजा और मंत्र गूंजते हैं।
नगर पंचायत रिवालसर के पूर्व चेयरमैन बंसी लाल बताते है कि रिवालसर में हिंदू धर्म के असितत्त्व को बचाने के सरकार प्रयास करें । इन मामलों पर सरकार संज्ञान लें।पुरातत्व विशेषज्ञों की मदद से उद्धार को महत्व दिया जायें।
स्थानीय वासी चूड़ामणि बताते हैं कि दूसरे धर्म के लोग इसे अपने धर्म का उदगम मानने लगे है।सदियों पुराने मंदिर में नंदी के गले की टूटी हुई मुण्ड माला ,पूँछ में गोपाल जी की ग़ायब मूर्ति, शिव पिंडी में सालों से न हो पाये ज्लाभिषेख राज्य सरकारों और हुक़ूमरानों की चुस्त कार्यशैली को कठघरे में ला रही हैं। ऐसे में जब दूसरे धर्म इस पवनस्थली में खूब फलफूल रहें है तो हिंदू धर्म को लेकर उदासीनता क्यों हैं?।सरकारें क्यों ऐसे स्थलों को अपने अधीन लेने से कतराती हैं जिससे अच्छीख़ासी आमदनी इन मंदिरों से हो सकती हैं। सरकारी कोष को भी संजीविनी मिल सकती है? तर्क ये कि लोगों की आस्था पर जहां एकाधिकार से कुठाराघात हो रहा हो उन्हें पूजा का अधिकार नहीं।
भूप सिंह ठाकुर का कहना है की सरकार रिवाल्वर के हिंदू मंदिरों को अपने अधीन ले विकसित करें। आपातकाल में शिव की महीमा अपने आप में दिखती थी।इस स्थल का एकाधिकार बंद हो ।
रिवाल्सर हिंदू, सिख और बौद्धों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थान है। रिवालसर में प्राकृतिक झील अपने तैरते ईख द्वीपों और मछलियों के लिए प्रसिद्ध है। झील के परिधि के साथ हिंदू, बौद्ध और सिख मंदिर मौजूद हैं। किंवदंती यह है कि महान शिक्षक और विद्वान पद्मसंभव ने तिब्बत को रिवाल्सर से उड़ान भरने के लिए अपनी विशाल शक्तियों का उपयोग किया। ऐसा माना जाता है कि रिवाल्सर झील में तैरने वाले ईख के छोटे द्वीपों में पद्मसंभव की भावना है। पद्मसंभव की एक मूर्ति प्रतिमा भी रिवाल्सर में बनाई गई है। माना जाता है कि ऋषि लोमास ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अपनी तपस्या की है। गुरुद्वारा श्री रिवाल्सर साहिब दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी से जुड़े हुए हैं, जिन्होंने पहारी राजाओं को मुगलों के खिलाफ अपनी लड़ाई में एकजुट होने के लिए बुलाया था। सभी धर्म के लोग बेसाखी पर पवित्र स्नान के लिए रिवाल्सर आते हैं। रिवाल्सर में तीन बौद्ध मठ हैं। इसमें गुरुद्वारा है जिसे 1 9 30 में मंडी के राजा जोगिंदर सेन ने बनाया था।
यहाँ शंकर, लक्ष्मीनारायण और महर्षि लोमश के तीन मंदिर प्रसिद्ध हैं। रिवालसर सरोवर में सात उभरे हुए भूभाग हैं, उन पर उगे वृक्षों पर देव-मूर्तियाँ हैं।
ऐसा माना जाता है कि मंडी के राजा अर्शधर को जब यह पता चला कि उनकी पुत्री ने गुरु पद्मसंभव से शिक्षा ली है तो उसने गुरु पद्मसंभव को आग में जला देने का आदेश दिया, क्योंकि उस समय बौद्ध धर्म अधिक प्रचलित नहीं था और इसे शंका की दृष्टि से देखा जाता था। बहुत बड़ी चिता बनाई गई जो सात दिन तक जलती रही। इससे वहाँ एक झील बन गई जिसमें से एक कमल के फूल में से गुरु पद्मसंभव एक षोडशवर्षीय किशोर के रूप में प्रकट हुए।
यहाँ पर एक भव्य गुरुद्वारा भी है जो गुरु गोविंद सिंह जी की याद में बना है। कहा जाता है कि मुगलों से युद्ध में पहाड़ी राजाओं के साथ मिलकर औरंगज़ेब के विरुद्ध रणनीति बनाने के उद्देश्य से यहाँ आये थे और तीस दिन तक यहाँ रहे।मंडी के राजा जोगिंदर सेन ने सन् १९३० में इस गुरुद्वारे का निर्माण कराया।
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रिवालसर में आस्था पर चोट…1 छोटी काशी के रिवालसर में पौराणिक शिव स्थल को पल -पल धूमिल होते देख आपको भीतर तक झकझोर देगी यहाँ की तस्वीरें।महाशिवरात्रि के अवसर पर देखें शिव आस्था पर कैसा प्रहार हो रहा है ? लोमस ऋषि की गुफा के साथ इस स्थल पर नंदी बैल जीर्णशीर्ण अवस्था में है और शिव पिंडी में जूते पहनकर घूमते गई लोग,अब गर्मियों में आसपास के दर्जनों गाँववासियों द्वारा बारिश की प्रार्थना को रिवालसर झील का घड़वा नहीं चढ़ता शिव पिंडी पर।पुजारी का आरोप अब लोग आस्तिक नहीं बच्चे करते हैं यहाँ दारू पार्टी।हैरत में डालने वाले वीडियो में देखें स्थल के पुजारी का क़बूलनामा।क्लिक करें IBEX NEWS https://ibexnews.com/?p=14430