हाईकोर्ट ने हिमाचल प्रदेश की हाइड्रो परियोजनाओं पर राज्य सरकार द्वारा लगाए वाटर सैस अवैध घोषित।

Listen to this article

न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने कहा कि हिमाचल प्रदेश सरकार वाटर सेस पर अलग से कानून नहीं बना सकती।

हाईकोर्ट के समक्ष भारत सरकार के उपक्रमों और निजी विद्युत कंपनियों ने वाटर सेस के खिलाफ अलग-अलग 40 के करीब याचिकाएं दायर की थीं। इन सभी याचिकाओें पर उच्च न्यायालय ने एक साथ सुनवाई करते हुए वाटर सेस को अवैध घोषित कर दिया।

IBEX NEWS,शिमला।

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक अहम फैसला देते हुए जलविद्युत परियोजनाओं पर राज्य सरकार की ओर से लगाए गए वाटर सेस के प्रावधान की वैधता को असांविधानिक करार देते हुए खारिज कर दिया। हाईकोर्ट के समक्ष भारत सरकार के उपक्रमों और निजी विद्युत कंपनियों ने वाटर सेस के खिलाफ अलग-अलग 40 के करीब याचिकाएं दायर की थीं। इन सभी याचिकाओें पर उच्च न्यायालय ने एक साथ सुनवाई करते हुए वाटर सेस को अवैध घोषित कर दिया।

न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने कहा कि हिमाचल प्रदेश सरकार वाटर सेस पर अलग से कानून नहीं बना सकती। यह मामला राज्य विधानसभा के क्षेत्राधिकार से बाहर का है। अदालत ने राज्य सरकार एवं प्रतिवादियों की ओर से हिमाचल प्रदेश जल विद्युत उत्पादन अधिनियम 2023 के तहत याचिकाकर्ताओं से वसूले गए जल उपकर को चार सप्ताह के भीतर लौटाने के आदेश दिए हैं।याचिकाकर्ताओं एनटीपीसी, बीबीएमबी, एनएचपीसी और एसजेवीएनएल और अन्य के अधिवक्ताओं ने अदालत के समक्ष दलीलें दीं कि केंद्र और राज्य सरकार के साथ अनुबंध के आधार पर कंपनियां राज्य को 12 से 15 फीसदी बिजली मुफ्त देती हैं। इस स्थिति में हिमाचल प्रदेश जल विद्युत उत्पादन अधिनियम-2023 के तहत कंपनियों से वाटर सेस वसूलने का प्रावधान संविधान के अनुरूप नहीं है। याचिकाकर्ताओं ने अदालत को बताया कि 25 अप्रैल, 2023 को भारत सरकार ने पाया कि कुछ राज्य भारत सरकार के उपक्रमों पर वाटर सेस वसूल रहे हैं। भारत सरकार ने राज्य के सभी मुख्य सचिवों को हिदायत दी थी कि भारत सरकार के उपक्रमों से वाटर सेस न वसूला जाए।

इसके बावजूद प्रदेश सरकार केंद्र के निर्देशों की अनुपालना नहीं कर रही है। राज्य सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे पेश हुए। वहीं, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में राज्य सरकार के महाधिवक्ता अनूप रतन ने अदालत को बताया कि जलविद्युत परियोजनाओं पर कर लगाना राज्य का विशेषाधिकार है। बता दें कि राज्य सरकार की ओर से जल विद्युत परियोजनाओं पर वाटर सेस लगाने का पंजाब और हरियाणा सरकार ने भी विरोध किया था। दोनों राज्यों का तर्क था कि वाटर सेस लगने से कंपनियां उन्हें महंगी बिजली बेचेंगी।

वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से पैरवी की